हे भारत के रामजगों मैं तुम्हें जगाने आया हूं...

0


भौगौलिक भारत ही नहीं, भारतीय सभ्यता संस्कृति ही नहीं, आध्यात्मिक, सामाजिक, राजनैतिक, पारिवारिक यहां तक की व्यक्तिगत स्तर पर व्यक्ति की चेतना तक को खण्ड खण्ड करके भारत की जनता, परिवार, समाज और राष्ट्र के समूल विनाश का भयानक षडयंत्र, सीमित नहीं असीमित है!


इसके कर्ता, निश्चित ही देशी, विदेशी, धर्मांतरण मिशनरी, जोशुआ जेहादी ताकतें हैं, बड़े बड़े फाउंडेशन और ट्रस्ट हैं, जो मूलतः ब्लैक को व्हाइट करने का, नेता, अभिनेता, व्यापारी, मिशनरीज के धन शोधन का, गुरुओं के नाम पर घंटालों का माफिया हैं! 


लेकिन इसके पीछे मूल कारण है, हमारी व्यक्तिगत कमजोरी जो हमें अलग अलग करके हमारे भीतर वैक्सीन की ही तरह, प्रवेश करवाई गई है!


हम कहते हैं... मन में राम, तन में राम, रोम रोम में राम है! ऐसे में अतीत के बड़े बड़े सामूहिक हिंदू परिवारों, से वर्तमान के छोटे छोटे परिवारों में व्यक्तिगत जीवन के संघर्ष से जूझते बच्चे, बूढ़े, युवा एक नहीं बल्कि सभी केवल भौतिक साधनों के जुगाड़ को वास्तविक जीवन मान मुद्रा संग्रह को जीवन के केंद्र में रख, साम दाम दण्ड भेद धनार्जन हेतु सभी मर्यादाओं को धता बता कर, अपने मन, तन, रोम रोम, में खण्डित राम लिए, संघर्ष कर रहे हैं!


यही वजह है, अलग हुआ व्यक्ति, तमाम तरह के अनैतिक कार्यों और व्यसनों से जुड़कर शारीरिक तौर पर भी, कमजोर होता जा रहा है, और वास्तविक आनंद के क्षण कम होते जा रहे हैं, धन के सदुपयोग की बजाय उसके दुरुपयोग की लत और उसके साथ ही अधिक धन की आवश्यकता उसे परिवार से दूर बहुत दूर करती जाती है और इसी में पूरा जीवन व्यय (खर्च) हो जाता है!


व्यक्ति को व्यक्ति से बिना किसी स्वार्थ के जोड़ना होगा, अपने परिवार को इकठ्ठा करना होगा, खंडित होते समाजों को संगठित करना होगा हमारे गांव, शहर, और राष्ट्र अपने आप मजबूत हो जायेगा!


इसके साथ ही हमारे आस पास, परिवार, मोहल्ले, गांव, शहर, और पूरे भारत में अपने पैर पसारती छिछोरी गंदगी, कब्जा संस्कृति से भी निजात मिलेगी! 


शुरुआत स्वयं से, परिवार से करनी होगी, फिर मोहल्ला और गांव, पापी मन के राम के बैरी, शत्रुओं का सूपड़ा साफ हो जाएगा, कहीं लिख लो ताकि स्मरण रहे!


भारत का वास्तविक विकास यही है इसी में सबका साथ आवश्यक है, इसी को सबके विस्वास से शुरू किया जा सकता है, इसी के लिए योगियों के, संतों के हाथों में सत्ता सौंपने का महायाग किया गया, सौ वर्ष लगे, लेकिन अभी भी राम को केवल राजनीति समझने वाले मूर्खों की कमी नहीं, राम तो सूत्र हैं संस्कृति का, धर्म का आधार!


इसलिए आज भव्य मंदिर से बिलबिलाए हुए असुरों का दावा है की टेंट से वापस भव्य मंदिर में पहुंचाए गए राम मंदिर में वो नमाज पढ़ेंगे!? 


वो कहते हैं, की जैसे तुर्की के इस्तानबुल में रोमन सभ्यता के हागिया सोफिया को खत्म कर ईसाईयों ने इसे ऑर्थोडॉक्स चर्च, यानी अंधविश्वास मानने वाले ईसाईयों की चर्च बनाया, बाद में 1453 में उस्मान बिजांतिनो ने इसे मस्जिद बना दिया, 1953 में कमाल अतातुर्क ने इसको संग्रहालय बनाया, लेकिन हाल ही में 2020 में मुस्लिम जेहादियों ने इसे दोबारा मस्जिद बना दिया! इतना तो पता ही होगा कैसे और क्यों!?


कुछ समझे, आखिर क्यों कहते हैं की अपने जीवन में कम से कम एक बार, बिना लालच के, बिना इच्छा के, राम का चरित्र पढ़ें!?


तुलसी के राम केवल पीचडी का ही नहीं हैं, बल्कि इतने वृहत हैं की मानस के इस विशेष शोध के माध्यम से आप जानेंगे की राम कोई एक व्यक्ति नहीं, बल्कि उच्च मर्यादाओं का एक अनुकरणीय आदर्श शिखर हैं! 


साधु, संत, धर्म, जाति, राजा और प्रजा से लेकर परिवार में एक व्यक्ति के पारिवारिक दायित्व का ऐसा संदर्भ हैं राम, इसलिए स्वयं को मिटने से बचाना है, तो अपने राम को जगाना होगा!


वोट देने के लिए नहीं, मत का दान करने के लिए नहीं, जीवन का सही उपयोग समझने के लिए आपको अपने राम को खण्डित होने से, सिकुलर पापियों के दलालों से बचाना होगा!


वरना अभिषेक उपमन्यु टाइप खाओ खुजाओ बत्ती बुझाओ वाले मल उत्पादक यंत्र बनकर रह जायेंगे! 


तन बचाने, धन कमाने के लिए, अपने ही मन के राम का, विनाश करने वाले एक ऐसे स्टैंडअप कॉमेडियन, जिन्हें अंग्रेजी लुटेरों के दलाल, मॉरिस का नाम एक धाकड़ नाम लगता है, इन्हें!? 


खदीजा या मोहम्मद, जीसस या मेरी का अपनी कॉमेडी में जिक्र तक करने में भय होता है, लेकिन सियाराम का अपमान करने में दिक्कत नहीं होती, इनके सामने बैठे, भंडपदई प्रमोद, का आनंद लेने को आतुर, बिना रीढ़ के, अपने ही राम से विमुख, अन्य हिंदू युवक युवतियां भी इसी बीमारी का शिकार हैं!?


मौज लो, रोज लो, ना मिले तो खोज लो, जीवन आनंद है, लेकिन परमानंद हैं राम! तो अपने मन के, तन के, परिवार के राम को खण्डित होने से बचाएं तभी बनेगा अखण्ड भारत!

Post a Comment

0Comments

Peace if possible, truth at all costs.

Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !