🔴 तैंतीस करोड़ देवताओं में केवल भगवान शिव ही ऐसे देवता हैं, जिनकी सर्वत्र पूजा होती है। देवता, राक्षस, भूत, किन्नर, मुनि एवं मनुष्य सभी इनके उपासक हैं। इनकी प्रतिष्ठा और महत्ता का आधार इनके चरित्र की उदारता है। इनका चरित्र सत्यम्, शिवम्, सुंदरम् की त्रिवेणी है, जो सर्वदा लोक कल्याण का उपादान बनी रहती है।
🔴 भगवान शिव का चरित्र और व्यक्तित्व बहुपक्षीय है। एक ओर वे सकल कला और गुणों से युक्त परमब्रह्म हैं, सभी ईश्वरों के भी ईश्वर है, तो दूसरी ओर वे योगिराज हैं। कामदेव पर उनकी विजय की कथा
वस्तुतः एक योगी की काम, क्रोध, मद, लोभ आदि सभी विकारों पर विजय की कथा है। प्राणायाम, ध्यान, प्रत्याहार धारणा और स्मरण, इन पाँच तत्वों से निर्मित उनका माहेश्वर योग,योगविद्या का गौरव माना जाता रहा है। वे अनंत काल से एक आदर्श योगी के रुप में प्रेरणा के स्रोत रहे हैं।
🔴 एकता की दृष्टि से शिव का महत्व काफी बढ़ जाता है। देश के सभी क्षेत्रों में उनके मंदिरों में भक्तों की अपार भीड़ उनके प्रति अपार श्रद्धा को व्यक्त करती है। अमरनाथ, पशुपतिनाथ तथा कामाख्या में स्थापित शिव मंदिर एकता के प्रतीक स्वरुप आधार स्तंभ बने हुए हैं। देवाधिदेव महादेव विश्वनाथ की नगरी काशी है। काश ( प्रकाश ) से उद्भूत काशी महामाया की क्रीड़ास्थली है। शिव- शक्ति सायुज्य की प्रकाश किरण कला कहलाई।
🔴 सत्य यह है कि शिव ही सौंदर्य है।प्रकृति सुंदरी विलासमयी हो शिवत्व प्राप्त पुरुष की प्रमोदिनी हुई और यहीं से सृष्टि की सर्जना प्रारंभ हुई। काशी के श्री विश्वनाथ मंदिर में ऐसा ही एक स्वयंजात ज्योतिस्वरुप लिंग है। इसके ही दर्शन और अर्चन से भक्त लोग अपनी समस्त कामनाओं की पूर्ति के साथ- साथ मोक्ष जैसा अलभ्य फल प्राप्त करने हेतु काशी आते हैं।
🔴 माँ अन्नापूर्णा (पार्वती) के साथ भगवान शिव अपने त्रिशूल पर काशी को धारण
करते हैं और कल्प के प्रारम्भ में अर्थात सृष्टि रचना के प्रारम्भ में उसे त्रिशूल से पुन: भूतल पर उतार देते हैं। शिव महापुराण में श्री विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा कुछ इस प्रकार बतायी गई है–''परमेश्वर शिव ने माँ पार्वती के पूछने पर स्वयं अपने मुँह से श्री विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा कही थी। उन्होंने कहा कि वाराणसी पुरी हमेशा के लिए गुह्यतम अर्थात अत्यन्त रहस्यात्मक है तथा सभी प्रकार के जीवों की मुक्ति का कारण है। इस पवित्र क्षेत्र में सिद्धगण शिव-आराधना का व्रत लेकर अनेक स्वरूप बनाकर संयमपूर्वक मेरे लोक की प्राप्ति हेतु महायोग का नाम 'पाशुपत योग' है। पाशुपतयोग भुक्ति और मुक्ति दोनों प्रकार का फल प्रदान करता है।''
🔴 भगवान शिव ने कहा कि ''मुझे काशी पुरी में रहना सबसे अच्छा लगता है,इसलिए मैं , सब कुछ छोड़कर इसी पुरी में निवास करता हूँ। जो कोई भी मेरा भक्त है और जो कोई मेरे शिवतत्त्व का ज्ञानी है, ऐसे दोनों प्रकार के लोग मोक्षपद के भागी बनते हैं, अर्थात उन्हें मुक्ति अवश्य प्राप्त होती है। इस प्रकार के लोगों को न तो तीर्थ की अपेक्षा रहती है और न विहित अविहित कर्मों का प्रतिबन्ध। इसका तात्पर्य यह है कि उक्त दोनों प्रकार के लोगों को जीवन्मुक्त मानना चाहिए।वे जहाँ भी मरते हैं,उन्हें तत्काल मुक्ति प्राप्त होती है।''इस प्रकार द्वादश ज्योतिर्लिंग में श्री विश्वेश्वर भगवान विश्वनाथ का शिवलिंग सर्वाधिक प्रभावशाली तथा अद्भुत शक्तिसम्पन्न लगता है।काशी तीनों लोकों में न्यारी नगरी है इसे आनन्दवन, आनन्दकानन, अविमुक्त क्षेत्र तथा काशी आदि अनेक नामों से स्मरण किया गया है।
🔴 वास्तव में काशी पुरी अनाहत चक्र का प्रतीक है जो भगवान शिव के त्रिशूल पर विराजती है। इस जगत् का प्रलय होने पर भी जीवात्मा /आत्मा अथार्त अविमुक्त काशी क्षेत्र का नाश नहीं होता है। ब्रह्मा जी जब नई सृष्टि प्रारम्भ करते हैं, उस समय भगवान शिव काशी को अथार्त जीवात्मा/ आत्मा को पुन: भूतल पर स्थापित कर देते हैं।
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