मित्रों भारत में आजकल “रेप” का फैशन चल रहा है. अखबार-चैनल-सोशल मीडिया
सभी पर रेप छाया हुआ है. जिस दिन रेप की खबर नहीं होती, लगता है कि दिन
सूना हो गया. इसलिए जब“प्रगतिशील” महिलाएँ बोर होने लगती हैं तब सात-आठ साल से लिव-इन में रखैल की
तरह खुशी-खुशी रहने के बाद अचानक उन्हें याद आता है कि, “अरे!! ये तो रेप
हो गया”. सो सेकुलर बौद्धिक तरक्की करते हुए आधुनिक भारत में ऐसी ख़बरें भी
सुनाई दे जाती हैं. अब तो बुद्धिजीवियों के पसंदीदा चैनल BBC ने भी दुनिया को समझा दिया है कि भारत के सारे मर्द रेपिस्ट होते हैं. तालियाँ
बजाते हुए सभी प्रगतिशीलों ने BBC की इस राय का समर्थन भी किया और मुकेश
नामक “हीरो” की फिल्म भारत में दिखाने की पुरज़ोर माँग रखी. बहरहाल, वह
झमेला अलग है, मैं तो आपको इस लेख में रेप के एक बिलकुल नए दृष्टिकोण के
बारे में बताने जा रहा हूँ. वह है “सेकुलर रेप” और “साम्प्रदायिक रेप”...
हैरान हो गए ना!!! जी हाँ... भारत में अधिकाँश रेप इन्हीं दो प्रकारों का
होता है...
आईये हम समझते हैं कि “सेकुलर रेप” और “साम्प्रदायिक रेप” में क्या अंतर होता है... पहले इस ब्लॉक डायग्राम को ध्यान से देख लीजिए. यही सेकुलर रेप का पूरा सार है, जिसे मैं शुद्ध हिन्दी में आपको समझाने की कोशिश करूँगा |
चलिए शुरू करते हैं... - जब भी देश में कहीं बलात्कार होता है तो “आदर्श लिबरल” या कहें कि प्रगतिशील सेकुलर बुद्धिजीवी सबसे पहले यह देखता है कि बलात्कार भाजपा शासित राज्य में हुआ है या गैर-भाजपा सरकारों के राज्य में. यदि भाजपा शासित राज्यों में बलात्कार हुआ है तब तो प्रगतिशीलों की बाँछें खिल जाती हैं. क्योंकि इस “कम्युनल रेप” के द्वारा यह सिद्ध करने का मौका मिलता है कि भाजपा शासित राज्यों में क़ानून-व्यवस्था नहीं है, महिलाओं की हालत बहुत खराब है. यदि बलात्कार किसी सेकुलर राज्य में हुआ हो, तो यहाँ फिर इसके दो भाग होते हैं, पहले भाग में यह देखा जाता है कि रेप पीड़ित लड़की हिन्दू है या गैर-हिन्दू. यदि लड़की हिन्दू हुई और आरोपी कोई सेकुलर किस्म का शांतिदूत हुआ तो मामला खत्म, कोई प्रगतिशील अथवा महिला संगठन उसके पक्ष में आवाज़ नहीं उठाएगा, यह होता है “सेकुलर रेप”. यदि वह लड़की गैर हिन्दू हुई तो यह देखा जाता है कि वह दलित है या अल्पसंख्यक और आरोपित कौन है. यदि आरोपी पुनः सेकुलर व्यक्ति निकला तो भूल जाईये कि कोई रेप हुआ था. लेकिन यदि रेपिस्ट कोई हिन्दू हुआ, तो ना सिर्फ उसका नाम जोर-जोर से चैनलों पर लिया जाएगा, बल्कि यह सिद्ध करने की पूरी कोशिश होगी कि किस तरह हिन्दू संस्कृति में बलात्कार जायज़ होता था, हिन्दू मर्द स्वभावगत बलात्कारी होते हैं आदि.
यदि बलात्कार गैर-भाजपा शासित राज्य में हुआ है और आरोपी सेकुलर अथवा मुस्लिम है, तो लड़की पर ही आरोप मढ़ा जाएगा और उसे बदचलन साबित करने की कोशिश होगी, और यदि बलात्कार करने वाला हिन्दू है तो गरियाने के लिए भारतीय संस्कृति तो है ही. इसी प्रकार यदि बलात्कार भाजपा शासित राज्य में हुआ हो, आरोपी भी हिन्दू हो तो समूची भारतीय संस्कृति को बदकार साबित करना होता है, उस घटना को अल्पसंख्यकों पर भारी अत्याचार कहकर चित्रित किया जाता है तथा तमाम चैनलों पर कम से कम दस दिन बहस चलाई जाती है, यह होता है “कम्युनल रेप”. कहते हैं कि औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन होती है, यही स्थिति सेकुलर-कम्युनल बलात्कार के बारे में भी है. सवाल उठता है कि बलात्कार जैसे घृणित अपराध को धार्मिक रंग और राजनैतिक ट्विस्ट कैसे दिया जाता है, और यह मानसिकता शुरू कैसे होती है. यह इन दो प्रगतिशील महिलाओं के ट्वीट्स पढ़कर समझ में आ जाता है.
पहला ट्वीट है आदर्श लिबरल (Adarsh Liberal) प्रगतिशील मालिनी पार्थसारथी का, जिसमें हिन्दू महिलाओं की मंगलसूत्र परम्परा को वे पाखण्ड और पुरुष सत्तात्मक प्रतीकात्मकता बताती हैं... जबकि दूसरे ट्वीट में मुस्लिम महिलाओं के बुर्के को वे हिन्दू पुरुषों के डर से अपनाई गई "परंपरा" बता रही हैं.
दूसरा ट्वीट भी एक और प्रगतिशील महिला कविता कृष्णन जी का है. बेहद आधुनिक विचारों वाली महिला हैं, बहुत सारे NGOs चलाती हैं और आए दिन टीवी चैनलों पर महिला अधिकारों पर जमकर चिल्लाती हैं. फिलहाल वे टाईम्स नाऊ के अर्नब गोस्वामी से नाराज़ चल रही हैं, क्योंकि अर्नब ने सरेआम इनकी वैचारिक कंगाली को बेनकाब कर दिया था, और इन्हें देशद्रोही कहा). बहरहाल, देखिये ट्वीट में मोहतरमा कितनी गिरी हुई हरकत कर रही हैं. इसमें एक तरफ वे कहती हैं कि मुम्बई के गैंगरेप को "धार्मिक रंग" देने की कोशिश हो रही है फिर घोषणा करती हैं कि "Rape has no Religion". परन्तु अपने ही एक और ट्वीट में प्रगतिशीलता का बुर्का फाड़ते हुए "कंधमाल में हिन्दू दलित लड़की और संघ परिवार" का नाम ले लेती हैं... तात्पर्य यह है कि सेकुलर-प्रगतिशील मानसिकता के कारण ही भारत में बलात्कार के दो प्रकार हैं - सेकुलर रेप और कम्युनल रेप.
अब अंत में संक्षेप में आपको एक-दो उदाहरण देकर समझाता हूँ कि सेक्युलर रेप क्या होता है और कम्युनल रेप कैसा होता है. पहला उदाहरण है पश्चिम बंगाल में एक नन के साथ लूट और बलात्कार का मामला. आपने देखा होगा कि किस तरह न सिर्फ आरोपियों के नाम छिपाए गए, बल्कि नन के उस संदिग्ध बलात्कार के कई झोलझाल किस्म के तथ्यों की ठीक से जाँच भी नहीं हुई. लेकिन ना सिर्फ इसे अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया गया, बल्कि यहाँ कोलकाता और दिल्ली में मोमबत्ती मार्च भी आयोजित हो गए.. यानी रेप हुआ कोलकाता में, आरोपी पाए गए अवैध बांग्लादेशी... लेकिन छाती कूटी जा रही है भाजपा के नाम पर... यह है “साम्प्रदायिक बलात्कार”. वहीं उसी बंगाल में रामकृष्ण मिशन की दो साध्वियों के साथ भी बलात्कार हुआ, क्या आपको पता चला?? किसी चैनल पर आपने किसी हिन्दू संगठन की कोई आवाज़ सुनी? क्या कोई मोमबत्ती मार्च निकला? नहीं... क्योंकि यह एक सेकुलर रेप है. इसमें हिन्दू साध्वी के साथ हुए बलात्कार को पूरी तरह निरस्त करने का प्रगतिशील फैशन है. इसी प्रकार जब बीबीसी की फिल्म मेकर लेस्ली उड़विन भारत के तिहाड़ में घुसकर फिल्म बना लेती है तो ना सिर्फ पीडिता का, बल्कि उसके माता-पिता का और आरोपी मुकेश का नाम सरेआम उजागर कर दिया जाता है. पहचान उजागर कर दी जाती है, क्योंकि ये सांप्रदायिक लोग हैं, लेकिन जिस नाबालिग(???) आरोपी ने निर्भया की आँतें बाहर निकाली थीं और जो क़ानून के पतली गली एवं सेकुलर मानवाधिकार गिरोह की वजह से फिलहाल चित्रकारी और मौज-मजे कर रहा है, उस “मोहम्मद अफरोज” का नाम जानबूझकर छिपा लिया जाता है, उसके माँ-बाप का चेहरा नहीं दिखाया जाता... यह “सेकुलर रेप” का ही एक प्रकार है....
तो मित्रों, अधिक न लिखते हुए भी आप समझ ही गए होंगे कि "सेकुलर रेप" क्या होता है और "कम्युनल रेप" कैसा होता है... तो अगली बार से ख़बरों पर ध्यान बनाए रखिए, मोमबत्ती गैंग की हरकतों और महिला अत्याचार के नाम पर सहानुभूति (यानी विदेशों से मोटा चन्दा) हासिल करने वालों पर भी निगाह बनाए रखियेगा... फिर आप इस खेल को और भी गहरे समझ सकेंगे...
आईये हम समझते हैं कि “सेकुलर रेप” और “साम्प्रदायिक रेप” में क्या अंतर होता है... पहले इस ब्लॉक डायग्राम को ध्यान से देख लीजिए. यही सेकुलर रेप का पूरा सार है, जिसे मैं शुद्ध हिन्दी में आपको समझाने की कोशिश करूँगा |
चलिए शुरू करते हैं... - जब भी देश में कहीं बलात्कार होता है तो “आदर्श लिबरल” या कहें कि प्रगतिशील सेकुलर बुद्धिजीवी सबसे पहले यह देखता है कि बलात्कार भाजपा शासित राज्य में हुआ है या गैर-भाजपा सरकारों के राज्य में. यदि भाजपा शासित राज्यों में बलात्कार हुआ है तब तो प्रगतिशीलों की बाँछें खिल जाती हैं. क्योंकि इस “कम्युनल रेप” के द्वारा यह सिद्ध करने का मौका मिलता है कि भाजपा शासित राज्यों में क़ानून-व्यवस्था नहीं है, महिलाओं की हालत बहुत खराब है. यदि बलात्कार किसी सेकुलर राज्य में हुआ हो, तो यहाँ फिर इसके दो भाग होते हैं, पहले भाग में यह देखा जाता है कि रेप पीड़ित लड़की हिन्दू है या गैर-हिन्दू. यदि लड़की हिन्दू हुई और आरोपी कोई सेकुलर किस्म का शांतिदूत हुआ तो मामला खत्म, कोई प्रगतिशील अथवा महिला संगठन उसके पक्ष में आवाज़ नहीं उठाएगा, यह होता है “सेकुलर रेप”. यदि वह लड़की गैर हिन्दू हुई तो यह देखा जाता है कि वह दलित है या अल्पसंख्यक और आरोपित कौन है. यदि आरोपी पुनः सेकुलर व्यक्ति निकला तो भूल जाईये कि कोई रेप हुआ था. लेकिन यदि रेपिस्ट कोई हिन्दू हुआ, तो ना सिर्फ उसका नाम जोर-जोर से चैनलों पर लिया जाएगा, बल्कि यह सिद्ध करने की पूरी कोशिश होगी कि किस तरह हिन्दू संस्कृति में बलात्कार जायज़ होता था, हिन्दू मर्द स्वभावगत बलात्कारी होते हैं आदि.
यदि बलात्कार गैर-भाजपा शासित राज्य में हुआ है और आरोपी सेकुलर अथवा मुस्लिम है, तो लड़की पर ही आरोप मढ़ा जाएगा और उसे बदचलन साबित करने की कोशिश होगी, और यदि बलात्कार करने वाला हिन्दू है तो गरियाने के लिए भारतीय संस्कृति तो है ही. इसी प्रकार यदि बलात्कार भाजपा शासित राज्य में हुआ हो, आरोपी भी हिन्दू हो तो समूची भारतीय संस्कृति को बदकार साबित करना होता है, उस घटना को अल्पसंख्यकों पर भारी अत्याचार कहकर चित्रित किया जाता है तथा तमाम चैनलों पर कम से कम दस दिन बहस चलाई जाती है, यह होता है “कम्युनल रेप”. कहते हैं कि औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन होती है, यही स्थिति सेकुलर-कम्युनल बलात्कार के बारे में भी है. सवाल उठता है कि बलात्कार जैसे घृणित अपराध को धार्मिक रंग और राजनैतिक ट्विस्ट कैसे दिया जाता है, और यह मानसिकता शुरू कैसे होती है. यह इन दो प्रगतिशील महिलाओं के ट्वीट्स पढ़कर समझ में आ जाता है.
पहला ट्वीट है आदर्श लिबरल (Adarsh Liberal) प्रगतिशील मालिनी पार्थसारथी का, जिसमें हिन्दू महिलाओं की मंगलसूत्र परम्परा को वे पाखण्ड और पुरुष सत्तात्मक प्रतीकात्मकता बताती हैं... जबकि दूसरे ट्वीट में मुस्लिम महिलाओं के बुर्के को वे हिन्दू पुरुषों के डर से अपनाई गई "परंपरा" बता रही हैं.
दूसरा ट्वीट भी एक और प्रगतिशील महिला कविता कृष्णन जी का है. बेहद आधुनिक विचारों वाली महिला हैं, बहुत सारे NGOs चलाती हैं और आए दिन टीवी चैनलों पर महिला अधिकारों पर जमकर चिल्लाती हैं. फिलहाल वे टाईम्स नाऊ के अर्नब गोस्वामी से नाराज़ चल रही हैं, क्योंकि अर्नब ने सरेआम इनकी वैचारिक कंगाली को बेनकाब कर दिया था, और इन्हें देशद्रोही कहा). बहरहाल, देखिये ट्वीट में मोहतरमा कितनी गिरी हुई हरकत कर रही हैं. इसमें एक तरफ वे कहती हैं कि मुम्बई के गैंगरेप को "धार्मिक रंग" देने की कोशिश हो रही है फिर घोषणा करती हैं कि "Rape has no Religion". परन्तु अपने ही एक और ट्वीट में प्रगतिशीलता का बुर्का फाड़ते हुए "कंधमाल में हिन्दू दलित लड़की और संघ परिवार" का नाम ले लेती हैं... तात्पर्य यह है कि सेकुलर-प्रगतिशील मानसिकता के कारण ही भारत में बलात्कार के दो प्रकार हैं - सेकुलर रेप और कम्युनल रेप.
अब अंत में संक्षेप में आपको एक-दो उदाहरण देकर समझाता हूँ कि सेक्युलर रेप क्या होता है और कम्युनल रेप कैसा होता है. पहला उदाहरण है पश्चिम बंगाल में एक नन के साथ लूट और बलात्कार का मामला. आपने देखा होगा कि किस तरह न सिर्फ आरोपियों के नाम छिपाए गए, बल्कि नन के उस संदिग्ध बलात्कार के कई झोलझाल किस्म के तथ्यों की ठीक से जाँच भी नहीं हुई. लेकिन ना सिर्फ इसे अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया गया, बल्कि यहाँ कोलकाता और दिल्ली में मोमबत्ती मार्च भी आयोजित हो गए.. यानी रेप हुआ कोलकाता में, आरोपी पाए गए अवैध बांग्लादेशी... लेकिन छाती कूटी जा रही है भाजपा के नाम पर... यह है “साम्प्रदायिक बलात्कार”. वहीं उसी बंगाल में रामकृष्ण मिशन की दो साध्वियों के साथ भी बलात्कार हुआ, क्या आपको पता चला?? किसी चैनल पर आपने किसी हिन्दू संगठन की कोई आवाज़ सुनी? क्या कोई मोमबत्ती मार्च निकला? नहीं... क्योंकि यह एक सेकुलर रेप है. इसमें हिन्दू साध्वी के साथ हुए बलात्कार को पूरी तरह निरस्त करने का प्रगतिशील फैशन है. इसी प्रकार जब बीबीसी की फिल्म मेकर लेस्ली उड़विन भारत के तिहाड़ में घुसकर फिल्म बना लेती है तो ना सिर्फ पीडिता का, बल्कि उसके माता-पिता का और आरोपी मुकेश का नाम सरेआम उजागर कर दिया जाता है. पहचान उजागर कर दी जाती है, क्योंकि ये सांप्रदायिक लोग हैं, लेकिन जिस नाबालिग(???) आरोपी ने निर्भया की आँतें बाहर निकाली थीं और जो क़ानून के पतली गली एवं सेकुलर मानवाधिकार गिरोह की वजह से फिलहाल चित्रकारी और मौज-मजे कर रहा है, उस “मोहम्मद अफरोज” का नाम जानबूझकर छिपा लिया जाता है, उसके माँ-बाप का चेहरा नहीं दिखाया जाता... यह “सेकुलर रेप” का ही एक प्रकार है....
तो मित्रों, अधिक न लिखते हुए भी आप समझ ही गए होंगे कि "सेकुलर रेप" क्या होता है और "कम्युनल रेप" कैसा होता है... तो अगली बार से ख़बरों पर ध्यान बनाए रखिए, मोमबत्ती गैंग की हरकतों और महिला अत्याचार के नाम पर सहानुभूति (यानी विदेशों से मोटा चन्दा) हासिल करने वालों पर भी निगाह बनाए रखियेगा... फिर आप इस खेल को और भी गहरे समझ सकेंगे...
Peace if possible, truth at all costs.