'मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना
'हिंदी हैं हम वतन है, हिन्दोस्तान हमारा,'
गाँधी जी ने इसे 100 बार गुनगुनाया था -लोगों ने इसे अपने तौर पर कौमी तराना मान लिया
-क्योंकि इस गीत में उन्हें हिन्दू -मुस्लिम भाईचारे के सन्देश के साथ साथ देश प्रेम का सन्देश सुनाई देता था।
अल्लाम्मा इकबाल ने जब पहली बार 1904 में इसे कॉलेज की स्टेज से गाया तो उन्होंने भी नहीं सोचा था की यह तराना इतना मकबूल होगा - इसे ;तराना इ हिंद ; का नाम दिया गया .
1910 आते आते इकबाल बदल गए ! अब वे मुस्लिम लीग के संस्थापकों में से एक और इसलाम और मुस्लिम समाज के रहनुमा बन गए पाकिस्तान स्टेट का विचार उनके ही दिमाग की उपज था . अब वे मुफ्फकिर इ पाक विचारधारा के पर्चारक थे .इकबाल ने राष्ट्रवाद और ध्राम्निश्पेक्ष्ता के सिधांत को सिरे नक्कार दिया . और फिर से नया ‘तराना इ मिल्ली ’लिखा -इसमें 'हिंदी' का स्थान ले लिया 'मुस्लिम' ने और 'हिन्दोस्तान' की जगह 'सारा- जहाँ' आ गया ;
'चीनो अरब हमारा , हिन्दोस्तान हमारा ,
'मुस्लिम हैं हम वतन है सारा जहाँ हमारा .
60 साल की उम्र में 1938 में उनकी मौत हुई .उनके पूर्वज कश्मीरी पंडित थे .
पाक ने उन्हें राष्ट्र कवी माना और 9 नवम्बर उनके जन्म दिन को कौमी छुट्टी कर दी .
जिस शख्स ने देश के टुकडे किये उसके तराने ‘सारे जहाँ’ को, जिसने उसे खुद ही नक्कार दिया था, आज भी भारत एक जम्हूरी मुल्क के नाते मान रहा है.
जिन्ना को नेहरु की इसी सेकुलर परस्ती से ईर्षा थी- क्योंकि जिन्ना भी खुद को सेकुलर और पाक को जम्हूरी मुल्क का दिखावा करता था, क्योंकि पाक में गैर मुस्लिमों की आबादी 20% थी जो अब 2% से भी कम रह गई है,
आजादी से महज़ तीन दिन पहले जिन्ना ने लाहोर में उर्दू के एक हिन्दू शायर जगन नाथ आजाद को ढूँढ निकाला , और उस से पाक का राष्ट्र गीत ‘ऐ सरजमीने पाक ’ लिखवाया .
पाक का यह सेकुलर मुखौटा महज़ 18 महीने बाद उतर गया -जिन्ना की मौत के 6 महीने बाद इसका स्थान हफीज जल्लान्धारी के लिखे कौमी तराने ने ले लिया. और आजाद तो चाँद दिनों में ही पाक छोड़ कर भारत आ गए जहाँ वे अंतिम दिनों तक जे & के में डिरेक्टर प्रेस ब्यूरो रहे .
भारत में बंकिम चंदर के बंदे मातरम को नेशनल सोंग और रविंदर नाथ टेगोर के ; जन गन मन को नेशनल अन्ठेम घोषित किया गया. BBC के इक सर्वे में विशव के 10 सबसे लोक प्रिये गीतों में बन्दे मातरम को दूसरा स्थान प्राप्त है. स्वतंत्रता संग्राम में हजारों भारतीये बन्दे मातरम गीत गाते हुए शहीद हो गए. जिन्ना के हिन्दुस्तान में बैठे शैतानो को अब इस गीत में इसलाम विरोधी स्वर सुनाई देने लगे हैं
'हिंदी हैं हम वतन है, हिन्दोस्तान हमारा,'
गाँधी जी ने इसे 100 बार गुनगुनाया था -लोगों ने इसे अपने तौर पर कौमी तराना मान लिया
-क्योंकि इस गीत में उन्हें हिन्दू -मुस्लिम भाईचारे के सन्देश के साथ साथ देश प्रेम का सन्देश सुनाई देता था।
अल्लाम्मा इकबाल ने जब पहली बार 1904 में इसे कॉलेज की स्टेज से गाया तो उन्होंने भी नहीं सोचा था की यह तराना इतना मकबूल होगा - इसे ;तराना इ हिंद ; का नाम दिया गया .
1910 आते आते इकबाल बदल गए ! अब वे मुस्लिम लीग के संस्थापकों में से एक और इसलाम और मुस्लिम समाज के रहनुमा बन गए पाकिस्तान स्टेट का विचार उनके ही दिमाग की उपज था . अब वे मुफ्फकिर इ पाक विचारधारा के पर्चारक थे .इकबाल ने राष्ट्रवाद और ध्राम्निश्पेक्ष्ता के सिधांत को सिरे नक्कार दिया . और फिर से नया ‘तराना इ मिल्ली ’लिखा -इसमें 'हिंदी' का स्थान ले लिया 'मुस्लिम' ने और 'हिन्दोस्तान' की जगह 'सारा- जहाँ' आ गया ;
'चीनो अरब हमारा , हिन्दोस्तान हमारा ,
'मुस्लिम हैं हम वतन है सारा जहाँ हमारा .
60 साल की उम्र में 1938 में उनकी मौत हुई .उनके पूर्वज कश्मीरी पंडित थे .
पाक ने उन्हें राष्ट्र कवी माना और 9 नवम्बर उनके जन्म दिन को कौमी छुट्टी कर दी .
जिस शख्स ने देश के टुकडे किये उसके तराने ‘सारे जहाँ’ को, जिसने उसे खुद ही नक्कार दिया था, आज भी भारत एक जम्हूरी मुल्क के नाते मान रहा है.
जिन्ना को नेहरु की इसी सेकुलर परस्ती से ईर्षा थी- क्योंकि जिन्ना भी खुद को सेकुलर और पाक को जम्हूरी मुल्क का दिखावा करता था, क्योंकि पाक में गैर मुस्लिमों की आबादी 20% थी जो अब 2% से भी कम रह गई है,
आजादी से महज़ तीन दिन पहले जिन्ना ने लाहोर में उर्दू के एक हिन्दू शायर जगन नाथ आजाद को ढूँढ निकाला , और उस से पाक का राष्ट्र गीत ‘ऐ सरजमीने पाक ’ लिखवाया .
पाक का यह सेकुलर मुखौटा महज़ 18 महीने बाद उतर गया -जिन्ना की मौत के 6 महीने बाद इसका स्थान हफीज जल्लान्धारी के लिखे कौमी तराने ने ले लिया. और आजाद तो चाँद दिनों में ही पाक छोड़ कर भारत आ गए जहाँ वे अंतिम दिनों तक जे & के में डिरेक्टर प्रेस ब्यूरो रहे .
भारत में बंकिम चंदर के बंदे मातरम को नेशनल सोंग और रविंदर नाथ टेगोर के ; जन गन मन को नेशनल अन्ठेम घोषित किया गया. BBC के इक सर्वे में विशव के 10 सबसे लोक प्रिये गीतों में बन्दे मातरम को दूसरा स्थान प्राप्त है. स्वतंत्रता संग्राम में हजारों भारतीये बन्दे मातरम गीत गाते हुए शहीद हो गए. जिन्ना के हिन्दुस्तान में बैठे शैतानो को अब इस गीत में इसलाम विरोधी स्वर सुनाई देने लगे हैं
Peace if possible, truth at all costs.