Sex Life of Mahatma Gandhi गांधी की सेक्स लाइफ़ Part 3

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Sex Life of Mahatma Gandhi में आपने पढ़ा मोहनदास करमचंद गांधी की कथित सेक्स लाइफ़ पर एक बार फिर से बहस छिड़ गई है. लंदन के प्रतिष्ठित अख़बार “द टाइम्स” के मुताबिक गांधी को कभी भगवान की तरह पूजने वाली 82 वर्षीया गांधीवादी इतिहासकार कुसुम वदगामा ने कहा है कि गांधी को सेक्स की बुरी लत थी, वह आश्रम की कई महिलाओं के साथ निर्वस्त्र सोते थे, वह इतने ज़्यादा कामुक थे कि ब्रम्हचर्य के प्रयोग और संयम परखने के बहाने चाचा अमृतलाल तुलसीदास गांधी की पोती और जयसुखलाल की बेटी मनुबेन गांधी के साथ सोने लगे थे. ये आरोप बेहद सनसनीख़ेज़ हैं क्योंकि किशोरावस्था में कुसुम भी गांधी की अनुयायी रही हैं। उसके बाद Sex Life of Mahatma Gandhi Part 2 के अंत में गांधी से सम्बंधित पत्रों के विषय में आपने पढ़ा के संभव है क‍ि और अधिक खुलेपन को दर्शाने वाले पत्रों को नष्ट कर दिया गया हो लेकिन सेक्स की चाह जगाने वाले एक पत्र में यह लिखा गया है : 'वीणा का मेरे साथ सोना एक आकस्मिक घटना कही जा सकती है। बस इतना ही कहा जा सकता है कि वह मेरे साथ लिपटकर सोई थी।' अब आप खुद ही समझ सकते हैं कि गांधी के प्रयोग का मूल क्या केवल उनके करीब लिपटकर सोने तक ही सीमित रहा होगा? कोई भी सोच सकता है कि इसका अर्थ 'ना चाहते हुए स्खलित हो जाना' भी हो सकता है, जिसकी शिकायत उन्होंने भारत में लौटने के साथ बारम्बार की है। उनका मनुष्य के वीर्य में लगभग जादुई विश्वास था। उनका कहना था कि 'जो कोई भी अपने महत्वपूर्ण द्रव्य (वीर्य) को बचाकर रखता है, उसके पास कभी न असफल होने वाली ताकत होती है।'

इस बीच ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें अधिक आध्यात्मिक साहस के लिए और बड़ी चुनौतियों की जरूरत रही होगी और इसके लिए अधिक आकर्षक महिलाओं की आवश्यकता थी। वर्ष 1947 में सुशीला 33 वर्ष की थीं, उनकी जगह गांधी के बिस्तर में तय की गई। स्वतंत्रता से पहले के साम्प्रदायिक दंगों के समय में बंगाल में गांधी ने अपनी अठारह वर्षीय पोती- मनु-को बुला भेजा और उसके साथ सोने लगे।

उन्होंने उससे कहा, 'हम दोनों ही मुस्लिमों के हाथों मारे जा सकते हैं, इसलिए हमें अपनी पवित्रता का सर्वश्रेष्ठ परीक्षण करना चाहिए। हमें अपना सर्वाधिक पवित्र बलिदान करना चाहिए और अब हम दोनों को नंगे सोना शुरू कर देना चाहिए।' इस तरह का व्यवहार ब्रह्मचर्य की मान्य परम्परा के अनुरूप नहीं है। इसलिए उन्होंने ब्रह्मचारी की एक नई परिभाषा दी : 'जिसमें कभी कोई वासनात्मक भाव न हो और जो हमेशा ही ईश्वर भक्ति में तल्लीन रहता हो, वह किसी भी प्रकार के चेतन या अचेतन में स्खलित नहीं हो सकता है, वह नंगी महिलाओं के साथ नंगा सो सकता है, महिलाएं चाहे जितनी सुंदर हों पर वह किसी भी तरह से सेक्स के प्रति उत्तेजित नहीं हो सकता है...वह व्यक्ति प्रतिदिन और निरन्तर ईश्वर की ओर प्रगति कर सकता है और उसका प्रत्येक कार्य ईश्वर के प्रति किया जाता है और अन्य किसी के लिए नहीं।'

मतलब है कि वह जो चाहे कर सकता है जब तक कि उसमें किसी प्रकार स्पष्ट दिखने वाली 'वासनात्मक भावना' न हो। इसलिए कहा जा सकता है कि उन्होंने (गांधीजी) पवित्रता के विचार को अपनी निजी आदतों के तौर पर प्रभावी ढंग से पुर्नपरिभाषित किया। यहां तक तो उनके विचार आध्यात्मिक थे, लेकिन स्वतंत्रता से पहले भारत जो भयानक उथल पुथल देख रहा था, उन्होंने खुद ही तय कर लिया कि उनके सेक्स प्रयोगों का राष्ट्रीय महत्व भी है। उनका कहना था कि 'मैं कहता हूं कि देश की वास्तविक सेवा इस तरह के आचरण में है।' लेकिन, जब वे अपने दम्भ में अधिक साहसी हो रहे थे तब गांधी के इस व्यवहार पर व्यापक चर्चा होती थी और प्रमुख राजनीतिज्ञ तथा उनके परिजन इसकी आलोचना भी करते थे। उनके स्टाफ के कुछ लोगों ने इस्तीफा दे दिया और इन लोगों में वे दो सम्पादक भी शामिल थे जिन्होंने लड़कियों के साथ सोने के भाषणों को छापना बंद कर दिया था। लेकिन इस प्रयोग को आगे बढ़ाने के लिए गांधी ने आपत्तियों का ही सहारा लिया और कहा : 'अगर मैं मनु को अपने साथ नहीं सोने देता हूं (और हालांकि मैं इसे अनिवार्य मानता हूं कि उसे करना चाहिए) तो क्या यह मुझमें कमजोरी की निशानी नहीं माना जाएगा?'


स्वतंत्रता से पहले जब गांधी का कारवां चल रहा था तब उसमें उनके पोते कनु गांधी की अठारह वर्षीय पत्नी आभा भी शामिल हो गई और अगस्त के अंत तक वे दोनों के साथ सोने लगे थे। जब जनवरी 1948 में गांधीजी की हत्या की गई थी, तब भी दोनों लड़कियां उनके दोनों ओर थीं। गांधी के अंतिम वर्षों में मनु लगातार उनके साथ रही, लेकिन बाद में परिजनों ने मनु को इस दृश्य से हटा लिया था। तब गांधी ने अपने बेटे और मनु के पिता देवदास को लिखा था, 'मैंने उससे कहा था कि वह मेरे साथ सोने के बारे में लिखे' लेकिन गांधी की छवि की चिंता करने वालों ने उनके जीवन के इस पहलू को दृश्‍यपटल से गायब कर दिया। गांधीजी के बेटे, देवदास, मनु को दिल्ली स्टेशन ले गए, जहां उन्होंने उससे कहा कि वह पूरी तरह से अपना मुंह बंद करके रखे।

सत्तर के दशक में जब सुशीला नैयर से ब्रह्मचर्य प्रयोग को लेकर सवाल किए गए तो उनका कहना था कि गांधी के व्यवहार की आलोचना के जवाब में ब्रह्मचर्य प्रयोग को उनकी जीवन शैली का एक हिस्सा बताया गया। 'बाद में जब लोगों ने उनके महिलाओं के साथ शारीरिक संबंधों-जिनमें मनु के साथ, आभा के साथ और मेरे साथ- को लेकर सवाल करने शुरू किए तो ब्रह्मचर्य प्रयोगों का विचार विकसित किया गया ...इससे पहले के दिनों में इसे ब्रह्मचर्य प्रयोग कहने का कोई सवाल ही नहीं था।'
ऐसा लगता है कि गांधी ने जीवन अपनी इच्छा के अनुसार जिया और जब कभी उनको कोई चुनौती दी गई तो उनका कहना था कि यह सब ईश्यरीय इच्छा का पुरस्कार और लाभ है। बहुत सारे महान व्यक्तियों की तरह उन्होंने भी नियमों को अपनी स्थिति के अनुरूप बना लिया। 
हालांकि इसको लेकर आम तौर पर चर्चा होती थी और इसे गांधी की प्रतिष्ठा के लिए नुकसानदेह माना जाता था, लेकिन उनके सेक्सुअल बिहेवियर (यौन व्यवहार) की उनकी मृत्यु के बाद भी लम्बे समय तक अनदेखी की गई। यह तो अब संभव हो सका है कि हम सूचनाओं के आधार पर गांधी की एक सम्पूर्ण तस्वीर बनाने की कोशिश करते हैं।

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