"सत्येन रक्ष्यते धर्मो विद्या योगेन रक्ष्यते ।
मृजया रक्ष्यते रूपं कुलं वृत्तेन रक्ष्यते ।।
मानेन रक्ष्यते धान्यमश्वान् रक्षत्यनुक्रमः ।
अभीक्ष्णदर्शनं गाश्च स्त्रियो रक्ष्याः कुचैलतः ।।
(विदुर-नीतिः--2.39-40)
(1.) धर्म की रक्षा सत्य द्वारा करनी चाहिए ।
(2.) विद्या की रक्षा अभ्यास से करनी चाहिए ।
(3.) सुन्दरता की रक्षा (मृजा) शुद्धि-सफाई उवटन आदि से करनी चाहिए ।
(4.) कुल की रक्षा सदाचार से करनी चाहिए ।
(5.) धान्य (अनाज) की रक्षा नाप-तोल से करनी चाहिए ।
(6.) घोडों की रक्षा (अनुक्रम) चाल आदि प्रशिक्षण से अथवा इधर-उधर भागने से रोकने के लिए करनी चाहिए ।
(7.) गौओं की रक्षा देख-भाल और पालन-पोषण से करनी चाहिए ।
(8.) स्त्रियों की रक्षा (कुचेले) मलिन वस्त्रों से बचाकर करनी चाहिए ।
"स्त्रियो रक्ष्याः कुचैलतः" का भाव स्पष्ट नहीं है । "कुचेल" का एक अर्थ मलिन-वस्त्र है। ऋतु-अवस्था वाली को मलिन वस्त्र वाली कहते हैं । उस अवस्था में यदि स्त्री सचमुच मलिन वस्त्र पहन रखें, तो पति को उसका अनायास ज्ञान हो सकेगा ।
अन्य टीकाकारों का मानना है कि मलिन वस्त्र धारण करने से उसके रूप की रक्षा हो सकेगी, अर्थात् पर-पुरुष उस पर कुदृष्टि-पात नहीं करेंगे।
अन्यों का मत है कि मलिन वस्त्रों के कारण स्त्री बाहर नहीं जाएगी।
अन्य मत है कि मलिन वस्त्रों के कारण लज्जा के मारे दूसरों का मुख स्त्रियाँ नहीं देखेंगी ।
आपका क्या मत है ???
Peace if possible, truth at all costs.