क्या आप जानते हैं...??
पाकिस्तान में ये ब्राह्मण, क्षत्रिय, राजपूत, बनिया, शूद्र, सवर्ण, दलित, भीम वीम कुछ नहीं होता, बस मीम होता है, बाकी सभी हिंदुओं को सिर्फ काफिर कहते हैं!?
और वहां की न्यायपालिका में भी नाबालिग हिंदू लड़की पर कब्जा किए हुए 50 साल के बूढ़े नमाजी कबाबी के हक में फैसला दिया जाता है, *भारत में कानून की यही स्थिति बनाई जा चुकी है, इसको समझना जरूरी है!*
न्यालपालिका को करीब से समझाने वाला भारत का ईमानदार न्यायविद भी जान चुका है सालों की तारीख देने वाला सुप्रीम कोर्ट भी क्यों *कछुए से खरगोश बन जाता है, जैसे ही जेहादी अपराधियों के खिलाफ किसी प्रशासनिक कार्यवाही की बात आती है!?*
सामान्य तौर पर, जिस सुप्रीम कोर्ट में किसी फैसले के लिए 50-50 साल सामान्य भारतीय हिंदू अपनी एड़ियां घिसते रहते हैं, वहां मुसलमानों का केस आते ही कछुए की रफ्तार से चलने वाले मियां लॉर्ड खरगोश की तरह क्यों दौड़ने लगते हैं, जहांगीर पुरी से लेकर उत्तराखंड तक आनन फानन स्टे मिल जाता है!?
जिन अपराधियों को अवैध कब्जे के खिलाफ कार्यवाही कर दण्ड देना और किराया वसूलना चाहिए, उनको खैरात देने की वकालत करने वाले भी उसी आपी पापी गैंग के माफिया हैं जो कश्मीर को भारत से आजाद करने की मांग कर पाकिस्तानियों की वकालत करते हैं!?
*प्रशांत भूषण, हल्द्वानी मामले में चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूढ, जस्टिस अब्दुल नजीर और जस्टिस पीएस नरसिम्हा के सामने मुसलमानों की सिफारिश में अपना तोहफा, तशरीफ समेत लेकर बुधवार को हाजिरी लगाता है, और अगले ही दिन यानी गुरुवार सुनवाई की तारीख भी, और गुरुवार को ही फैसला दे दिया जाता है!?*
उत्तराखंड राज्य के *हाईकोर्ट के फैसले को गलत ठहराते हुए, सुप्रीम कोर्ट रेलवे और राज्य सरकार को नोटिस जारी करता है* और जमीन अवैध कब्जे से मुक्त करने के लिए *सरकारी बुलडोजर की कार्यवाही पर एक महीने के लिए स्टे लगा देता है!?*
*आपको याद होगा ठीक इसी तरह सुप्रीम कोर्ट ने जहांगीरपुरी वाले फैसले को ही दोहरा दिया!?*
इसकी वजह अब साफ हो चुकी है, सरकार बदली है सिस्टम अभी जेहादियों के हाथों में ही है *खांग्रेस की ही तरह सत्तर यहां भी दशकों से पनपता धर्मांतरण माफिया, जेहाद ही है* इसमें आमूल चूल परिवर्तन की अवश्यकता है!
*50 साल पहले हल्द्वानी की रेलवे लाइन की इस जमीन पर सिर्फ और सिर्फ छप्पर और तिरपाल था। बाद में ये अवैध बस्ती 78 एकड़ तक फैल गई।*
सबसे खास बात *खांग्रेस की इंदिरा हृदयेश ने अपना वोट बैंक बनाने के लिए सरंक्षण दिया और वोटर कार्ड, आधार कार्ड, राशन कार्ड सब कुछ बन गया।*
*बिजली, पानी, सडक का टैक्स भी दिया जाने लगा लेकिन 4 हजार 365 वादियों में से एक भी जमीन का कागज नहीं दिखा सका।*
और *इस सबके पीछे बस एक कांग्रेसी परिवार है, इंदिरा हृदयेश का!?* जो इसे अपने परिवार की राजनीतिक विजय के लिए अपराधियों को सरंक्षण देती रही हैं, और जीतती रही!?
*याद कीजिए, जब दिल्ली के जहांगीरपुरी में दंगे हुए थे उस वक्त भी ऐसा ही हुआ था।जहांगीरपुरी में सुबह 10 बजे से बांग्लादेशियों की बस्ती पर बुलडोजर चलने शुरू हो गए थे, लेकिन एक घंटे बाद सुबह 11 बजे ये मामला सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ एन वी रमन्ना की बेंच के सामने उठाया गया, और केवल आधे घंटे के अंदर* ही, *सुप्रीम कोर्ट ने जहांगीरपुरी में स्टे लगा दिया यानी यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया!?*
हमें *सुप्रीम कोर्ट की इस बिजली वाली रफ्तार से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन ऐसी ही रफ्तार सुप्रीम कोर्ट हर केस में क्यों नहीं दिखाता है!?*
14 दिसंबर 2022 को अखबारों में खबर प्रकाशित हुई कि कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की जांच की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा खारिज कर दिया है।
इसी तरह *जब बंगाल में चुनाव जीतने के बाद टीएमसी के गुंडे अनुसूचित जाति जनजाति के हिंदुओं के साथ मध्ययुगीन क्रूरता कर रहे थे तब सुप्रीम कोर्ट सो रहा था और ग्रीष्म कालीन अवकाश पर जाने की तैयारी कर रहा था!?*
अब भी जाग जाओ, वरना पछताओगे *हिंदुओं की जान भी चली जाए तो सुप्रीम कोर्ट को कोई फर्क नहीं पड़ता है और मुसलमानों के आशियाने के लिए सुप्रीम कोर्ट दुबला हुआ जाता है।*
आपको याद होगा की *कोरोना के समय सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के अंदर कावड़ यात्रा पर संज्ञान लिया था लेकिन केरल में बेतहाशा कोरोना के बाद भी बकरीद पर कोई संज्ञान नहीं लिया था!?*
हिंदुओं की धार्मिक प्रथाओं, सबरीमाला, जल्लीकट्टू पर संज्ञान लेने वाले गुल्लीकट्टूओं के अवैध अपराधों पर मौन हो जाते हैं, क्यों!?
सिर्फ रीढ़ की हड्डी में दर्द होने की वजह से राना अयूब को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी थी, एक प्रेग्नेंट अपराधी महिला जेहादी को भी फौरन बेल दे दी गई थी।
Peace if possible, truth at all costs.