क्या रामदेव को पढ़ाने का अधिकार नहीं है मेरी समझ कहती है, सम्पूर्ण अधिकार है।

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भारतीय संतों की जो थोड़ी बहुत इज्जत थी उसका भी फ़ालूदा करने को आतुर लोग।

पढ़ने का अधिकार नहीं, पढ़ाने का अधिकार नहीं से आगे कुछ करने का समय है।

मेरी माता चाहती थी, मैं सनातन का प्रचार करूँ।
पिता चाहते थे अधिकारी बनूँ।
दादा चाहते थे पहलवान बनूँ।
नाना चाहते थे कि गीता ka अभ्यास करूँ।
स्कूल के अध्यापक चाहते थे कि स्कूल का नाम करें।
ये कुछ अपेक्षाएँ हैं जो मेरे बड़े चाहते थे, वरना परीक्षा में नक़ल कराने से खेल में पास देने जैसी आकांक्षाएँ भी थी मित्रों की।

तो आशा और विश्वास चलाते हैं इस दुनिया को। किसी को वर्तमान स्थिति स्वीकार नहीं है और कुछ करना चाहता है वह पात्र है परिवर्तन का।

यदि आप पात्र हैं तो किसने रोका था आपको कुछ करने से, क्यों नहीं बनायी एक योजना! 
क्यों नहीं भेजी मंत्री को आप तो शंकर के शिष्य हैं, जिन्होंने चार मठ बनाए, पूरे भारत को बौद्ध से आर्य बना दिया।

आप तो तब भी यही कह रहे थे, शंकर को अधिकार नहीं! वह माता का अंतिम संस्कार नहीं कर सकता है।
क्या आपने शंकर को सहज ही काम करने दिया था।
जिसके नाम का खाना खाते हैं उसी का जीवन नर्क बना दिया था।

आप के पास धन है, जनता है, सहयोग है,
आप सरकार के बिना ही काम शुरू कीजिए, 
बना कर दिखाइए, एक शंकर, एक विवेकानंद।
७० साल के प्रभुपाद ने ISCON खड़ा कर दिया,
आज गीता पढ़ाने में वही आगे हैं।
आपने मैदान क्यों छोड़ दिया है।

कुछ करिए, कुछ करिए🫵🏻🫵🏻
निंदा बहुत हुई अब कुछ करिए।

मैं बहुत तुच्छ हूँ।
शायद कुछ आता भी नहीं है, किन्तु जितना आता है उतना बताने की कोशिश करता हूँ।

न कोई विद्यालय है न कोई संगठन..
सिर्फ़ फ़ेसबूक का मंच है, आज तेरह साल बाद चार हज़ार से अधिक साथी हैं..

अधिकांश मुझसे विद्वान हैं, 
अनेक बातें जिन्हें मैं साधारण समझ कर लिखा था, वही मित्रों को अद्भुत लगी।

श्रवण कुमार, राखी को द्वार पर क्यों पूजते हैं,
हरीओम् क्यों कहते हैं?
अब प्रश्न आते हैं उत्तर आते हैं।
ज्ञान के लिए चाहिए एक जिज्ञासु

एक बताने वाला।
न कोई संगठन, न कोई आचार संहिता,
ये तो उसे स्थायित्व देते हैं, मूल तो दो से आया है।
राम और वशिष्ठ,
अर्जुन और कृष्ण,
नाचिकेता और यमराज,
अष्टावक्र और जनक,
दयानंद और विरजानंद,
विवेकानंद और रामकृष्ण,
आप में दम है तो आह्वान करें, कि सरकार से बड़ा विश्वविद्यालय बनाना है।

महेश योगी ने यह काम, अमेरिका, यूरोप और मध्यप्रदेश में किया है, वे कायस्थ थे ब्राह्मण नहीं,

योगी थे शंकराचार्य नहीं।
देव संस्कृति विश्वविद्यालय है किंतु श्रीराम शर्मा भी शंकराचार्य नहीं थे,
यह कलिकाल है, ब्राह्मण संस्कार से पतित है,
गोस्वामी वैरागी और न जाने कितनी उपजातियाँ यहाँ वहाँ OBC बन कर बैठी हैं,

चपरासी भिखारी बनने को आतुर हैं।
चाणक्य ने किस राजा से प्रार्थना की,
शंकर को किसने मदद की।

यदि दम है तो कुछ कीजिए वरना 
कुछ भी न कीजिए।
कुछ भी नहीं कीजिए।
आप कन्हैया की मौत पर चुप थे,
निर्भया की मौत पर चुप थे,
CAA पर चुप थे,
किसान आंदोलन में चुप थे,
PK में सनातन की बेइज़्ज़ती आपको न जगा सकी, न ही लाल सिंह चड्ढा पर आपके होंठ खुले, आपने धर्म को मलेरिए फैलाने वाला सुना और, मच्छर बन भिन भिन भी न कर सके, हमने अपने बूते पर लड़ी यह लड़ाई, किंतु आपको शर्म नहीं आयी।

तो ही मौनी बाबा अब भी मौन रहें,
सनातन के सैनिक हैं तो अहम ब्रह्मास्मि के प्रतीक बनें, शासन के तलवे न चाटें,
ब्राह्मण क्षत्रिय का कवच है सिद्ध करें।

इस देश को कर्मयोगी चाहिए, नहीं चाहिए आलोचक।

धर्म संसद बनाए अपना धर्म विश्वविद्यालय, 
कुछ कर दिखाए।

आइए साथ बढ़ें..
सरकार के साथ भी दृढ़ता से सरकार के बिना भी।

#Ramdev #Baba #BabaRamdev,
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