धवन साहब को हिट का फॉर्मूला मिल गया..

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डेविड धवन ने 1992 में आँखें बनाई थी। फ़िल्म हिट रही, इसी फिल्म के साथ धवन साहब को हिट का फॉर्मूला मिल गया। 


आँखें, 1977 में आई कन्नड़ फ़िल्म 'किट्टू-पुट्टू' जो 1967 तमिल कंटेंट 'अनुबावी राजा अनुबावी' की रीमेक थी। इसके बाद डेविड ने पीछे मुड़कर न देखा, ख़ूब दबाकर रीमेक बनाए और सफलता प्राप्त की। शुरुआती कुछ कंटेंट ओरिजनल अवश्य रहे।


रोहित धवन ने देसी बॉयज और ढिशुम की असफलता के  बाद पिता डेविड वाला सूत्र लगाने की कोशिश कर रहे है। इसलिए तो 'अला वैकुंठप्रेमुलु' को हिंदी 'शहज़ादा' में परिवर्तित कर रहे है। बीते दिनों कार्तिक आर्यन व कृति सेनन के केंद्र में टीजर लॉन्च हुआ है। 


सबसे अव्वल रोहित ने तेलुगु ब्लॉकबस्टर कंटेंट को उसी टाइटल में काहे न रखा! शहज़ादा टाइटल क्यों दिया....जानते है क्योंकि अला वैकुंठप्रेमुलु कंटेंट बॉलीवुड की सीमाओं में पहुँच रहा है। तो यहाँ बॉलीवुड का एकतरफा सेकुलरिया संविधान शुरू हो जाता है। उसे कतई नजरअंदाज नहीं कर सकते है।


तेलुगु कंटेंट के टाइटल का अर्थ समझें, इसका भाव सनातन से निकलता है, स्वाभाविक था। बॉलीवुडिये इसे समझ न पाएंगे और वे चाहते भी नहीं है।


कार्तिक आर्यन 'अला वैकुंठप्रेमुलु' के बंटू यानी अल्लू अर्जुन के जूते में पैर डाल रहे है। भिया, उसका स्वैग अलग ही है उसे स्टाइलिश स्टार कहते है। अल्लू अर्जुन व  कार्तिक आर्यन के बीच तुलनात्मक अध्ययन करने पर रीमेक में ओरिजनल कंटेंट का फील न आ रहा है। 


अल्लू अर्जुन के फ़ोटो को देखिए, कितने कूल हाव-भाव है तो वही, कार्तिक जबरन एक्सप्रेशन देते दिखाई पड़ रहे है। ऐसा नहीं है कार्तिक अच्छे एक्टर न है। बढ़िया कलाकार है, प्यार का पंचनामा इसके साक्षी है। सोनू के टीटू की स्वीटी तगड़ी मोहर लगाकर निकली है। लेकिन इस रीमेक में आर्यन बहुत दूर खड़े है। टीजर में जो भी आया है औसत है।


कार्तिक भविष्य के स्टेटस को देखते हुए, रीमेक करना बन्द कर दो...बहुत आगे निकलोगे। क्योंकि ओरिजनल में स्वयं का रहता है रीमेक में टिपाई का ठप्पा लगता है। चाहे कितना भी कुछ कर लो, कार्बन ही कहेंगे😊ख़ैर।


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