इस लेख को पढना शुरू करे
तो अंत तक पढ़े। शायद आज
आपको एक ऐसा तथ्य पता चले
जिसके उजागर होने पे सम्पूर्ण
ईसाइयत तिलमिला उठी थी
------------------------
विश्व में अनेक प्रकार के धर्म
अथवा मत पाए जाते है
सभी मौलिक होने
का दावा करते है.
विश्व के अधिकांश दर्शनों के
संकलित रूप है जिन्हें "ईश्वरीय
वाणी" कहा जाता है
यहूदियों में इसे "old
testament" कहते है
ईसाइयो में इसे "new
testament" कहा जाता है
इस्लाम में "कुरान" और वैदिक
संस्कृति में "वेद"
ईसाइयत और इस्लाम
का आधार यहूदी धर्म है
इस्लामियत का विश्वास है
की अल्लाह ने सबसे पहले तोरेत
"old testament" अपने
बन्दों में नाजिल की पर
शायद कुछ समय बाद अल्लाह
को लगा की या तो पहली किताब
में कुछ त्रुटी है या लोग उसे
समझ नहीं पा रहे तो फिर
अल्लाह ने इंजील "new
testament" नाजिल कर दी
कुछ समय बाद अल्लाह
को फिर लगा की कुछ कसर
रह गई तो उन्होंने इस बार
अल्लाह के एक बन्दे "मुहम्मद" पे
कुरान नाजिल की और
डिक्लेअर कर दिया की ये
आखिरी किताब है भैय्या
खैर अल्लाह की इस
गफलतबाजी का क्या असर
हुआ ये तो आज हम इस्लाम-
यहूदी-ईसाइयत के टकराव से
देख ही रहे है और फिलहाल हम
इस्पे चर्चा नहीं करेगे
अब सोचना ये है की अगर
ईसा मसीह और
उनकी किताब भी अल्लाह
की देन थी तो आखिर
बाइबिल और कुरान
की शिक्षाओ में
इतना विरोध क्यूँ है?
आखिर ईसा का गॉड मुहम्मद
के अल्लाह की तरह लूट
बलात्कार और काफिरो से
नफरत करने का पैगाम काहे
नहीं फैलाता?
अब या तो अल्लाह
अपनी आदते पल पल
बदलता रहता है
या फिर
ईसा का सन्देश अल्लाह से
नहीं बल्कि कही और से
लाया गया है
पर कहा से?
बाइबिल में ईसा के जन्म से 12
वर्ष की आयु का विवरण
मिलता है
उसके बाद ईसा गायब
हो जाते है और एकाएक 30
वर्ष की आयु में प्रकट हो जाते
है फिर 33 की उम्र में उन्हें
सलीब पे चढ़ा दिया जाता है
वैसे
यहुदियो द्वारा किसी को सलीब
पे लटका मार देने की तरकीब
भी बड़ी बेहूदी है और
वैज्ञानिक तौर पे भी इस तरह
कोई स्वस्थ व्यक्ति 48 घंटे से
पहले मर नहीं सकता
तो
जीसस को कितने घंटे
लटकाया था?
जवाब है 6 घंटे
इस समय में जीसस के मरने
की कल्पना सर्वथा गपोड़
गप्प के अलावा और कुछ नहीं
दरअसल ये एक संभावित
समझौता था ईसा के
शिष्यों और रोमन गवर्नर
"पोटीयंस" के बीच
पोटीयंस यहूदी नहीं था और
ना ही उसे ईसा को सलीब पे
लटकाने का कोई व्यक्तिगत
लाभ था पर अपने उपनिवेश
यहूदी साम्राज्य
की संभावित बगावत के
मद्देनजर ये
ड्रामा रचा गया जिसमे
जीसस के मृत्यु दंड में विलम्ब
किया गया और सूर्यास्त के
पूर्व जीसस का शरीर एक
गुफा में रख दिया गया
गुफा का चोकीदार एक
रोमन
था ना की यहूदी इसी वजह से
जीसस के शिष्य उन्हें वहां से
निकालने में कामयाब हो गए
गौरतलब है
की ईसा को पुनर्जीवित
देखने का दावा उनके
शिष्यों ने ही किया था और
किसी ने नहीं
अब ये 13 से लेके 30 तक
की आयु में जो ईसा के 17
साल missing है उनका कोई
जवाब ईसाइयत का झंडबरदार
नहीं देता
और अगर ईसा सलीब पे
लटकाने के बाद जीवित
हो कहा गए ये भी अँधेरे में है
कहते है की जीवित होने के
बाद ईसा स्वर्ग कूच कर गए थे
पर क्या यही सच है?
चलो इसको छोड़ो
आपको ले चलते है अब धरती के
स्वर्ग जम्मू कश्मीर
की तरफ....
पिछले दिनों आपके परम प्रिय
परम ठलवे संत
शिरोमणि विजय कुमार
झकझकिया जी कश्मीर
यात्रा पे थे
यहाँ "खानयार" नामक स्थान
पे एक इमारत है जिसका नाम
है "रोजाबल"
इस इमारत में एक कब्र है जिसे
किसी मुस्लिम संत
"युसा आसफ" की कब्र
बता कर आज कल
किसी डिप्लोमेसी के तहत गैर
मुस्लिम के लिए प्रवेश और
फोटोग्राफी निषेध कर
दिया गया है
अब बाहर से ही पर
किसी महान मुस्लिम संत
की कब्र को देखने का लोभ
संवरण हम ना कर पाए
और बाहर से जो देखा
वो तनिक अचम्भे में डाल देने
वाला था
हीहीही
हुआ ये सरकार की
कब्र मुस्लिम की थी
पर कब्र को बनाने
का तरीका यहूदी था और
कब्र का मुह मक्का की तरफ
भी नहीं था
तो दिमाग ठनक गया
जासूसी कीड़ा कुनमुना गया
और "धनुष टंकार" प्यारे
को चढ़ा दिया सूली पे
हीहीही
लौट के जो उसने बताया उसने
दिमाग और होउच पाउच कर
दिया
हुआ ये की कथित मुस्लिम कब्र
के ऊपर शिलालेख भी "हिब्रू"
में
था जो की यहुदियो की ही भाषा है
शिलालेख में लिखा था की
"जोशुआ"
(जीसस का ग्रीक रूपांतरण)
यहाँ आये
एक महान सदगुरु जो स्वयं
को भेड़ो का गडरिया कहते थे
वे 112 वर्ष की आयु तक
यहाँ रहे
अब इस सब पे तुर्रा ये की इन
कब्रों की देखभाल
भी सदियों से एक
यहूदी परिवार
ही करता आया है
बात कुछ समधन में ना आई?
चलो समझने की कोशिश करते
है
जब भी किसी को सत्य
की चाह होती है
तो उसका प्यासा मन उसे पूरब
की सैर ले जाता है जहा के
तत्व ज्ञान ने हमेशा विश्व
को नयी राह दिखाई है पर
कुछ दम्भी शायद अपने दर्शन
को मौलिक साबित करने के
लिए इस बात
को कभी नहीं मानेगे
13 वर्ष की आयु में
ईसा सिल्क रूट के जरिये
व्यापारियो के जत्थे के साथ
कश्मीर के रस्ते भारत आये थे
जहा उनका पहला पड़ाव
था "पहलगाम"
"पहलगाम" का अर्थ है
गड़रियो का गाँव
ईसा खुद एक चरवाहे ही थे और
पहलगाम की वादियों में
सदियों से ये मान्यता व्याप्त
है की लगभग 2000 साल पहले
पहलगाम को किसी चरवाहे
द्वारा बसाया गया है
हजरत मूसा द्वारा ईश्वर
की राज्य की खोज करते
वक़्त यहुदियो का एक
जत्था खो गया था जिसके
बारे में old testament
खामोश है
की वो जत्था कहा गया
यही वो जत्था था जो रास्ता भटक
कश्मीर पहुच के बस
गया था और जिसके कारण
आज
भी कश्मीरियो का चेहरा मोहरा यहुदियो के
समान ही प्रतीत होता है
और ये यहूदी ही संभावित तौर
पे ईसा के कश्मीर में रुकने और
अपनी खोयी नस्ल
को आबाद करने की प्रेरणा थे
ईसा काफी समय तक कश्मीर
में बौद्ध हेमिस मठ में रहे
जिसके साक्ष्य मठ के
दस्तावेजो में मिलते हैं
सन 80 में आयोजित प्रसिद्द
बौद्ध सम्मेलन में भी ईसा के
भाग लेने के प्रमाण बौद्ध
साहित्य में है
ईसा 13 से 30 वर्षो के बीच
काफी समय भारत में रहे और
भारतीय योग और दर्शन
का उन्होंने अध्ययन किया.
ईसा की शिक्षाए वैदिक
संस्कृति और बुद्ध से बहुत
प्रभावित थी जिसके प्रमाण
स्वरुप वेद, धम्मपद और बाइबिल
की कई शिक्षाओ में एक
रूपता पायी जाती है और
यही कारण है की अल्लाह
की दूसरी किताब
उन्ही की भेजी तीसरी किताब
से मेल
नहीं खाती क्युकी दूसरी किताब
की शिक्षाओ का स्त्रोत
अल्लाह नहीं बल्कि भारतीय
दर्शन था
भारत से शिक्षा ग्रहण करने के
बाद ईसा वापस अपने वतन चले
गए थे और सलीब
वाली घटना के पश्चात शायद
उनका मन मसीहा बनने से
विरक्त हो गया था और
वो वापस भारत में आ गए थे
और 112 साल की आयु तक
यही रहे और उनके जीवन के
बिखरे रहस्य बौद्ध मठो में
संरक्षित साहित्य में संकलित
है
और यही उन्होंने देह त्याग
किया और उनकी कब्र आज
भी कश्मीर में मौजूद है
ईसा एक महान व्यक्तित्व के
स्वामी थे और
इस लेख का प्रयोजन
ईसा की महानता पे सवाल
उठाना नहीं बल्कि पश्चिम
की उस
मानसिकता को उजागर
करना है जिसने पूर्व के दर्शन
को हमेशा हेय दृष्टि से देख
कलुषित करने का प्रयास
किया है
और इसमें मध्यकालीन
इतिहासकारों और
ब्राह्मणवादी संस्कृति का भी दोष
है जिसने एक महान
संस्कृति को उसके मूल रूप से
विमुख कर उसकी अनर्गल
व्याख्या कर धर्म का स्वरुप
विकृत किया
चलते चलते
एक मजे की बात बताते है
"जल प्रलय" एक
ऐसी घटना थी जिसे विश्व के
सभी धर्मो में सर्वाधिक
महत्वपूर्ण माना गया है और
आपको हर मुख्य धर्म
की किताब में इसका विवरण
अवश्य मिलेगा
अब भारतीय दर्शन में
इसका घटना का विवरण "मनु
और उनकी नौका" के रूप में
किया जाता है
और यहूदी इस्लाम और ईसाई
मत में "हजरत नूह की किश्ती"
के रूप में
मनु और नूह का सारा प्रसंग
एक ही है बस नाम अलग अलग है
हम भले
ही कितना ही मौलिक होने
का दावा कर ले
पर सच्चाई यही है
की
धर्मो के इतिहास अवश्य अलग
अलग है
पर
"मानव जाति का इतिहास
एक ही है"
तो अंत तक पढ़े। शायद आज
आपको एक ऐसा तथ्य पता चले
जिसके उजागर होने पे सम्पूर्ण
ईसाइयत तिलमिला उठी थी
------------------------
विश्व में अनेक प्रकार के धर्म
अथवा मत पाए जाते है
सभी मौलिक होने
का दावा करते है.
विश्व के अधिकांश दर्शनों के
संकलित रूप है जिन्हें "ईश्वरीय
वाणी" कहा जाता है
यहूदियों में इसे "old
testament" कहते है
ईसाइयो में इसे "new
testament" कहा जाता है
इस्लाम में "कुरान" और वैदिक
संस्कृति में "वेद"
ईसाइयत और इस्लाम
का आधार यहूदी धर्म है
इस्लामियत का विश्वास है
की अल्लाह ने सबसे पहले तोरेत
"old testament" अपने
बन्दों में नाजिल की पर
शायद कुछ समय बाद अल्लाह
को लगा की या तो पहली किताब
में कुछ त्रुटी है या लोग उसे
समझ नहीं पा रहे तो फिर
अल्लाह ने इंजील "new
testament" नाजिल कर दी
कुछ समय बाद अल्लाह
को फिर लगा की कुछ कसर
रह गई तो उन्होंने इस बार
अल्लाह के एक बन्दे "मुहम्मद" पे
कुरान नाजिल की और
डिक्लेअर कर दिया की ये
आखिरी किताब है भैय्या
खैर अल्लाह की इस
गफलतबाजी का क्या असर
हुआ ये तो आज हम इस्लाम-
यहूदी-ईसाइयत के टकराव से
देख ही रहे है और फिलहाल हम
इस्पे चर्चा नहीं करेगे
अब सोचना ये है की अगर
ईसा मसीह और
उनकी किताब भी अल्लाह
की देन थी तो आखिर
बाइबिल और कुरान
की शिक्षाओ में
इतना विरोध क्यूँ है?
आखिर ईसा का गॉड मुहम्मद
के अल्लाह की तरह लूट
बलात्कार और काफिरो से
नफरत करने का पैगाम काहे
नहीं फैलाता?
अब या तो अल्लाह
अपनी आदते पल पल
बदलता रहता है
या फिर
ईसा का सन्देश अल्लाह से
नहीं बल्कि कही और से
लाया गया है
पर कहा से?
बाइबिल में ईसा के जन्म से 12
वर्ष की आयु का विवरण
मिलता है
उसके बाद ईसा गायब
हो जाते है और एकाएक 30
वर्ष की आयु में प्रकट हो जाते
है फिर 33 की उम्र में उन्हें
सलीब पे चढ़ा दिया जाता है
वैसे
यहुदियो द्वारा किसी को सलीब
पे लटका मार देने की तरकीब
भी बड़ी बेहूदी है और
वैज्ञानिक तौर पे भी इस तरह
कोई स्वस्थ व्यक्ति 48 घंटे से
पहले मर नहीं सकता
तो
जीसस को कितने घंटे
लटकाया था?
जवाब है 6 घंटे
इस समय में जीसस के मरने
की कल्पना सर्वथा गपोड़
गप्प के अलावा और कुछ नहीं
दरअसल ये एक संभावित
समझौता था ईसा के
शिष्यों और रोमन गवर्नर
"पोटीयंस" के बीच
पोटीयंस यहूदी नहीं था और
ना ही उसे ईसा को सलीब पे
लटकाने का कोई व्यक्तिगत
लाभ था पर अपने उपनिवेश
यहूदी साम्राज्य
की संभावित बगावत के
मद्देनजर ये
ड्रामा रचा गया जिसमे
जीसस के मृत्यु दंड में विलम्ब
किया गया और सूर्यास्त के
पूर्व जीसस का शरीर एक
गुफा में रख दिया गया
गुफा का चोकीदार एक
रोमन
था ना की यहूदी इसी वजह से
जीसस के शिष्य उन्हें वहां से
निकालने में कामयाब हो गए
गौरतलब है
की ईसा को पुनर्जीवित
देखने का दावा उनके
शिष्यों ने ही किया था और
किसी ने नहीं
अब ये 13 से लेके 30 तक
की आयु में जो ईसा के 17
साल missing है उनका कोई
जवाब ईसाइयत का झंडबरदार
नहीं देता
और अगर ईसा सलीब पे
लटकाने के बाद जीवित
हो कहा गए ये भी अँधेरे में है
कहते है की जीवित होने के
बाद ईसा स्वर्ग कूच कर गए थे
पर क्या यही सच है?
चलो इसको छोड़ो
आपको ले चलते है अब धरती के
स्वर्ग जम्मू कश्मीर
की तरफ....
पिछले दिनों आपके परम प्रिय
परम ठलवे संत
शिरोमणि विजय कुमार
झकझकिया जी कश्मीर
यात्रा पे थे
यहाँ "खानयार" नामक स्थान
पे एक इमारत है जिसका नाम
है "रोजाबल"
इस इमारत में एक कब्र है जिसे
किसी मुस्लिम संत
"युसा आसफ" की कब्र
बता कर आज कल
किसी डिप्लोमेसी के तहत गैर
मुस्लिम के लिए प्रवेश और
फोटोग्राफी निषेध कर
दिया गया है
अब बाहर से ही पर
किसी महान मुस्लिम संत
की कब्र को देखने का लोभ
संवरण हम ना कर पाए
और बाहर से जो देखा
वो तनिक अचम्भे में डाल देने
वाला था
हीहीही
हुआ ये सरकार की
कब्र मुस्लिम की थी
पर कब्र को बनाने
का तरीका यहूदी था और
कब्र का मुह मक्का की तरफ
भी नहीं था
तो दिमाग ठनक गया
जासूसी कीड़ा कुनमुना गया
और "धनुष टंकार" प्यारे
को चढ़ा दिया सूली पे
हीहीही
लौट के जो उसने बताया उसने
दिमाग और होउच पाउच कर
दिया
हुआ ये की कथित मुस्लिम कब्र
के ऊपर शिलालेख भी "हिब्रू"
में
था जो की यहुदियो की ही भाषा है
शिलालेख में लिखा था की
"जोशुआ"
(जीसस का ग्रीक रूपांतरण)
यहाँ आये
एक महान सदगुरु जो स्वयं
को भेड़ो का गडरिया कहते थे
वे 112 वर्ष की आयु तक
यहाँ रहे
अब इस सब पे तुर्रा ये की इन
कब्रों की देखभाल
भी सदियों से एक
यहूदी परिवार
ही करता आया है
बात कुछ समधन में ना आई?
चलो समझने की कोशिश करते
है
जब भी किसी को सत्य
की चाह होती है
तो उसका प्यासा मन उसे पूरब
की सैर ले जाता है जहा के
तत्व ज्ञान ने हमेशा विश्व
को नयी राह दिखाई है पर
कुछ दम्भी शायद अपने दर्शन
को मौलिक साबित करने के
लिए इस बात
को कभी नहीं मानेगे
13 वर्ष की आयु में
ईसा सिल्क रूट के जरिये
व्यापारियो के जत्थे के साथ
कश्मीर के रस्ते भारत आये थे
जहा उनका पहला पड़ाव
था "पहलगाम"
"पहलगाम" का अर्थ है
गड़रियो का गाँव
ईसा खुद एक चरवाहे ही थे और
पहलगाम की वादियों में
सदियों से ये मान्यता व्याप्त
है की लगभग 2000 साल पहले
पहलगाम को किसी चरवाहे
द्वारा बसाया गया है
हजरत मूसा द्वारा ईश्वर
की राज्य की खोज करते
वक़्त यहुदियो का एक
जत्था खो गया था जिसके
बारे में old testament
खामोश है
की वो जत्था कहा गया
यही वो जत्था था जो रास्ता भटक
कश्मीर पहुच के बस
गया था और जिसके कारण
आज
भी कश्मीरियो का चेहरा मोहरा यहुदियो के
समान ही प्रतीत होता है
और ये यहूदी ही संभावित तौर
पे ईसा के कश्मीर में रुकने और
अपनी खोयी नस्ल
को आबाद करने की प्रेरणा थे
ईसा काफी समय तक कश्मीर
में बौद्ध हेमिस मठ में रहे
जिसके साक्ष्य मठ के
दस्तावेजो में मिलते हैं
सन 80 में आयोजित प्रसिद्द
बौद्ध सम्मेलन में भी ईसा के
भाग लेने के प्रमाण बौद्ध
साहित्य में है
ईसा 13 से 30 वर्षो के बीच
काफी समय भारत में रहे और
भारतीय योग और दर्शन
का उन्होंने अध्ययन किया.
ईसा की शिक्षाए वैदिक
संस्कृति और बुद्ध से बहुत
प्रभावित थी जिसके प्रमाण
स्वरुप वेद, धम्मपद और बाइबिल
की कई शिक्षाओ में एक
रूपता पायी जाती है और
यही कारण है की अल्लाह
की दूसरी किताब
उन्ही की भेजी तीसरी किताब
से मेल
नहीं खाती क्युकी दूसरी किताब
की शिक्षाओ का स्त्रोत
अल्लाह नहीं बल्कि भारतीय
दर्शन था
भारत से शिक्षा ग्रहण करने के
बाद ईसा वापस अपने वतन चले
गए थे और सलीब
वाली घटना के पश्चात शायद
उनका मन मसीहा बनने से
विरक्त हो गया था और
वो वापस भारत में आ गए थे
और 112 साल की आयु तक
यही रहे और उनके जीवन के
बिखरे रहस्य बौद्ध मठो में
संरक्षित साहित्य में संकलित
है
और यही उन्होंने देह त्याग
किया और उनकी कब्र आज
भी कश्मीर में मौजूद है
ईसा एक महान व्यक्तित्व के
स्वामी थे और
इस लेख का प्रयोजन
ईसा की महानता पे सवाल
उठाना नहीं बल्कि पश्चिम
की उस
मानसिकता को उजागर
करना है जिसने पूर्व के दर्शन
को हमेशा हेय दृष्टि से देख
कलुषित करने का प्रयास
किया है
और इसमें मध्यकालीन
इतिहासकारों और
ब्राह्मणवादी संस्कृति का भी दोष
है जिसने एक महान
संस्कृति को उसके मूल रूप से
विमुख कर उसकी अनर्गल
व्याख्या कर धर्म का स्वरुप
विकृत किया
चलते चलते
एक मजे की बात बताते है
"जल प्रलय" एक
ऐसी घटना थी जिसे विश्व के
सभी धर्मो में सर्वाधिक
महत्वपूर्ण माना गया है और
आपको हर मुख्य धर्म
की किताब में इसका विवरण
अवश्य मिलेगा
अब भारतीय दर्शन में
इसका घटना का विवरण "मनु
और उनकी नौका" के रूप में
किया जाता है
और यहूदी इस्लाम और ईसाई
मत में "हजरत नूह की किश्ती"
के रूप में
मनु और नूह का सारा प्रसंग
एक ही है बस नाम अलग अलग है
हम भले
ही कितना ही मौलिक होने
का दावा कर ले
पर सच्चाई यही है
की
धर्मो के इतिहास अवश्य अलग
अलग है
पर
"मानव जाति का इतिहास
एक ही है"
उम्दा लेख
ReplyDeleteAap jo bhi gumnam innsan ya atma ho sachchayi ko galat rukh dene ki bahot achchi chalaki ki.but aapne aone lekho ka koi bhi reference buddh dharm ya vedo se nahi diya..kya aaj k modern research time ko logi ko itni asani se bewzkuf azp jaise bin pendi k lote log bana sakte h
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