पंजाब दे वीरा दी कुर्बानी (स्त्रोत: संगत संसार)

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भारत पर जितने आक्रमण हुए उसका पहला प्रहार पंजाब सिंध की ओर से ही हुआ। यही कारण है कि पंजाब को हिंदुस्तान की खड्ग भुजा भी कहा जाता है। जाहिर है जब हमले पंजाब पर हुए तो उसका पहला उत्तर भी पंजाब ने ही दिया।
इतिहास में झांके तो सिकंदर, जो विश्व विजेता बनने का स्वप्न रखता था, के नेतृत्व में यूनानियों ने पंजाब पर आक्रमण किया जिसका पंजाब के बहादुर सपूत पोरस ने डटकर मुकाबला किया। इसके कई वर्षों बाद लगभग सन 632 में सिंध की राजधानी करांची जो उन दिनों देवल कहलाती थी पर मोहम्मद बिन कासिम ने हमला किया। सिंध के राजा दाहिरसेन यदि इस्लाम स्वीकार कर लेते तो इस युद्ध से बच सकते थे। लेकिन उन्होंने स्वतंत्रता की बलिवेदी पर परिवार समेत अपने प्राण न्योछावर करना उचित समझा। इसके बाद तो पंजाब पर जैसे एक के बाद एक इस्लामी आक्रमणों का ताँता ही लग गया। इन निर्दयी और धर्मांध जेहादियों में सबसे अंत में आने वाले मंगोल थे जो भारत में मुग़ल कहलाये।
पंजाब में इन मुग़लो से भीषण संघर्ष हुआ। वीर हकीकत राय ने कच्ची उम्र में भी इस्लाम स्वीकार करने की बजाय प्राण न्योछावर करना श्रेयस्कर समझा। इसी समय पंजाब में दशगुरु परंपरा का जन्म हुआ जिसकी शुरुआत श्री गुरु नानक ने की। इस परंपरा के पंचम और नवम गुरु के आत्मबलिदान ने भारतीय इतिहास के स्वर्णिम पन्नो की रचना की। लेकिन दशम गुरु गोबिंद सिंह ने तो इतिहास की धारा ही बदल दी। गुरु जी ने इन आक्रान्ताओं से लोहा लेते हुए अपने चारो पुत्रों का बलिदान दे दिया। उनके पुत्र देश और धर्म की रक्षा करते हुए शहीद हो गए।
जब भारत में ब्रिटिश राज हुआ, इसी महान धरा के पुत्र लाला लाजपत राय, भगत सिंह, सुखदेव, मदनलाल धींगरा, उधमसिंह और न जाने कितने लोगो ने आजादी की लड़ाई के लिए अपने प्राणों को दाव पर लगा दिया।
पंजाब अंत तक विदेशी इस्लामी आक्रमणकारियों से लड़ता रहा लेकिन शायद साथ ही साथ वह भीतर ही भीतर एक दीमक का शिकार भी होता रहा। पंजाब का एक बड़ा हिस्सा भय से या लालच से इस्लाम में प्रवेश कर गया। पंजाब का वही पश्चिमी भाग बाद में जिन्ना के के जाल में फंसकर अलग हो गया। लेकिन एक बात ध्यान रखनी होगी अगर पंजाब में पंद्रहवी शताब्दी में यह दश गुरु परम्परा न शुरू होती तो पंजाब मुग़लो के अत्याचार के आगे दम तोड़ देता और सारे का सारा पंजाब इस्लाम में चला जाता।।
यह दश गुरु परंपरा ही थी जिसने पूर्वी पंजाब को बचा लिया। लेकिन असली प्रशन अभी भी अनुतरित है - क्या बाबर के समय हुई लड़ाई समाप्त हो चुकी है या अभी जारी है। इसे न केवल जानने की जरूरत है बल्कि समाज को बताने की जरूरत है। देश भले ही आजाद है लेकिन वो सभी ताकते अभी भी जिन्दा है जो बाबर के समय थी बल्कि मैं यह कहूँगा यह ताकते और मजबूत हुई है। वीरा की कुर्बानी का जो असल नतीजा हैं उसको संभाल कर रखने की जरूरत है।

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