आजकल गुजरात में जगह-जगह कांग्रेस ने बोर्ड लगाया है कांग्रेस का काम बोलता है
लेकिन कांग्रेस का एक काम जो सच में बोलता है उसके बारे में कभी मीडिया में चर्चा नहीं हुई
कांग्रेस सरकारों की मूर्खता का काम दशकों बाद भी हमें भुगतना पड़ता है
यदि आप एशिया के सबसे बड़े घास के मैदान जो कच्छ के बन्नी एरिया में स्थित है जो 2600 स्क्वायर किलोमीटर में फैला है वहां जाएंगे तब आपको सैकड़ों जेसीबी बबूल के पेड़ों को उखाड़ते नजर आएंगे
अब आप सोचेंगे पेड़ लगाना तो पुण्य का काम है आखिर पेड़ क्यों उखड़ा जा रहा है ?
फिर आप कच्छ से लेकर सुरेंद्र नगर मोरबी राजकोट अहमदाबाद से लेकर बाड़मेर जालौर तक जाएंगे तब आप जंगली बबूल जिसे गुजराती में गांडा बावल कहते है वो खूब नजर आएंगे
इस पूरे इलाके में जमीन के नीचे वैसे भी पानी की कमी है और यह जंगली बबूल जमीन के नीचे के पानी को सोखकर धरती को बर्बाद कर
फिर उसके बाद आप जब कांग्रेसी सरकारों की मूर्खता के बारे में सोचेंगे जिन्होंने चंद रुपयों के लिए कैसे पूरे इकोसिस्टम को बर्बाद कर दिया
साठ के दशक में कच्छ के बन्नी प्रदेश में जो एशिया का सबसे बड़ा घास का मैदान है जहां हजारों मालधारी यानी पशुपालक इन्हीं घास के मैदानों से अपनी आजीविका चलाते थे वहां यह देखा गया कि पानी के अंदर खराश यानी खारेपन की मात्रा बढ़ रही है फिर पता नहीं कौन से मूर्ख वैज्ञानिक ने कांग्रेस सरकार को यह सलाह दिया कि आप अफ्रीका से जंगली बबूल के पेड़ यहां उगाइए इससे जमीन का खारापन खत्म हो जाएगा
साठ के दशक में कांग्रेस सरकार को इसमें शानदार घोटाला नजर आया और पता चला कि एक केंद्रीय मंत्री के बेटे को इसका ठेका दिया गया
लेकिन इन मूर्खों ने यह नहीं सोचा कि प्रकृति जैसी है वैसे रहने दो उसके साथ छेड़खानी मत करो
जब हम किसी दूसरे सुदूर एरिया से फ्लोरा एंड फौना को लाकर किसी दूसरे एरिया में लगाएंगे तब वह काफी खतरनाक भी हो सकता है और देश ने यह खतरनाक प्रयोग अंग्रेजों के जमाने में देखा था जब एक अंग्रेज किसी कैरेबियन में एक तालाब में जलकुंभी के फूल को देखकर यह सोचा कि यह कितना सुंदर लग रहा है और इसे भारत के अपने बंगले के पीछे तालाब में उगाने के लिए वह जलकुंभी के कुछ पेड़ कैरेबियन से भारत लाया और धीरे-धीरे कुछ ही दशकों में जलकुंभी ने पूरे भारत के जलीय इकोसिस्टम को बर्बाद कर दिया
ठीक यही काम 60 के दशक में कच्छ के बन्नी प्रदेश में कांग्रेस सरकार द्वारा अफ्रीका से लाया गया जंगली बबूल ने किया
कांग्रेसियों ने यह नहीं सोचा कि पेड़ कोई भी हो उसे पानी चाहिए नतीजा यह हुआ कि एक जंगली बबूल जिसे दिन में 26 से 27 लीटर पानी चाहिए वह अपनी जड़ों को जमीन के भीतर फैलाता गया और जमीन को और ज्यादा बंजर और छार युक्त बनाता गया नतीजा यह हुआ कि जो बन्नी प्रदेश कभी एशिया का सबसे बड़ा घास का मैदान कहलाया कहलाता था वहां घास उगना बंद हो गया और धीरे-धीरे पूरे एरिया में जंगली बबूल ने अपना कब्जा कर लिया
और यह जंगली बबूल किसी काम का भी नहीं होता इसे कच्छ के कोई भी जानवर नहीं खाते क्योंकि इसमें बड़े बड़े कांटे होते हैं जंगली बबूल को खाने वाले प्राणी सिर्फ मेक्सिको और अफ्रीका में पाए जाते हैं दरअसल हमारी प्रकृति किसी विशेष एरिया में वैसे ही फ्लोरा एंड फौना डिवेलप करती है जिसे खाने वाले प्राणी उस एरिया में मौजूद हो ताकि इकोसिस्टम चलती रहे
अफ्रीका के जिराफ और जंगली हाथी और बिल्डरबिस्ट इसे खूब चाव से खाते है और उनके खुर से इन जंगली बबूल की वृद्धि कंट्रोल रहती है
लेकिन गुजरात में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में कोई ऐसा पगड़ी नहीं पाया जाता जो इस जंगली बबूल को खाए
जब घास के मैदान खत्म हो गए तो घास के मैदानों में अंडे देने वाले तमाम पक्षी विलुप्त हो गए घास के मैदानों में रहने वाले तमाम जंगली जानवर जिसमें जंगली खरगोश आदि थे वो भी विलुप्त हो गया और जंगली खरगोश को खाने वाले कच्छ की लोमड़ी भी विलुप्त हो गई
यानी सिर्फ 4 दशक में बन्नी प्रदेश का पूरा इकोसिस्टम बर्बाद हो गया
अब सैकड़ों जेसीबी लगाकर पूरे बन्नी प्रदेश से कांग्रेस के इस कुकर्म यानी जंगली बबूल को उखाड़ा जा रहा है और इन्हें जलाया जा रहा है ताकि इनके बीज नष्ट हो जाए और ऐसा कुछ वर्ष करने के बाद हो सकता है धीरे-धीरे बन्नी प्रदेश का इकोसिस्टम वापस लौट आए
आज वैज्ञानिकों ने चेतावनी दिया है कि इस जंगली विदेशी बबूल यानी गांडा बावल को पूरी तरह से उखाडा जाए नष्ट किया जाए वरना यह भारत के पूरे इकोसिस्टम को बर्बाद कर देगा
Peace if possible, truth at all costs.