मृत्यु की घटना का सामना करने के लिए पूर्व तैयारी
सूचना -- "मृत्यु" एक दु:खद घटना है। जब किसी की मृत्यु होती है, तो परिवार के लोग बहुत दुखी हो जाते हैं। क्योंकि वे पहले से इस घटना का सामना करने की तैयारी नहीं करते।
यदि संसार के लोग मृत्यु की घटना का सामना करने की पहले से तैयारी करें, तो ऐसी घटना होने पर इतने दुखी नहीं होंगे, विचलित नहीं होंगे, जितने कि आज हो जाते हैं।
नीचे लिखे लेख पर यदि संभव हो, तो प्रतिदिन चिंतन किया करें। अथवा 10 15 दिन में 1 बार, अथवा कम से कम एक महीने में 1 बार तो अवश्य ही इस लेख को पढ़ा करें, इस पर चिंतन करें, और मृत्यु की घटना का सामना करने की पहले से तैयारी रखें।
यदि आप ऐसा कर लेंगे, तो ऐसी घटना होने पर आप विचलित नहीं होंगे, घबराएंगे नहीं। स्वयं को भी संभाल लेंगे, और अपने परिवार जनों को भी।
लेख आरंभ -- ईश्वर का यह नियम है, कि जो भी कोई व्यक्ति संसार में आता है, उसे एक न एक दिन जाना ही पड़ता है। कोई देर से जाता है, तो कोई जल्दी चला जाता है। कब कौन चला जाएगा, इसकी किसी को पूर्व सूचना नहीं होती। अचानक कभी भी कोई भी जा सकता है। "यह संसार का अटल सत्य है।" जिसे हम सबको न चाहते हुए भी स्वीकार करना पड़ता है।"
यह ईश्वरीय विधान है। अब ईश्वर के विधान को स्वीकार तो करना ही पड़ेगा, चाहे प्रेम से स्वीकार करें, चाहे दुखी होकर। फिर भी जो ईश्वर का विधान है, उसे प्रेम पूर्वक, धैर्य पूर्वक स्वीकार करना ही अच्छा होता है। इससे व्यक्ति का दुख कम हो जाता है, और वह अपने भविष्य को संभाल लेता है। अतः इस घटना को, संसार के अटल सत्य को, ईश्वर से शांति सद्बुद्धि धैर्य आदि की प्रार्थना करते हुए प्रेम पूर्वक स्वीकार करें।
मृत्यु की घटना होने पर, परिवार में सबको मेरा यह संदेश देवें ---
वेदों में बताया है, कि -- यह शरीर अनित्य है। परिवर्तन संसार का नियम है। जो आज है, पता नहीं, कल वह रहेगा या नहीं। "जिसका जन्म होता है, उसकी मृत्यु अवश्यंभावी है।" इस नियम को कोई भी बदल नहीं सकता। "आत्मा तो अजर अमर अविनाशी है। न उसका कभी जन्म होता है, और न ही मृत्यु। मृत्यु केवल शरीर की होती है। जो चला गया, वह आत्मा ही था, शरीर नहीं। वह तो आज भी अमर है, और सदा अमर ही रहेगा। इसलिए उसकी मृत्यु नहीं हुई, मृत्यु केवल शरीर की हुई है, जिसे कोई रोक नहीं सकता। यह अटल सत्य है।"
जो लोग ऐसे सत्य को स्वीकार कर लेते हैं, वे ऐसी अवश्यंभावी घटनाओं के होने पर दुखी नहीं होते, या कम दुखी होते हैं। वे ईश्वर का सहारा लेकर, धैर्य को धारण करके, स्वयं को संतुलित कर लेते हैं, और दूसरों को भी संभालते हैं। "सभी पारिवारिक जन कृपया इस संकटकाल में एक दूसरे का सहारा बनें।"
इस कठिन समय में धैर्य को धारण करें, घबरायें नहीं । ईश्वर से इस प्रकार से प्रार्थना करें -- "ओम् सहोसि सहो मयि धेहि।। हे ईश्वर ! आप बड़े सहनशील हैं । हमें भी सहनशक्ति दीजिए । हम इस दुख को धैर्य से सहन कर सकें।" इस मन्त्र से अधिक से अधिक प्रार्थना करें । ईश्वर आपको बहुत धैर्य, शक्ति और शान्ति देगा ।। और दिवंगत आत्मा के कर्मानुसार उसको उचित फल देगा।
"परिवार के सभी सदस्य दिवंगत आत्मा के उत्तम गुणों तथा उसके शुभ कर्मों का सम्मान करते हुए उसके जीवन से प्रेरणा लेकर उसके पदचिह्नों पर चलें। यही उसके प्रति परिवार की सच्ची श्रद्धांजलि होगी।"
संसार में प्रत्येक व्यक्ति यात्री है। कौन सी यात्रा का यात्री? "मोक्ष की यात्रा का। इस यात्रा का लक्ष्य मोक्ष है।" सबको वहीं जाना है। आज या कल वही पहुंचना है। "लोग चाहे इस बात को आज समझें, या न समझें। चाहे मोक्ष शब्द से समझें, चाहे अन्य किसी शब्द से समझें। समझना तो होगा ही। क्योंकि मोक्ष प्राप्त किए बिना किसी का गुज़ारा नहीं है।"
आप पूछेंगे, "इसका क्या तात्पर्य है, कि मोक्ष प्राप्त किए बिना किसी का गुज़ारा नहीं है।" इसका तात्पर्य यह है, कि "प्रत्येक व्यक्ति सुख को ढूंढ रहा है। उसे 100 % सुख चाहिए, दुख बिल्कुल नहीं चाहिए। एक प्रतिशत भी नहीं चाहिए।" परन्तु ये दोनों बातें संसार में तो कहीं संभव होती दिखती नहीं। "जब संसार में हैं ही नहीं, तो दिखाई कैसे देंगी? नहीं दिखाई देंगी."
तो फिर ये दोनों बातें कहां पर होती हैं? उत्तर है -- "मोक्ष में। वहां ईश्वर के साथ संबंध हो जाने के कारण, ईश्वर का आनंद मिलता है, जो कि 100 % शुद्ध आनन्द है। और यह प्रकृति के सत्त्वगुण के सुख से, लाख गुना ऊंचे स्तर का भी होता है। वहां प्रकृति का संबंध पूरी तरह से आत्मा से कट जाने के कारण, दुख 100 % छूट जाता है। क्योंकि दुख आता ही प्रकृति के संबंध से है।" इस प्रकार से मोक्ष में ही ये दोनों बातें पूरी होती हैं। इसीलिए हमने यह कहा कि "बिना मोक्ष प्राप्त किए किसी का गुज़ारा नहीं है।"
यदि लोग इस मोक्ष प्राप्ति वाली बात को आज नहीं समझ रहे, तो कोई बात नहीं। "जब भी कोई व्यक्ति इस बात को समझेगा, तभी से वह मोक्ष के लिए प्रयत्न आरंभ कर देगा, और धीरे-धीरे पुरुषार्थ करते-करते एक दिन मोक्ष तक पहुंच ही जाएगा।"
"अब यह जो मोक्ष का मार्ग है, इस पर चलना भी कठिन है, और इसको समझना भी बहुत कठिन है।" कोई बात नहीं। संसार के महापुरुष यही काम करते हैं। "वे जनता की इस मोक्ष मार्ग की यात्रा को कम तो नहीं करते, लेकिन इस यात्रा को कैसे आसानी से पूरा करें, इसके उपाय अवश्य बताते हैं।" "जो भूतकाल में महापुरुष हो गए, जैसे महर्षि पतंजलि, महर्षि जैमिनी, महर्षि कणाद, महर्षि गौतम, अथवा महर्षि दयानंद जी आदि महापुरुष हो गए, उनके लिखे ग्रंथों को किसी योग्य विद्वान गुरु जी से पढ़ें। उनके आदेश निर्देश में चलें।" "और आज भी जो कोई जीवित शरीरधारी मनुष्यों में से भी वैदिक शास्त्रों के विद्वान, वेदानुकूल आचरण वाले ज्ञानी तपस्वी निष्कपट महात्मा जी मिलें, तो उनके भी आदेश निर्देश का पालन करें। उनके विरुद्ध आचरण न करें।"
"यदि आप इतना कर लेंगे, उनके आदेश निर्देश का पालन कर लेंगे, और अपनी मनमानी नहीं करेंगे, तो अवश्य ही आप सुखी रहेंगे, और इसी से आपका कल्याण होगा। आपकी मोक्ष प्राप्ति की यात्रा भी बड़ी सरल हो जाएगी।"
----- राम नाम सिमरन की आदत डालने के लिए ऐसा करें कि :
1) आपके घर की दस सीढ़ियाँ हैं, प्रत्येक सीढ़ी चढते व उतरते वक्त बार-बार राम नाम सिमरन करते रहें !
2) आप रेड लाइट पर खड़े हो, परेशान होने से अच्छा है राम नाम सिमरन करते रहें ।
3) आप किसी को फोन करते हैं, फोन की घंटी बज रही है, जब तक सामने वाला ना उठाए, राम सिमरन करते रहें ।
4) कोई भी महिला रोटी पका रही है,राम नाम सिमरन करते हुए पकाएँ, सिमरन भी होगा और रोटी खाने वाले को भी आनन्द आएगा !
5) आप किसी का इंतज़ार कर रहे हैं, नाम सिमरन करते रहें ।राम सिमरन भी होगा और इँतजार कब मुलाकात में बदल गया, पता ही नहीं चलेगा ।
6) यानी कि जीवन की हर छोटी बड़ी घटना को सिमरन के साथ जोड़ दो । एक दिन देखोगे कि ऐसे ही आदत पड़ जाएगी ।
7) अब सिमरन के लिए समय नहीं मिल रहा फिर तो स्वासों में बस जायेगा, और सहज में ही राम सिमरन होने लगेगा ।
8) बस हर वक़्त नाम सिमरन ही राम सिमरन
जय श्री राम जी: जब भी कहीं जा रहे हों तो खाली समय में राम नाम या जो भी खुल कर जपा जाए उनका मन ही मन नाम लेने से आदत बन जाती है जी
नोट -- यदि आप इन बातों को स्वयं पर भी लागू करें, कि "मेरा भी शरीर ही मरेगा, मैं नहीं। मैं इस शरीर से अलग पदार्थ हूं। मैं आत्मा हूं, मैं अजर अमर हूं। मैं भी कभी नहीं मरूंगा।" यदि आप ऐसा चिंतन प्रतिदिन करें, तो आपको भी मृत्यु से डर नहीं लगेगा। जब मृत्यु आएगी, तो बड़ी शांति से प्रेम से संसार छोड़कर शरीर छोड़कर चले जाएंगे।"
🙏.
Peace if possible, truth at all costs.