लेकिन, फिर भी क्या आप जानते हैं कि आखिर सनातनियों के इलाके में भी ये मजारें बन कैसे जाती है ??
उनका मजार बनाने का तरीका बेहद सिस्टेमेटिक है...!
मान लो... आप किसी सनातनी बहुल इलाके में रहते हो... जहाँ कटेशर-फटेशर का नामोनिशान नहीं है.
लेकिन, ... कुछ समय बाद वहाँ पर सड़क किनारे कोई कंजर सा फटेहाल भिखारी दिखाई देने लगेगा जो सबसे भीख मांगता रहेगा..
हालांकि, वो सिर्फ दिन में ही भीख मांगेगा और शाम में वो कहीं और चला जायेगा.
इसीलिए, अधिसंख्य लोग उसपर ध्यान नहीं दे रहे हैं कि... बेचारा गरीब है तो मांगने दो.
फिर, वो एक दो-दिन रात में भी नहीं जाएगा और वहीं सड़क किनारे प्लास्टिक या चादर बिछा कर सो जाएगा.
इसके बाद वो लगातार वहीं सोने की आदत बना लेगा.
तदुपरांत... वो सड़क किनारे 1-2 हरा झण्डा गाड़ लेगा.
आप उसपर अभी तक ध्यान नहीं दे रहे हैं क्योंकि जब आप उसे बोलने जाते हैं तो वो रो-रो कर अपनी गरीबी और मानवता का दुहाई देने लगता है.
और, फिर आपको भी लगता है कि इसका क्या है... जब चाहेंगे धकिया के भगा देंगे.
इसीलिए, आप भी निश्चिन्त रहते हैं.
लेकिन, झंडा गाड़ने के कुछ समय बात वो थोड़ी सी जगह में 2-4 ईंट रखकर उसपर हरा चादर ढक देगा और आपको लगेगा कि शायद वो अपने पूजा पाठ के लिए ऐसा किया होगा.
फिर, वो 2-4 ईंट बढ़ते बढ़ते 20-40 ईंट में बदल जाएगी...
और, हो गया मजार तैयार.
इसके साथ ही कल जो भिखारी था अब आपके इलाके का मौलवी बन चुका है और आपके ही आस पड़ोस के लोग अब वहाँ अपनी मन्नतें मांगने के लिए वहाँ अगरबत्ती-दीया आदि जलाने लगे हैं.
फिर.. आप चाह कर भी उस मजार को वहाँ से नहीं हटवा सकते क्योंकि अगर गलती से आपने ऐसी कोशिश भी की तो... पहले तो आपके आस-पड़ोस वाले ही आपका विरोध करने लगेंगे.
और, हो सकता है कि समाज में कम्युनल हार्मनी बिगाड़ने के चार्ज में आप अंदर भी हो जाएं.
इसीलिए, अब वो मजार वहाँ पर पक्का हो चुका है...!
कहने का मतलब है कि... आपको अक्ल हो या न हो...
लेकिन, सामने वाले को पूरी अक्ल है.
और, वे स्टेप बाई स्टेप आगे बढ़ते हैं.
फिर, जबतक बात आपको समझ आती है तबतक चीजें आपके हाथ से निकल चुकी होती है.
ये सिर्फ मजारों के रूप में आपके जमीन का अतिक्रमण तक ही सीमित नहीं है...
बल्कि, बहुत ही सलीके से आपके धर्म और पर्व त्योहारों का भी अतिक्रमण कर रहे हैं.
एक छोटा सा उदाहरण दीपावली और पटाखों का ही लेते हैं...
सन 2001 में सुप्रीम Cort में एक याचिका डाली गई कि दीपावली में रात भर होते रहने वाले पटाखों के शोर के कारण सोना मुश्किल होता है..
इसीलिए, ऐसा करने से रोका जाए.
तो, इसकी सुनवाई करते हुए Cort ने सुझाव दिया कि पटाखे केवल शाम 6 से 10 बजे तक मात्र चार घण्टे के लिए फोड़े जाए.
साथ ही इसको लेकर जागरूकता फैलाने के लिए स्कूलों में बच्चों को बताया जाए.
ध्यान रहे कि.... ये केवल एक सुझाव वाला निर्णय था ना कि पटाखे फोड़ने पर आपराधिक निर्णय.
साथ ही मजेदार बात यह थी कि ये सुझाव केवल दीपावली पर ही था क्रिसमस और न्यू ईयर पर नहीं.
(मतलब कि उन्होंने भीख मांगने के लिए एक कंजर सा फटेहाल भिखारी आपके मुहल्ले में बिठा दिया)
हालांकि, सुप्रीम Cort का ये सुझाव किसी ने नहीं माना लेकिन उसका विरोध भी नही किया.
इससे उनका मनोबल बढ़ गया और 2005 में फिर और याचिका लगी.
इस बार कोठा ने पटाखो को ध्वनि प्रदूषण से जोड़कर आपराधिक कृत्य बना दिया अर्थात रात 10 बजे के बाद पटाखे फोड़ना आपराधिक कृत्य हो गया.
(मतलब कि अब वो भिखारी रात में प्लास्टिक बिछा कर सोने लगा)
लेकिन, हिनूओं ने फिर भी विरोध नही किया... उल्टे बहुत लोग खुश भी गए कि चलो अब 10 बजे के बाद आराम से सोयेंगे.
उधर स्कूलों के माध्यम से लगातार बच्चों के अंदर दीपावली के पटाखों से प्रदूषण ज्ञान दिया जाने लगा.
इसके बाद 2010 में NGT की स्थापना हुई और 2017 में तीन NGO एक साथ सुप्रीम कोठा पहुंचे और उन्होंने दीपावली के पटाखो को ध्वनि और वायु प्रदूषण के लिए खतरनाक बताते हुए तत्काल प्रभाव से बैन करने की मांग की.
परिणामस्वरूप, पहली बार सुप्रीम कोठा ने पहला बड़ा निर्णय देते हुए दिल्ली में पटाखो की बिक्री पर रोक लगा दी.
(मतलब कि उन्होंने 10-20 ईंट लगाकर उसे हरी चादर से ढक दिया)
लेकिन, फिर भी हिंदुओ ने तब भी कोई विरोध नही किया... बल्कि, प्रदूषण के नाम पर समर्थन ही किया.
क्योंकि, तबतक स्कूलों में सिखाई गई बात बच्चे में भी बोलने लगे थे कि... पटाखों से वायु प्रदूषण होता है इसीलिए, पटाखे नहीं चलाने चाहिए.
लेकिन, बात इतने पर ही नहीं रुकी बल्कि इन सबसे उत्साहित होकर वे 2018 में पुनः कोर्ट पहुंच गए.
और, इस बार पटाखे फोड़ने पर ही बैन लगा दिया गया और झुनझुने के रूप में ग्रीन पटाखे पकड़ा दिए.
इस बार छिटपुट विरोध हुआ लेकिन तथाकथित जागरूक हिन्दू ही पटाखे बैन करने के समर्थन पर उतर गए और विरोध करने वालो को कट्टर, गंवार, अनपढ़, जाहिल, पिछड़ी सोच ना जाने क्या क्या कहने लगे.
फिर, धीरे धीरे खेल मीडिया से लेकर सेलिब्रिटी तक पहुंच गया.
जहां दीपावली के ऐन पहले अचानक से प्रकट होकर क्रिकेटर और बॉलीबुड प्रदूषण पर ज्ञान देने लगे.
और, मीडिया में लम्बी लम्बी डिबेट्स कर ब्रेनवॉश किया जाने लगा कि दिल्ली गैस चेम्बर बन गई है जिसका एकमात्र कारण दीपावली पर जलने वाले पटाखे है जिन्हें यदि बैन नही किया गया तो दीपावली के अगले दिन सब सांस से घुटकर मर जायेंगे.
इतना सब सफल होने के बाद 2020 में तीसरा बड़ा कदम उठाते हुए पटाखे बैन दिल्ली से बाहर निकलकर पूरे देश मे लागू कर दिया गया...
और, सिर्फ दो घंटे की ही आज्ञा दी गई.
और, इस बारे में कुतर्क दिया गया कि भगवान राम के समय पटाखे नही थे.
जबकि जरूरी नहीं है कि परंपराएं मूल से ही निकले.
क्योंकि, परंपराएं बाद में जुड़कर सदियों से चलकर त्योहार का मूल हिस्सा बन जाती है जैसे क्रिसमस में क्रिसमस ट्री और अजान में लाउडस्पीकर जो मूल समय मे नही थे.
लेकिन, वहां कोई कुतर्क नही करता.
यही है सनातनी बहुत इलाके में मजार बनाने की विधि.
जिस बारे में अगर आप शुरू से ही सचेत नहीं रहोगे तो फिर बाद में आपके करने के लिए कुछ रह ही नहीं जाएगा.
वैसे, यह जानकर आपकी हैरानी की कोई सीमा नहीं रहेगी कि... पटाखे... IIT रिसर्च के अनुसार प्रदूषण के मुख्य कारकों में top 10 में भी नही है.
लेकिन, फिर भी अब हालत ये है कि अब राजस्थान/दिल्ली जैसे राज्य बिना कोर्ट के आदेश के बिना दीपावली पर खुद ही पटाखे बैन करने लगे है.
परंतु, ये राज्य क्रिसमस, न्यू ईयर आदि पर चुप रहते है.
ये हालत तब है देश में 80% हिंदू हैं.
और हाँ...
ये सिर्फ दीपावली और पटाखों की कहानी नहीं है बल्कि इसमें आप... होली से रंग, दीपावली से पटाखे, दशहरे से रामलीला, जन्माष्टमी से दही हांडी, सबरीमाला मंदिर की मान्यता आदि भी जोड़ते चले जाओ..
क्योंकि, बात सिर्फ पटाखे या पानी बचाओ से सबंधित नहीं रह जायेगी बल्कि धीरे धीरे ये अतिक्रमण बढ़ता ही जायेगा और अंत आपके हर पर्व त्योहार को प्रतिबंधित कर दिया जाएगा या अपने मन-मुताबिक ढाल लिया जाएगा.
इसीलिए, अगर आपको अपने सनातनी इलाके में मजार बनने से रोकना है तो उसके लिए आपको उसे प्रारंभिक चरण में ही रोकना होगा.
और, वो चरण है... हरा कपड़ा बिछाकर भिखारी को बैठने ही न हो..
या फिर, जैसे ही वो कोई झंडा गाड़ने की कोशिश करे तो उसके पिछवाड़े पर 4 लात मार कर उसे चलता कर दो.
जिस तरह... कोठा , कटेशर के मामले में पहले ही सरेंडर कर देता है कि अगर ये मजहबी आस्था की बात है तो हम उसको नहीं सुनेंगे.
याद रखें कि... देशभक्ति और धर्मभक्ति अलग अलग नहीं है.
क्योंकि, हिंदुस्थान तभी तक सुरक्षित है जबतक कि देश के बहुसंख्यक हिन्दू सुरक्षित हैं.
और, देश के हिन्दू तभी तक सुरक्षित हैं जबतक उनकी मान्यता, उनके पर्व-त्योहार और उनकी परम्पराएँ सुरक्षित है.
Peace if possible, truth at all costs.