देश की आजादी के बाद
सिर्फ
इंदिरा गांधी ही वह एकमात्र भारतीय
राजनीतिज्ञ
थी, जिन्होंने अडोल्फ़ हिटलर से
प्रेरणा ली. हिटलर
और इंदिरा गांधी के बीच
तुलना चौंकाने वाली थी.
हिटलर सन 1933 में
जर्मनी का चांसलर बन
गया था और कुछ महीनों के बाद ही उसने
‘जनता और राज्य की सुरक्षा’ के नाम पर
देश में
आपातकाल लगा दिया था. उसने
व्यक्तिगत
स्वतंत्रता, बोलने के अधिकार, मौलिक
अधिकार और
निजता के अधिकार पर प्रतिबंध
लगा दिया था.
हिटलर के द्वारा थोपे गए आपातकाल के
जो कारण
स्पष्ट किये गए था वह यह
था कि कम्युनिस्ट देश
के सरकारी भवनों में आग लगाने
की साजिश रच रहे
थे. अपने इस कथन को मजबूत करने के लिए
उसने
Reich Stag में आपातकाल लागू होने
से एक दिन
पहले लगी आग का बहाना भी पेश कर
दिया था.
काफी समय बाद Nuremberg में जब
उपरोक्त
प्रकरण की सुनवाई हो रही थी, उसमें
यह तथ्य
सामने आया कि Reich Stag में आग
हिटलर ने
जान बूझ कर लगवाई थी ताकि वह इस
घटना के
माध्यम से देश में आपातकाल लगा सके.
श्रीमती इंदिरा गांधी ने भी 26 जून
1975
को आपातकाल थोप दिया. उन्होंने अपने
इस कृत्य
के समथन में तर्क दिया कि श्री जय
प्रकाश
नारायण सत्ता के विरुद्ध एक आन्दोलन
चला रहे हैं
और उन्होंने सशस्त्र सेनाओं को आह्वान
किया है
कि वे सरकारी आदेशों का न माने.
इसकी आड़ में
श्रीमती इंदिरा गांधी ने जीवन और
स्वतंत्रता के
अधिकार सहित सभी मौलिक
अधिकारों को निलंबित
कर दिया. उन्होंने प्रेस के ऊपर सेंसरशिप
लगा दी और न्यायिक
व्यवस्था की स्वंतंत्रता का भी हनन
किया. उनके
अटोर्नी जनरल ने न्यायलय में यह दलील
दी कि अगर जीवन और स्वतंत्रता के
अधिकारों की अनुपस्थिति में कोई
व्यक्ति जेल में
अगर मर जाता है तो उसका कोई उपाय
नहीं है.
अशक्त सर्वोच्च न्यायालय ने यह दलील
भी स्वीकार कर ली.
श्रीमती इंदिरा गांधी ने 20 सूत्रीय
आर्थिक सुधार
कार्यक्रमों की घोषणा की और जोर
देकर
कहा कि आपतकाल देश में अनुशासन कायम
करने
और आर्थिक तरक्की लाने के मकसद से
लगाया गया है. हिटलर ने भी आपातकाल
के दौरान
25 सूत्रीय आर्थिक सुधार कार्यक्रम
को लागू
किया.
हिटलर के पास जर्मनी की संसद में
दो तिहाई बहुमत
नहीं था. इसलिए उसने विपक्ष के 91
सांसदों को हिरासत में ले
लिया था ताकि उनके वोट
करने के अधिकार को खत्म किया जा सके.
हिटलर ने
इस प्रकार की शक्तियां प्राप्त करने के
लिए
संविधान में संशोधन तक कर दिए थे.
श्रीमती इंदिरा गांधी ने
भारी संख्या में विपक्ष के
सांसदों को गिरफ्तार करवा दिया और
संविधान में
42 वें संशोधन के माध्यम से कुछ कठोर
प्रावधान
लागू कर दिए जिसे आपातकाल के बाद
निरस्त
करना पड़ा. जहाँ तक हिटलर के अनुसरण
की बात है
इंदिरा गांधी ने उससे भी दो कदम आगे
जाकर संसद
की कार्यवाही के प्रकाशन तक पर
प्रतिबन्ध
लगा दिया था. वह क़ानून
जो मीडिया को संसदीय
कार्यवाही का प्रकाशन करने
की बाध्यता से छूट
प्रदान करता था निरस्त कर
दिया गया, दिलचस्प
तथ्य यह है कि इस क़ानून को राहुल
गांधी के
दादा श्री फिरोज
गांधी द्वारा ही प्रस्तुत
किया गया था.
दो आपातकालीन व्यवस्थाओं के
समर्थकों के
बयानों के सुर भी समान थे. हिटलर के
प्रचार
मंत्री गोएबेल्स ने आपातकाल के समर्थन
में
कहा कि जर्मनी में क्रांति की शुरुआत
हो गई है.
भारत में भी यह
दावा किया गया कि आपातकाल के
माध्यम से देश एक ऐसे समय से गुजर
रहा है
जो क्रांति का पुट लिए हुए हैं.
मीडिया सेंसरशिप में
जकड़ी हुई थी, बिना पूर्व अनुमति के कुछ
भी छापने
पर प्रतिबन्ध था. आपातकाल के दौरान
मीडिया के
दुरूपयोग पर लाये गए श्वेत पत्र से
मीडिया पर
सरकारी दमन की व्यापक दास्तान
उजागर होती है.
गांधी परिवार के अखबार द नेशनल
हेराल्ड ने
आपातकाल की पैरवी करते हुए एक दलीय
व्यवस्था को जरूरी बताया. देश भर में
विपक्षी दल
के कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले
लिया गया था.
पुलिस को Defence of India
Rules के तहत
विरोधियों के खिलाफ झूठी FIR दर्ज
करने के
निर्देश दे दिए गए थे. लाखों की संख्यों में
झूठी FIR दर्ज की गईं.
हजारों लोगों को Maintenance
of Internal
Security Act के तहत गिरफ्तार
किया गया.
क़ानून तक में संशोधन कर
दिया गया था जिसके
तहत किसी को गिरफ्तार करने के लिए
किसी वारंट
की जरूरत नहीं थी. सर्वोच्च न्यायालय
ने
बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले में इस प्रकार
की गिरफ्तारियों को गैर न्यायोचित
ठहराया.
संविधान के 39वें संशोधन के जरिये
प्रधानमंत्री द्वारा चुनावी नियमों का का घोर
उल्लंघन किया गया जिसे न्यायोचित
नहीं ठहराया जा सकता. यह
प्रेरणा तत्कालीन
सरकार को नाजियों से प्राप्त हुई.
हिटलर के विदेश
मंत्री Joachim von
Ribbentrop भी इस
प्रकार की न्यायिक व्यवस्था लेकर आये,
जिसे
हिटलर द्वारा पसंद किया गया. उस
समय के
कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरुआ कहा करते
थे
“इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज
इंदिरा”. हिटलर के
न्याय आयोग के प्रमुख Dr. Hans
Frank ने
घोषित कर दिया था कि जर्मनी जो कुछ
भी आज है
वह केवल एक शक्ति की वजह से है
जिसका नाम है
तानाशाही. हिटलर ने Gestapo नाम
से एक
ख़ुफ़िया पुलिस विभाग का निर्माण
किया. भारत के
Maintenance of Internal
Security Act
की तरह उस पुलिस के अधिकार क्षेत्र
को भी चुनौती नहीं दी जा सकती थी.
लोकतंत्र का निलम्बन, नागरिक
अधिकारों के
अभिनिषेध, राजनीतिक
विरोधियों की हिरासत,लोकतांत् रिक
गतिविधियों का निलंबन, प्रेस
की आजादी का हनन,
निष्पक्ष न्यायिक व्यवस्था का दमन और
सत्ता की समूची शक्तियों का व्यक्ति विशेष
में
समावेश हिटलर के शासन की विशेषताएं
थी. ये
सभी प्रेरणाएं इंदिरा गांधी ने अपने
आपातकाल के
दौरान प्रयोग की हैं. इन दोनों के बीच
केवल एक
ही अंतर रह जाता है कि हिटलर ने
इंदिरा गांधी की तरह वंशवाद
को बढ़ावा नहीं दिया क्योंकि उसके
पास उसका वंश
चलाने वाला कोई नहीं था.
Peace if possible, truth at all costs.