(1) प्रश्न :- क्या ईस्लाम धर्म है ?
उत्तर :- नहीं ,धर्म बोलते हैं श्रेष्ठ आचरण को । और श्रेष्ठ आचार से ईस्लाम का दूर दूर तक कोई सम्बंध नहीं है । ईस्लाम एक मत है , जिसका मूल आधार है हिंसा और वासना । और लक्षय है वासना । जबकी धर्म का लक्षय आत्म साक्षातकार होता है ।
(2) प्रश्न :- नहीं हम नहीं मानते ! जैसे बाकी के धर्म हैं वैसे ही ईस्लाम भी एक धर्म ही हुआ ,तो क्यों नहीं मानते ?
उत्तर :- आप न मानें तो क्या सत्य मिथ्या बन जायेगा ? नहीं ईस्लाम एक व्यक्ति विषेश के स्वार्थों की पूर्ती हेतु थोपी गई एक विचारधारा है । अरबी साम्राज्य को विस्तृत करने के उदेश्य से उसको कानून की शक्ल दे कर हर गंदी से गंदी और वाहियात बातों को सही सिद्ध करके पुस्तक का नाम दिया गया है, जिसे कुरान कहा गया है । और यही कुरान है जिसे मुहम्मद की आवश्यक्ताओं के अनुसार समय समय पर बदला गया ।
(3) प्रश्न :- क्या कुरान ईश्वरीय पुस्तक है ?
उत्तर :- नहीं , यह एक व्यक्ति के पाश्विक कृत्यों को वैद्य सिद्ध करने के लिये अरबी में रचा गया पुस्तक है । जिसे उसकी ईच्छाओं के अनुकूल ढाला गया है समय समय पर । उदहारण :- जैसे एक स्थान पर कुरान में है कि आप जिस मत को चाहें अपना सकते हैं । ये बात तब कही गई है जब ईस्लाम ने शक्ति नहीं पकड़ी थी । परन्तु जैसे ही ईस्लाम ने शक्ति पकड़ी तो कुरान में ये लिखा गया कि काफिरों ( अन्य मत वालों ) को मार डालो , या समाप्त कर दो । तो इससे यही सिद्ध है कि ईश्वर ऐसा पक्षपाती नहीं हो सकता ।
(4) प्रश्न :- क्या मुहम्मद साहब पवित्र आत्मा थे ?
उत्तर :- नहीं, पवित्र आत्मा तो क्या वो एक अच्छा मनुष्य भी नहीं था । क्योंकि पवित्र आत्मा होने के लिये ब्रह्मचर्य का पालन आवश्यक है । अगर आप उसकी जीवनी पड़ेंगे तो पायेंगे कि वो अपनी यौन अकांशाओं पर कभी संयम नहीं रख पाया था । हर आयू की स्त्री से उसनो विवाह किया । जब वह २५ वर्ष का था तो उसने अपनी माँ की आयु की स्त्री जिसकी आयु ४० वर्ष थी, के साथ विवाह किया, अपने मूँह बोले पुत्र जैद की स्त्री ज़ैनब पर मोहित हो गया और जैद का इससे रिश्ता तुड़वा कर आप उसका स्वामी बन बैठा । कितनी ही स्त्री याँ जिनकोयुद्ध में जीता था जैसे कि मारिया, साफिया, रेहाना, जुवारियाह आदि को अपनी यौन अकांशाओं का ग्रास बनाया । जब स्वयं इसकी आयु ५३ की हुई तो इसने आयशा जो कि इसके मित्र अबू बकर की बेटी थी , जिसकी आयु ६ वर्ष थी उस अपनी पोती की आयु की बालिका को अपना शिकार बनाया । तो हदीसों में यह भी है कि मुहम्मद ने फातिमा को कब्र से निकाल कर उसके शव के साथ भी संभोग किया । और एक बार तो बकरियाँ चराते समय भी इसने बकरियों से भी व्याभिचार किया । तो क्या ऐसे को आप पवित्र आत्मा मानोगे ।
(5) प्रश्न :- तो फिर मुसलमान यह बात क्यों नहीं स्विकार करते ?
उत्तर :- क्योंकि जो साम्प्रदायीक लोग होते हैं उनमें आत्म सम्मान की भावना नहीं होती । वे निर्ल्लज होते हैं और अपने मत के संस्थापक के कुकृत्यों को भी सही ठहराने को उतारू रहते हैं । इसी का कारण आप देखें की मुसलमान परिवारों में लज्जा नामक वस्तू न के बराबर ही होती है । इनकी स्त्रीयाँ कामुक बातें करने में लज्जा भी अनुभव नहीं करतीं । और इसी कारण ये लोग मुहम्मद के चरित्र का चित्रण करने से डरते रहते हैं । और अगर कोई दूसरे मत वाला व्यक्ति यह करे तो उससे लड़ने को तैयार हो जाते हैं । भद्दी गालियाँ , और मौत की धमकियाँ देते हुए दिखाई देते हैं ।
(6) प्रश्न :- तो क्या मुहम्मद आखीरी पैगम्बर नहीं थे ?
उत्तर :- नहीं , मुहम्मद कोई पैगम्बर ही नहीं था । तो अंतिम होने का प्रश्न ही नहीं उठता । जैसा की लोगों का मत है कि ईश्वर अपने दूतों को भेजता है । सो गलत है , क्योंकि हम कहते हैं कि परमेश्वर हमारा पिता है । तो फिर अपने पिता से मिलने के लिये हमें बिचौलिये की सहायता क्यों चाहिये । क्यो बेटे को बाप से मिलने के लिये किसी दूसरे से पूछना पड़ेगा ? तो यह पैगम्बरवाद गलत है । क्योंकि अगर रो पीट कर इसे स्विकार करें भी तो कहें कि मुहम्मद का पैगम्बर कौन बना ? जो उसे मुक्ति दे ?
(7) प्रश्न :- क्या ईस्लाम तेज़ी से फैल रहा है ?
उत्तर :- नहीं , ईस्लाम तेज़ी से स्माप्त हो रहा है । क्योंकि घृणा और झूठ की नींव पर खड़ा ईस्लाम रूपी खोखला भवन अधिक देर तक न चलेगा । और अफ्रिका के १० लाख लोग हर वर्ष ईस्लाम छोड़ कर उससे मुक्त हो रहे हैं । ईस्लाम फैला है बहुत ही तीव्र गति से तो कुछ समय में , उसका कारण यह है कि बुराई सदा ही तीव्र गती से फैलती है अच्छाई की तुलना में । क्योंकि " अच्छाई एक कोस की तो बुराई सौ कोस की " । और दुर्गन्ध भी सुगन्ध की तुलना तीव्रता से फैलती है ।
(8) प्रश्न :- क्या मुसलमानों ने भारत पर १२०० वर्ष राज किया ?
उत्तर :- नहीं ! १२०० वर्षों तक अगर राज्य किया होता तो आज यहाँ पर ईसालामी शासन होता । क्योंकि इन १२०० वर्षों में मुसलमानों का कभी एक छत्र राज नहीं रहा । कभी मराठों ने सिंह गर्जना की , तो कभी तमिलों ने , कभी बुंदेलों ने , तो कभी राजपूतों ने , कभी गोरखाओं ने , कभी सिक्खों ने ,तो कभी भीलों ने । क्योंकि आप स्वयं देखें ईरान, अफगानिस्तान जैसे राज्यों पर ईस्लामी राज्य स्थिर रहा जिस कारण वह आज ईस्लामी देश हैं । और आज भारत के जितने मुसलमान हैं जो ये बात कहते हैं । वे बेचारे और कहेंगे भी क्या ? वो ये थोड़ा न कहेंगे कि मुगलों ने हम पर राज करके हमारी पूर्वज स्त्रीयों का शोषण करके हमें मुसलमान बनाया । वो इसी लिये कहते हैं कि हमने तुम पर राज किया । जैसे किसी hostel के final year के students अपने juniors की raging करते हैं तो वो juniors जब खुद final year में अपने juniors की रैगिंग करते हैं और शेखी मारते हैं कि " देखो हमने अपने सीनियरस की उफ तक नहीं झेली हम बहुत हिम्मत वाले थे । तो तुम भी वही करो जो हम कहेंगे ।" अब बेचारे किस मूँह से बतायें की उनकी pant भी उनके सीनियरस ने उतरवाई थी । तो यही हाल भारत समेत ऐशिया में रह रहे मुसलमानों का है , जो अरबों के किये कामों को अपना बताने को मजबूर हैं ।
उत्तर :- नहीं ,धर्म बोलते हैं श्रेष्ठ आचरण को । और श्रेष्ठ आचार से ईस्लाम का दूर दूर तक कोई सम्बंध नहीं है । ईस्लाम एक मत है , जिसका मूल आधार है हिंसा और वासना । और लक्षय है वासना । जबकी धर्म का लक्षय आत्म साक्षातकार होता है ।
(2) प्रश्न :- नहीं हम नहीं मानते ! जैसे बाकी के धर्म हैं वैसे ही ईस्लाम भी एक धर्म ही हुआ ,तो क्यों नहीं मानते ?
उत्तर :- आप न मानें तो क्या सत्य मिथ्या बन जायेगा ? नहीं ईस्लाम एक व्यक्ति विषेश के स्वार्थों की पूर्ती हेतु थोपी गई एक विचारधारा है । अरबी साम्राज्य को विस्तृत करने के उदेश्य से उसको कानून की शक्ल दे कर हर गंदी से गंदी और वाहियात बातों को सही सिद्ध करके पुस्तक का नाम दिया गया है, जिसे कुरान कहा गया है । और यही कुरान है जिसे मुहम्मद की आवश्यक्ताओं के अनुसार समय समय पर बदला गया ।
(3) प्रश्न :- क्या कुरान ईश्वरीय पुस्तक है ?
उत्तर :- नहीं , यह एक व्यक्ति के पाश्विक कृत्यों को वैद्य सिद्ध करने के लिये अरबी में रचा गया पुस्तक है । जिसे उसकी ईच्छाओं के अनुकूल ढाला गया है समय समय पर । उदहारण :- जैसे एक स्थान पर कुरान में है कि आप जिस मत को चाहें अपना सकते हैं । ये बात तब कही गई है जब ईस्लाम ने शक्ति नहीं पकड़ी थी । परन्तु जैसे ही ईस्लाम ने शक्ति पकड़ी तो कुरान में ये लिखा गया कि काफिरों ( अन्य मत वालों ) को मार डालो , या समाप्त कर दो । तो इससे यही सिद्ध है कि ईश्वर ऐसा पक्षपाती नहीं हो सकता ।
(4) प्रश्न :- क्या मुहम्मद साहब पवित्र आत्मा थे ?
उत्तर :- नहीं, पवित्र आत्मा तो क्या वो एक अच्छा मनुष्य भी नहीं था । क्योंकि पवित्र आत्मा होने के लिये ब्रह्मचर्य का पालन आवश्यक है । अगर आप उसकी जीवनी पड़ेंगे तो पायेंगे कि वो अपनी यौन अकांशाओं पर कभी संयम नहीं रख पाया था । हर आयू की स्त्री से उसनो विवाह किया । जब वह २५ वर्ष का था तो उसने अपनी माँ की आयु की स्त्री जिसकी आयु ४० वर्ष थी, के साथ विवाह किया, अपने मूँह बोले पुत्र जैद की स्त्री ज़ैनब पर मोहित हो गया और जैद का इससे रिश्ता तुड़वा कर आप उसका स्वामी बन बैठा । कितनी ही स्त्री याँ जिनकोयुद्ध में जीता था जैसे कि मारिया, साफिया, रेहाना, जुवारियाह आदि को अपनी यौन अकांशाओं का ग्रास बनाया । जब स्वयं इसकी आयु ५३ की हुई तो इसने आयशा जो कि इसके मित्र अबू बकर की बेटी थी , जिसकी आयु ६ वर्ष थी उस अपनी पोती की आयु की बालिका को अपना शिकार बनाया । तो हदीसों में यह भी है कि मुहम्मद ने फातिमा को कब्र से निकाल कर उसके शव के साथ भी संभोग किया । और एक बार तो बकरियाँ चराते समय भी इसने बकरियों से भी व्याभिचार किया । तो क्या ऐसे को आप पवित्र आत्मा मानोगे ।
(5) प्रश्न :- तो फिर मुसलमान यह बात क्यों नहीं स्विकार करते ?
उत्तर :- क्योंकि जो साम्प्रदायीक लोग होते हैं उनमें आत्म सम्मान की भावना नहीं होती । वे निर्ल्लज होते हैं और अपने मत के संस्थापक के कुकृत्यों को भी सही ठहराने को उतारू रहते हैं । इसी का कारण आप देखें की मुसलमान परिवारों में लज्जा नामक वस्तू न के बराबर ही होती है । इनकी स्त्रीयाँ कामुक बातें करने में लज्जा भी अनुभव नहीं करतीं । और इसी कारण ये लोग मुहम्मद के चरित्र का चित्रण करने से डरते रहते हैं । और अगर कोई दूसरे मत वाला व्यक्ति यह करे तो उससे लड़ने को तैयार हो जाते हैं । भद्दी गालियाँ , और मौत की धमकियाँ देते हुए दिखाई देते हैं ।
(6) प्रश्न :- तो क्या मुहम्मद आखीरी पैगम्बर नहीं थे ?
उत्तर :- नहीं , मुहम्मद कोई पैगम्बर ही नहीं था । तो अंतिम होने का प्रश्न ही नहीं उठता । जैसा की लोगों का मत है कि ईश्वर अपने दूतों को भेजता है । सो गलत है , क्योंकि हम कहते हैं कि परमेश्वर हमारा पिता है । तो फिर अपने पिता से मिलने के लिये हमें बिचौलिये की सहायता क्यों चाहिये । क्यो बेटे को बाप से मिलने के लिये किसी दूसरे से पूछना पड़ेगा ? तो यह पैगम्बरवाद गलत है । क्योंकि अगर रो पीट कर इसे स्विकार करें भी तो कहें कि मुहम्मद का पैगम्बर कौन बना ? जो उसे मुक्ति दे ?
(7) प्रश्न :- क्या ईस्लाम तेज़ी से फैल रहा है ?
उत्तर :- नहीं , ईस्लाम तेज़ी से स्माप्त हो रहा है । क्योंकि घृणा और झूठ की नींव पर खड़ा ईस्लाम रूपी खोखला भवन अधिक देर तक न चलेगा । और अफ्रिका के १० लाख लोग हर वर्ष ईस्लाम छोड़ कर उससे मुक्त हो रहे हैं । ईस्लाम फैला है बहुत ही तीव्र गति से तो कुछ समय में , उसका कारण यह है कि बुराई सदा ही तीव्र गती से फैलती है अच्छाई की तुलना में । क्योंकि " अच्छाई एक कोस की तो बुराई सौ कोस की " । और दुर्गन्ध भी सुगन्ध की तुलना तीव्रता से फैलती है ।
(8) प्रश्न :- क्या मुसलमानों ने भारत पर १२०० वर्ष राज किया ?
उत्तर :- नहीं ! १२०० वर्षों तक अगर राज्य किया होता तो आज यहाँ पर ईसालामी शासन होता । क्योंकि इन १२०० वर्षों में मुसलमानों का कभी एक छत्र राज नहीं रहा । कभी मराठों ने सिंह गर्जना की , तो कभी तमिलों ने , कभी बुंदेलों ने , तो कभी राजपूतों ने , कभी गोरखाओं ने , कभी सिक्खों ने ,तो कभी भीलों ने । क्योंकि आप स्वयं देखें ईरान, अफगानिस्तान जैसे राज्यों पर ईस्लामी राज्य स्थिर रहा जिस कारण वह आज ईस्लामी देश हैं । और आज भारत के जितने मुसलमान हैं जो ये बात कहते हैं । वे बेचारे और कहेंगे भी क्या ? वो ये थोड़ा न कहेंगे कि मुगलों ने हम पर राज करके हमारी पूर्वज स्त्रीयों का शोषण करके हमें मुसलमान बनाया । वो इसी लिये कहते हैं कि हमने तुम पर राज किया । जैसे किसी hostel के final year के students अपने juniors की raging करते हैं तो वो juniors जब खुद final year में अपने juniors की रैगिंग करते हैं और शेखी मारते हैं कि " देखो हमने अपने सीनियरस की उफ तक नहीं झेली हम बहुत हिम्मत वाले थे । तो तुम भी वही करो जो हम कहेंगे ।" अब बेचारे किस मूँह से बतायें की उनकी pant भी उनके सीनियरस ने उतरवाई थी । तो यही हाल भारत समेत ऐशिया में रह रहे मुसलमानों का है , जो अरबों के किये कामों को अपना बताने को मजबूर हैं ।
THIS IS TRUTH ,THIS IS REALITY;;YOU CAN CONFIRM FROM ; JAVED SHEIK;TASLIMA NASRIN;SALMAN RUSHDI;;;;THEY ALL ARE MUSLIMS ;;
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