डरिए मत! मेरी बात का भरोसा रखिए!
हम यकीनन बहुत डरे हुए हैं। हमारे घरों में बच्चियां हैं, बहनें हैं, बुआ और मौसी हैं। हमारा डरना यह बताता है कि हम सजग हैं, हम सजग हो रहे हैं।
पुनः कह रहा हूं, डरिए मत। आप चाहे दांत चियार रहे हैं, चाहे हँसी उड़ा रहे हैं। चाहे श्रद्धा को अपशब्द कह रहे हैं चाहे उसके घरवालों को, परन्तु आप डरे हुए हैं अन्यथा आपकी प्रतिक्रियाएं नहीं निकलतीं।
बचपन में मेरा कोई अफजल मित्र नहीं रहा। दूर दूर तक से भी कोई बुरी खबर नहीं सुनता रहा। एक भी नहीं। न ही हमारे घर वालों ने कभी भी उनकी बुराई की कहानियां सुनाया। वे बस घृणा की कहानियां सुनाते थे, वो भी हल्के फुल्के हास्य के साथ।
बस इतने से ही हमारे मन में यह बात धंस गई है कि वे घृणा के योग्य हैं। हम उनके साथ बैठकर पानी पीने की तो छोड़िए, हम उन्हें अपने गांवों में घुसने पर भी शक की नजर से देखना सिखाए गए थे।
जबकि, जबकि तब वे कुछ भी गलत नहीं करते थे। बस, हमारे मन में हास्य की छोटी छोटी कहानियां डाल दी गईं, और वे पल्लवित होती रहीं। धीमे धीमे #अफजलों ने अपना रंग दिखाना आरंभ किया तो उन कहानियों ने भी अपना विकराल स्वरूप दिखाना शुरू कर दिया।
बहुत साधारण विज्ञान है यह बच्चों के लिए। बच्चों का दिमाग ऐसे ही कार्य करता है। ये जो "फलां समाचार दिखाओ, फलां बातें बताओ" आदि की मूर्खतायें चल रही हैं न! ये बच्चों के मन में एक मेंटल बैरियर बना देंगी और जैसे ही आप वीभत्स बातें बताना आरम्भ करेंगे, बच्चों के दिमाग में मेंटल बैरियर बनना आरंभ हो जायेगा।
वे जिद्दी बन जाएंगे और फिर आपकी कोई बात सुनेंगे नहीं। वीभत्स बात यह भी हो सकती है कि किसी भी दुर्भाग्यपूर्ण समय में वे, आपके प्रति क्रोध और जिद्द में भरकर वही कार्य कर सकते हैं जो आपको सबसे बुरा लगे।
"पापा तो हमेशा नफरत ही बताते हैं, मम्मी हमेशा दुनिया को बुरा बताती हैं, जबकि मेरी/ मेरा दोस्त अफजल/ सलमा तो कितने अच्छे हैं।"
एक बार बच्चों के दिमाग में यह बात बैठ गई, तो बच्चे वही करेंगे जो आप मना करेंगे। जिधर का फूल तोड़ने के लिए मना करने का बोर्ड लगाया जाता है, सबसे अधिक फूल उधर के ही टूटते हैं।
समझदार बनिए, बच्चों को समझाने के लिए उनके मन को समझना पड़ता है। हर कोई मनोवैज्ञानिक के घुंघराले बाल मत बनो।
"खो दोगे अपने बच्चे।"
समझदार लोगों से बात करिए, उनकी सलाह सुनिए। हर कोई बच्चों को पढ़ा-समझा लेता तो टीचर बनने की योग्यता नहीं पूछी जाती स्कूलों में।
सीधे समाचार चैनल पर मत बिठा दीजिए उनको। केवल छोटी छोटी कहानियां सुनाइए उनको। समाचार दिखाना ही है तो उनको मत "दिखाइए"। उनसे कुछ मत कहिए। केवल "आप समाचार देखिए।" चुपचाप। बच्चे उतने भर से देख लेंगे। आपसे दस गुना तेज होता है बच्चों का दिमाग। वे आपके देखते देखते ही समाचार देख लेंगे और आपको पता भी नहीं चलेगा। आप उनसे कुछ मत कहिए।
"उनके मन में स्वयं घृणा उभरने दीजिए।" आप कहेंगे तो उसका उल्टा असर भी होगा और गाली भी खायेंगे आप ही।
पापा ने कभी भी नहीं मुझसे कहा कि अफजलवा से नफरत करो। वे तो बस एक बार अपनी येज्डी से आ रहे थे, मैं पीछे बैठा हुआ था। उनका एक अफ़ज़लवा दोस्त (रास्ते में उसका गांव पड़ता था) उनके आने के टाइम पर रास्ते में खड़ा था। पापा को रोक कर बोला, "पंडी जी! बिटिया की शादी है। आपको जरूर आना है और खाना खाकर जाना है। आपके लिए ब्राह्मण रसोइया लगवा देंगे।"
पापा ने भी हंसकर कहा, "तू कलीग है! तेरी बिटिया मतलब कि मेरी बिटिया! कुछ पैसे भिजवा देंगे, धूमधाम से शादी कर। बाकि तू ये कैसे सोच लिया कि हम सनातनी होकर एक मलेच्छ का अन्न खा लेंगे? दुबारा कहना भी मत क-ट वे, नहीं तो तू ही शर्मिंदा होगा।"
वो भी हंस पड़ा, अच्छे से जानता था पापा को।
वहां किसी ने मुझसे कोई बात की, मुझे याद नहीं। किसी ने मेरा जिक्र भी किया, मुझे कुछ याद नहीं। मैं बस पापा के पीछे गाड़ी पर बैठा था, और यह घटना एक इतिहास की तरह मेरे दिमाग़ में छप गई।
आप डर रहे हैं, यह अच्छा है। आप मुझे पढ़ रहे हैं तो आप सतर्क हैं। बस केवल मेरी और अफजलवा की नोंक झोंक को अपने बच्चों को कभी कभी जोक के नाम पर सुना दिया करिए। कभी मेरी स्टाइल में अकबरवा और बीरबल (जी) की कहानी पढ़कर सुना दिया करिए।
उनका बुलबुला अब फटने वाला है। उनका तेजाब उनके ऊपर ही गिरने वाला है। जल्दी ही, आप भी देखेंगे, सारी दुनिया देखेगी। इनके विरुद्ध इतनी आवाज़ें कभी उठी थीं? इतने लोग आक्रोश में आए कभी? अब लोग जाग रहे हैं, आपकी सोच से भी कई गुना तीव्र वेग से।
आपको कुछ नहीं करना है, यदि आप केवल "धार्मिक" हो जाते हैं तो। धर्म अपनी भी रक्षा कर लेगा और आपके परिवार की भी। जब आप नहीं थे, तब भी धर्म था, जब आप नहीं रहेंगे तब भी धर्म रहेगा। यही धर्म आपके अपनों की रक्षा करेगा, आपके बाद भी। धर्म ने ही आपको अभी तक सनातनी रखा है क्योंकि आपके पुरखे धार्मिक बने रहे।
बच्चों को व्रत रहना सिखाइए, उनको धर्म की कहानियां सुनाइए। वे अपने आप सबकुछ समझ जायेंगे। और जब वे अपने आप समझेंगे तभी उनमें से कृष्ण और अर्जुन बनेंगे, तभी उनमें पद्मिनी, गार्गी और मैत्रेई पैदा हो जाएंगी।
राजा लोग तो युद्ध में होते थे, उस समय कौन जबरदस्ती करता था जौहर के लिए? कोई नहीं। उन सभी स्त्रियों को पता था कि जीते जी तो छोड़िए, मलेच्छ की इतनी भी औकात नहीं कि वो मरने के बाद भी हमारे शरीर को छू पाएं।
आप अपनी बच्चियों को जौहर की कहानियां सुनाइए। उनके अपने आप प्रश्न उठेंगे, तो उनको प्रेम से समझाइए, बताइए कि यह इतनी जाहिल कौम है जो मरे हुए शरीरों को भी अपमानित करती है।
जितना हमारी दादी नानियो ने किया, बस उतना ही करवाइए। वे बूढ़े क्या करते थे? वे केवल धर्म की कहानियां अपने पोते पोतियों को सुनाते सिखाते थे। और आपने उनको उनसे दूर कर दिया।
मैं ऐसी औरतें भी जानता हूं जो अपनी सास से इस तरह चिढ़ती हैं कि उनकी परछाईं भी अपने बच्चों पर न पड़ने दें? कारण? कारण की वो बुढ़िया टोक देती है, "देखो, बच्ची का ये कपड़ा ठीक नहीं है।"
अबे कौन जाहिल बोला है कि कपड़े छोटे होने से तुम सुन्दर दिखोगी? वही जाहिल मां बाप ऐसे कपड़े पहनाते हैं, जो स्वयं ऐसी बुद्धि के होते हैं। मुझे पता है कि यहां बहुत से सुलग उठेंगे और फ्रिज वाली बात भूल जायेंगे। क्योंकि ये हैं ही ऐसे।
अरे मूरखाओं, त्रिजाटाओं, सूर्पनखाओ... मुझे केवल इतना बता दो चढ्ढी और ब्रा जितना केवल पहना कर अपनी बच्चियों को भेजती हो बाहर, इसका प्रयोजन क्या है? उससे गरमी नहीं लगती है? हवादार रहता है?? क्या, कारण क्या है? उत्तर दे दो आज।
"मेरी जिन्दगी मेरे नियम" की ढपली बजाने वाली भी यह जानती है कि छोटे कपड़े पहना कर भेजने का अर्थ ही यह है कि लोग सेक्सुअली घूरें। इसके अलावा कोई फ़ायदा नहीं है। है तो मुझ दकियानूस से आकर बात करो, मुझे समझाओ। मैं तो खुद चढ्ढी में घूमना चाहता हूं यार, तुम फ़ायदा तो बताओ। मुझे छोड़ो, मेरे बाप समान लोग भी केवल जांघिए में रहना चाहते थे। लेकिन वहां कारण केवल गरमी और अफनाहट है, सेक्स प्रदर्शन नहीं।
अभी कल पड़ोस में (डिटेल मत पूछिएगा), चौदह साल के लड़के की जन्मदिन की पार्टी थी। केवल बच्चों को बुलाया गया था। सुनने में आया है कि एक अनपढ़ मां, जिसके पास पैसे की कमी नहीं है (पति बेचारा ही है, चूतिया भी), बस बुद्धि नहीं है। वो अपनी दो बेटियों को जींस और टाइट ब्रा (पहली बार ऐसे शब्द लिख रहे हैं हम जीवन में 🙏) जैसे कपड़ों में पार्टी में भेजी।
सोचिए, कि देखने वाले क्या क्या, और कैसा कैसा सोच रहे होंगे। तुम मूढ़मती यह कहकर सोशल मीडिया पर कहो कि पुरुष की नजर ही गन्दी होती है, तो इससे तुम्हारी बेटियां मलेच्छ का शिकार होने से बच जाएंगी?
तब तुम खुद ही विक्टिम कार्ड खेलोगी/ खेलोगे।
भऊसीढ़ी वालों... पेरेंटिंग एक कला है, एक तपस्या है। तुम सालों की अतृप्त इच्छाएं पूरी करने के साधन नहीं। मुझे कभी कभी तो इतना क्रोध आता है कि ऐसे बच्चों के मां बाप की जांच होनी चाहिए। कौन ससुरी/ ससुरा अपनी बेटी को नंगी बाहर भेजना चाहती है, पहले उसकी जांच हो। निन्यानबे प्रतिशत में वही गलत साबित होंगे।
मांसाहार को रोकना ढकोसला है। कितने सारे चुटिये इस पर तर्क करने आ जाएंगे। भोंसड़ी की अपनी जीभ संभलती नहीं है और संसार को ज्ञान देने आ जाते हैं कि मांसाहार करो, इसमें यह यह यह तर्क है।
तामसिक आहार क्या होता है? तमस क्या होता है? बक साला..!!
तुमको लग रहा है चुटिये कि तुम बस भाषण दे ले रहे हो, लाइक बढ़िया मिल रहे हैं, तो अपनी बेटी भतीजी को बचा लोगे? घमंडी और मूर्ख है तू। तू आपनी बहन बेटी के हर पल साथ रहेगा रक्षा के लिए? तू बहुत वीर है? अपनी बहन बेटी को ताले में रख देगा?
अबे दो कौड़ी के चुटिया... उसने श्रद्धा के साथ साथ चार (इतना ही पता है) लड़कियां और पटाई थीं। और ये सारी "इंटरनेट" से पटाई थीं। तू अपने घर में इंटरनेट भी बंद कर देगा?
अबे पढ़ा लिखा जाहिल, ऊर्जा चाहे सकारात्मक हो या नकारात्मक.. सात तालों में बंद कर दोगे तो भी वह बाहर आयेगी ही। ज्यादा औकात दिखाओगे तो तुम्हारा सीना फाड़ कर बाहर आयेगी।
हे प्रिय जाहिलोँ, इसीलिए कह रहे हैं कि फोड़े को बाहर से मत ढको। भीतर एक ऐसी चेतना पैदा कर दो कि वो किसी फोड़े को पनपने ही न दे।
आज मुझे लगता है कि... आज भारत का सबसे सुखी, सबसे कॉन्फिडेंट इन्सान वही होगा जिसकी पुत्री, बहन, बुआ, मौसी ने उसको भरोसा दिलाया हो कि.... "चिन्ता मत करिए। जीवन में हमने कुछ भी किया हो न किया हो, परन्तु किसी मलेच्छ की नजर पड़ने से पहले हम जौहर कर लेंगे, या फिर वो ही गली के नाली में तड़पता आखिरी सांसे गिनता मिलेगा।
जरा सोचिए... सोचिए, और केवल सोचिए! यह सब क्या है और क्यों है? क्यों आपकी लड़कियां फ्रिज में पैक मिल रही हैं? सूटकेस में भी?
क्योंकि आपने बचपन में उन्हें कोई कहानी नहीं सुनाई। कोई भी नहीं। हम कैसे बचे, औरंगजेब किनकी रक्तसनी डेढ़ मन जनेऊ तौलने के बाद ही सुबह का नाश्ता करता था, और उसको यह जनेऊ मिलते कहां से थे। जिस दिन आप अपने बच्चों को यह सब जौहर आदि बताना शुरु किए न, उसी दिन से आपको सुख की सांस मिलने लगेगी।
धर्म की ओर लौटिए, और बिना शर्त लौटिए। फलाने ब्राह्मण हैं, धिमाके क्षत्रिय हैं, इसे मुद्दा मत बनाइए। इस मुद्दे से आप जीत पाएं या न जीत पाएं, पर इन मुर्दा कौम जोम्बियों से न आप बच पाएंगे न ही आपका परिवार।
"धर्म... धर्म... धर्म.....!! लौटिए... आइए... मैं (मैं नहीं, कृष्ण), मैं बाहें पसारे खड़ा हूं। आपको प्रेम भी करूंगा, आपकी रक्षा भी।"
डरिए मत, केवल सतर्क रहें। आप सुरक्षित हैं, आपका परिवार सुरक्षित रहेगा। अधर्म का नाश हो.. धर्म की स्थापना हो... हर हर महादेव...!
मस्त रहें, निश्चिंत रहें, एन्जॉय करें, महादेव आपका भला करेंगे।
"जय हिन्द..!!"
Peace if possible, truth at all costs.