चचा 420 और बेजुबान महात्मा

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आजादी के समय कांग्रेस वर्किंग कमेटी में यह फ़ार्मूला निकाला गया था कि कांग्रेस के तमाम प्रदेशों के अध्यक्ष जिसके नाम पर सर्वाधिक वोट ड़ालेंगे वही कांग्रेस का अध्यक्ष बनेगा और वही देश का प्रथम प्रधानमंत्री बनेगा. इसी फ़ार्मूले के आधार पर वोट ड़लवाये गये. वोटिंग में चचा नेहरु को केवल 1 वोट मिला और सरदार पटेल को 14 वोट मिले. मतलब की चचा हार गये. उस जमाने में सोशल मीडिया न होते हुए भी देश का बच्चा-बच्चा चचाजान की अय्याशी, रंगीन मिजाजी और लेडी माउंटबेटन के साथ उनके संबंधों के बारे में जानता था, चचा का चरित्रहीन व्यक्तित्व किसी से छिपा हुआ नहीं था.
चचा की गंजी खोपड़ी को समझ आ गया कि फ़ार्मूले के हिसाब से तो वो प्रधानमंत्री बनने से रहे. तब हमारे कामपिपासु, सत्तापिपासु, लालची चचाजान ब्लैकमैलिंग पर उतर आये और पहुँच गये हमारे कथित राष्ट्रपिता गांधीजी के पास और साफ़-साफ़ बोले- अगर मैं प्रधानमंत्री नही बना तो मैं कांग्रेस को तोड़ दूंगा और अगर कांग्रेस टूट जायेगी तो अंग्रेज हिंदुस्तान से नही जायेंगे और उनको यह बहाना मिल जायेगा कि कौन सी कांग्रेस को हम सत्ता दें. जो कांग्रेस नेहरुवादी है या जो बाहरवाली कांग्रेस है.
और हमारे राष्ट्रपिता चचा की ब्लैकमैलिंग के शिकार हो गये और तुरंत सरदार पटेल को एक प्रसनल चिठ्ठी लिख डाली, जिसका रिकार्ड़ गाँधी के सेक्रेटरी प्यारे लाल की लिखित किताब ''पूर्ण आहूति'' में प्रकाशित है. बापू ने चिट्ठी में लिखा कि सरदार पटेल मैं जानता हूँ कि तुम जीत गये हो. लेकिन नेहरु इस समय सत्ता के मद में अँधा हो गया है और कांग्रेस को तोड़ने की बात कर रहा है और अगर इस समय कांग्रेस टूट गई तो अंग्रेज जायेंगे ही नही. उनको बहाना मिल जायेगा कि हिन्दुस्तान में हम कौन सी कांग्रेस को सत्ता सौंपे. कांग्रेस न टूटे. इसलिये मैं चाहता हूँ कि तुम अपना नाम वापिस ले लो.
सरदार पटेल ने सीधा बापू से मिलकर कहा कि बापू अगर ये आपकी अंतरात्मा है तो मैं हमेशा से आपका सेवक रहा हूँ. आप कहते हैं तो मैं अपना नाम वापिस ले लेता हूँ और दरियादिली दिखाते हुये सरदार पटेल ने अपना नाम वापिस ले लिया. इस तरह की चालबाजी से हमारे चचाजान हिन्दुस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री बनें.

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