शिया और सुन्नी की लड़ाई राजनितिक वर्चस्व से शुरू हुई थी.. पैगम्बर के बाद एक गुट का ये मानना था कि खलीफा (जो सत्ता संभालेगा) वही बनना चाहिए जिसे पैगम्बर ने चुना हो और जो पैगम्बर के खानदान का हो.. जबकि दूसरा ग्रुप ख़लीफ़ा के चुने जाने के तरीके को पूरी तरह से लोकतांत्रिक बनाना चाहता था.. वैसे ये लोकतांत्रिक शब्द बस नाम का था क्योंकि ये पूरी तरह राजनैतिक चाल थी जहाँ एक गुट अपनी धौंस और राजनैतिक विचारधारा को आगे बढ़ाना चाहता था..
जो ये कहते थे कि खलीफा पैग़म्बर का चुना हुवा और उनके खानदान से हो वो शिया हुवे.. और जो राजनैतिक तरीके से धर्म का भविष्य तय कर रहे थे वो सुन्नी थे..
थे दोनों ही इस्लाम को मानने वाले.. मगर मतभेद ऐसे बिगड़े कि सुन्नी समुदाय ने पैग़म्बर के खानदान को ही एक एक करके ख़त्म करना शुरू कर दिया.. की न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी.. तो एक तरह से इस्लाम दो हिस्सों में बंटा.. एक तो वो जो पैग़म्बर की बातों और उनके आल औलाद को मानने वाला था और दूसरा इस्लाम वो जो राजनैतिक दांवपेंच से बने खलीफाओं का इस्लाम था..
खलीफाओं वाले इस्लाम के मानने वाले अब पूरी दुनिया में बहुसंख्यक हैं और शिया समुदाय सिमट कर दस से बारह प्रतिशत पर पहुँच गया है.. सुन्नी इस्लाम जिसके मानने वाले ज़ाकिर नायक जैसे लोग हैं, "यज़ीद" जिसने पैग़म्बर के नाती हुसैन को मारा था, का नाम बड़े अदब से लेते हैं और उसकी बहुत बड़ाई करते हैं.. ये भी जानना ज़रूरी है कि पैग़म्बर के खानदान को किसी हिन्दू या यहूदी ने नहीं बल्कि मुसलमानो ने खुद ख़त्म किया
इस्लाम शुरू से ही बिलकुल साफ़ साफ़ दो हिस्सों में बंटा था.. और आज भी बंटा है.. और एक ही गुट है जो अपने इस्लाम को असली और प्रमाणिक बताता है और इसको साबित करने के लिए वो किसी भी हद तक जा सकता है.. ये लोग "नकली" इस्लाम के मानने वालों को एक एक कर मार काट के दुनिया से ख़त्म करने की कोशिश में है ताकि इनका "असली" वाला इस्लाम बच सके..
मगर भारत में सुन्नी इस्लाम दो भागों में बंटा है.. एक देवबंदी और दूसरा सुन्नी.. यहाँ देवबंदी वाला इस्लाम वही है जो पूरी दुनिया का सुन्नी इस्लाम है मगर भारत का सुन्नी मुसलमान सूफी और शिया के बीच की कड़ी है.. जो कट्टरता में कम हैं और भारत में यही बहुसंख्यक हैं
#इस्लाम_से_आतंकवाद_तक
साभार ताबिस सिद्दीकी
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