भारत की वीरांगनाएं, जिनसे कांपते थे अंग्रेज

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भारत के स्वतंत्रता संग्राम में पुरुषों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया, तो महिलाएं भी पीछे नहीं रही। रानी लक्ष्मी बाई और रानी चेनम्मा जैसी वीरांगनाओं ने अंग्रेजों से लड़ते हुए अपनी जान दे दी। तो सरोजनी नायडू और लक्ष्मी सहगल जैसी वीरांगनाओं ने देश की आजादी के बाद भी सेवा की।

देश की शीर्ष 10 वीरांगनाए


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 रानी लक्ष्मी बाई(जन्म-1835, मृत्यु- 1858): झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की शहादत को कौन नहीं जानता। रानी लक्ष्मी बाई हमारी अनंत पीढ़ियों तक वीरता का प्रतीक रहेंगी। रानी लक्ष्मी बाई ने ने 1857 के पहले स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए। और लड़ते लड़ते शहादत को प्राप्त हुईं। कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान जी की कविता ‘खूब लड़ी मर्दानी, वो तो झांसी वाली रानी थी’ बच्चे बच्चे की जुबान पर है।

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बेगम हजरत महल(जन्म-1820, मृत्यु-1879): अवध की बेगम हजरत महल ने 1857 के पहले स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए। भारत सरकार ने बेगम हजरत महल के सम्मान में सन 1984 में स्टांप भी जारी किया।
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लक्ष्मी सहगल (जन्म: 24 अक्टूबर 1914 – मृत्यु: 23 जुलाई 2012) भारत की स्वतंत्रता संग्राम की सेनानी रहीं। वे आजाद हिन्द फौज की अधिकारी तथा आजाद हिन्द सरकार में महिला मामलों की मंत्री थीं। वे व्यवसाय से डॉक्टर थी जो द्वितीय विश्वयुद्ध के समय प्रकाश में आयीं। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब जापानी सेना ने सिंगापुर में ब्रिटिश सेना पर हमला किया तो लक्ष्मी सहगल सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फ़ौज में शामिल हो गईं थीं। वे आजाद हिन्द फौज की ‘रानी लक्ष्मी रेजिमेन्ट’ की कमाण्डर थीं। वे 1943 में अस्थायी आज़ाद हिंद सरकार की कैबिनेट में पहली महिला सदस्य बनीं। आज़ाद हिंद फ़ौज की हार के बाद ब्रिटिश सेनाओं ने स्वतंत्रता सैनिकों की धरपकड़ की और 4 मार्च 1946 को वे पकड़ी गईं पर बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया। लक्ष्मी सहगल ने 1947 में कर्नल प्रेम कुमार सहगल से विवाह किया और कानपुर आकर बस गईं। लेकिन उनका संघर्ष ख़त्म नहीं हुआ और वे वंचितों की सेवा में लग गईं। वे भारत विभाजन को कभी स्वीकार नहीं कर पाईं और अमीरों और ग़रीबों के बीच बढ़ती खाई का हमेशा विरोध करती रही।

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सरोजिनी नायडू(जन्म-1879, मृत्यु-1949): ‘द नाइटिंगल ऑफ इंडिया’ सरोजिनी नायडू न सिर्फ कवियित्री थी, बल्कि अनन्य स्वतंत्रता सेनानी भी थी। सरोजिनी नायडू ने महात्मा गांधी के साथ पूरे जीवन अंग्रेजों को छकाया। भारत छोड़ो आंदोलन के समय जेल भी गई, तो कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष होने का तमगा भी उन्हीं के पास है।

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 सुचेता कृपलानी(जन्म-1908, मृत्यु-1974): सुचेता कृपलानी ने बिना हथियार के ही अंग्रेजों को जीवन भर परेशान करके रखा। सुचेता कृपलानी हर समय महात्मा गांधी के साथ रही। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया। आजादी के बाद वे उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री भी बनीं।

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कित्तूर की रानी चेनम्मा(जन्म-1778, मृत्यु-1929): रानी लक्ष्मी बाई से भी पहले कित्तूर की रानी चेनम्मा ने अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया था। रानी चेनम्मा कर्नाठक के कित्तूर की जानी थी, जिन्होंने अंग्रेजों की गुलामी के खिलाफ बिगुल बजाया।

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दुर्गाभाभी: चन्द्रशेखर आजाद के अनुरोध पर ‘दि फिलॉसफी ऑफ बम’ दस्तावेज तैयार करने वाले क्रांतिकारी भगवतीचरण वोहरा की पत्नी ‘दुर्गा भाभी’ नाम से मशहूर दुर्गा देवी बोहरा ने भगत सिंह को लाहौर जिले से छुड़ाने का प्रयास किया। सन् 1928 में जब अंग्रेज अफसर साण्डर्स को मारने के बाद भगत सिंह और राजगुरु लाहौर से कलकत्ता के लिए निकले, तो कोई उन्हें पहचान न सके इसलिए दुर्गा भाभी की सलाह पर एक सुनियोजित रणनीति के तहत भगत सिंह उनके पति, दुर्गा भाभी उनकी पत्नी और राजगुरु नौकर बनकर वहां से निकल लिये। सन् 1927 में लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने के लिये लाहौर में बुलायी गई बैठक की अध्यक्षता दुर्गा भाभी ने की। बैठक में अंग्रेज पुलिस अधीक्षक जेए स्कॉट को मारने का जिम्मा वे खुद लेना चाहती थीं, पर संगठन ने उन्हें यह जिम्मेदारी नहीं दी। तत्कालीन बम्बई के गर्वनर हेली को मारने की योजना में टेलर नामक एक अंग्रेज अफसर घायल हो गया, जिस पर गोली दुर्गा भाभी ने ही चलायी थी। इस केस में उनके विरुद्ध वारण्ट भी जारी हुआ और दो वर्ष से ज्यादा समय तक फरार रहने के बाद 12 सितम्बर 1931 को दुर्गा भाभी लाहौर में गिरफ्तार कर ली गयीं। यह संयोग ही कहा जाएगा कि भगत सिंह और दुर्गा भाभी, दोनों का जन्म 1907 में ही हुआ था। मर्दाना वेष धारण कर उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन में खुलकर भाग लिया और बाल गंगाधर तिलक के गरम दल में शामिल होने पर गिरफ्तार कर जेल भेज दी गयी, जहां उन्होंने चक्की भी पीसा। यही नहीं महिला मताधिकार को लेकर 1917 में सरोजिनी नायडू के नेतृत्व में वायसराय से मिलने गये प्रतिनिधिमण्डल में वह भी शामिल थीं।

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विजय लक्ष्मी पंडित(जन्म-1900, मृत्यु-1990): देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित ने अंग्रेजों का डटकर सामना किया। वो रानी लक्ष्मी बाई और सरोजिनी नायडू से बेहद प्रभावित थी। विजय लक्ष्मी पंडित ने असहयोग आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। विजय लक्ष्मी पंडित लगातार आजादी की अलख जगाती रहीं और देश की आजादी के बाद कई महत्वपूर्ण पदों को संभाला।

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वीरांगना झलकारी देवी(जन्म-अज्ञात, मृत्यु-1857): झलकारी झाँसी राज्य के एक बहादुर कृषक सदोवा सिंह की पुत्री थी। उसका जन्म 22 नवंबर, 1830 ई. को झाँसी के समीप भोजला नामक गाँव में हुआ था। उसकी माता का नाम जमुना देवी था। जिसका अधिकांश समय प्रायः जंगल में ही काम करने में व्यतीत होता था। जंगलों में रहने के कारण ही झलकारी के पिता ने उसे घुड़सवारी एवं अस्त्र-शस्त्र संचालन की शिक्षा दिलवाई थी। कालांतर में उनकी शादी महारानी लक्ष्मीबाई के तोपची पूरन सिंह के साथ हो गई। रानी लक्ष्मी बाई के वेश में युद्ध करते हुए झलकारी बाई ने शहादत दे दी। उन्होंने तोपों से भी अंग्रेजों का सामना किया और तोप के गोले से ही उड़ा दी गईं।

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कनकलता बरुआ(जन्म-1924, मृत्यु-1942): कनकलता बरुआ असम की रहने वाली थी। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। भारत छोड़ो आंदोलन के समय उन्होंवे कोर्ट परिसर और पुलिस स्टेशन के भवन पर भारत का तिरंगा फहराया, जिसकी वजह से वो अंग्रेजों के लिए बड़ा खतरा बनकर सामने आईं। कनकलता बरुआ महज 17 साल की उम्र में पुलिस स्टेशन पर तिरंगा फहराने की कोशिश के दौरान पुलिस की गोलियों का शिकार बन गईं। महज 17 साल की उम्र में कनकलता बरुआ ने जो शहादत दी, उसका देश हमेशा ऋणी रहेगा।    
 

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