दृष्टिकोण का यही अंतर है जिसके कारण तब हम विश्वगुरु थे..

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 कहते हैं, फ़ा हियान पूर्वी समुद्र तट से भारत से इकट्ठी की गई पुस्तकों को लेकर अपने देश चीन ले जा रहा था भारत के दो छात्र भी उनके साथ जा रहे थे। 

सहसा समुद्र में तूफान आया और जहाज के कप्तान ने जहाज को हल्का करने के लिए सामान को फैंकना शुरू किया। 

इसी प्रक्रम में वह फ़ा हियान के बक्से की ओर बढ़ा। 

फ़ा हियान की आंखों में अपार व्यथा व हताशा व्याप गई लेकिन कप्तान भी मजबूर था। 

"ठहरो!" उनमें से एक छात्र बोला। 

"इस बक्से के वजन के बदले मैं जहाज छोड़ता हूँ।"

"उससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। बक्सा ज्यादा वजनी है।" कप्तान चिल्लाया। 

"फिर मैं भी जहाज छोड़ता हूँ।" दूसरा छात्र बोला। 

"क्यों?" कप्तान के साथ फ़ा हियान की आँखों में मूक प्रश्न था।

"हम रहें न रहें, भारत की यह ज्ञानराशि विश्व तक, अगली पीढ़ियों तक पहुंचनी चाहिए। इसके सम्मुख हमारे प्राणों का कोई मूल्य नहीं।" छात्रों ने उत्तर दिया और उफनते समुद्र में छलांग लगा दी। 

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कल देश में 18 हजार करोड़ की स्कॉर्पियो एक दिन में बुक हो जाती हैं लेकिन पीढ़ियों को जगाने वाली किताब की कीमत पर बिना पढ़े ही टिप्पणी होती है, 

"यार बहुत मंहगी है।"

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दृष्टिकोण का यही अंतर है जिसके कारण तब हम विश्वगुरु थे और आज संसार कब सबसे कायर और भ्रष्ट समाज।


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