प्री वेडींग एक नया प्रदूषण हैं..

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प्री वेडींग वास्तव में समाज के अंदर एक नया प्रदूषण हैं


अवश्य पढें - अन्यथा आप भी तैयार रहें अपने जीवन को दुःखी करने के लिए!!


फिर पछतावत होत क्या जब चिड़ियां चुग जाये खेत -


प्री वेडिंग - यानी भारतीय संस्कृति के संपन्न घरेलु परिवारो में पश्चिमी संस्कृति का आगमन -


सम्माननीय बंधुवर


पिछले 1 - 2 वर्षो से देश में भारतीय संस्कृति से होने वाले विवाह समारोह में एक नया प्रचलन सामने आया हैं!!


जिसको वर्तमान में बडे परिवारो द्वारा आयोजित किया जा रहा हैं!!


जो समाज के अंदर रीढ़ कि हड़्ड़ी कहें जाते हैं!!


 - उस प्रोग्राम का नाम हैं - प्री वेडिंग -


इसके तहत होने वाले दूल्हा - दुल्हन अपने परिवारजनों की सहमति से


शादी से पुर्व फ़ोटो ग्राफर के एक समूह को अपने साथ में लेकर


देश के अलग - अलग सैर सपाटो की जगह ,बड़ी होटलो,हेरिटेज बिल्डिंगों,समुन्द्री बीच व अन्य ऐसी जगहों पर जहाँ सामान्यतः पति पत्नी शादी के बाद हनीमून मनाने जाते हैं!!


वहां जाकर अलग - अलग और कम से कम परिधानों में एक दूसरे की बाहो में समाते हुए


वीडियो शूटिंग करवाते हैं!!


और फिर उसी वीडियो फ़ोटो ग्राफी को शादी के दिन एक बड़ी सी स्क्रीन लगाकर!!


जहाँ लड़की और लड़के के परिवार से जुड़े तमाम रिश्तेदार मौजूद होंते हैं!!


की उपस्थिति में सार्वजनिक रूप से उस कपल को वह सब करते हुए दिखाया जाता हैं!!


जिनकी अभी शादी भी नहीं हुई हैं!!


और जिनको जीवन साथी बनने के साक्षी बनाने और उन्हें आशीर्वाद देने के लिये ही सगे संबंधियो और सामाजिक लोगो को वहा बुलाया जाता हैं!!


लेकिन यह क्या गेट के अंदर घुसते ही जो देखने को मिलता हैं!!


वह शर्मसार करने वाला होता हैं!!


जिस भावी कपल को हम वहा आशीर्वाद देने पहुँचते हैं!!


वह कपल वहां पहले से ही एक दूसरे की बाहो में झूल रहे होंते हैं!!


और सबसे बड़ी बात यह हैं की यह सब दोनों परिवारो की सहमति से होता हैं!!


इन सब सच्चाई को देखकर एक विचार मन में आता है!!


जब सब कुछ हो चुका हैं तो आखिर हमें यहाँ क्यों बुलाया गया हैं!!


यह शुरुआत अभी उन घरानो से हो रही हैं!!

ऐसे बड़े परिवारों के ऐसी शादियों को जो अपने पैसो के बल पर इस प्रकार की गलत प्रवर्तियो को बढ़ावा देकर समाज के छोटे तबके के परिवारो को संकट में डाल रहे हैं!!


मेरा समाज के उन सभी सभ्रांतजनो से अनुरोध हैं कि - अपने- अपने समाज में ऐसी पश्चिमी संस्कृति को बढ़ावा देने वाले परिवारो से ऐसी प्रवृत्ति को बंद करने का अनुरोध करें!!


अन्यथा ऐसी शादियों का सामाजिक रूप से खुलेआम बहिष्कार करें!!


तब ही ऐसे गंदे प्रवर्तियो पर रोक लगना संभव हो सकेगा!!


अन्यथा ऐसी संस्कृति से आगे चलकर समाज का इतना बड़ा नुकसान होंगा जिसकी भरपाई कई पीढ़ियों तक करना संभव नहीं हो सकेंगा!!


और कुछ परिवारों की वजह से शादी जैसे पवित्र बंधन पर शादी से पूर्व ही एक बदनुमा दाग लगेगा!!


जिसका खामियाजा समाज के छोटे तबके को भुगतना पड़ेंगा!!


जिसकी परिणीति में शादी से पूर्व सम्बन्ध टूटना या शादी के बाद तलाक की संख्या में वृद्धि के रूप में होंगी!!


जरूर सोचे एवं विचार करें की आप और हम इतने गंदे काम का समर्थन क्योंकर रहे हैं???


सुनने में आ रहा हैं कि कोरियोग्राफर के साथ मुम्बई के बहुत ही अच्छे घरानों की तीन शादी - शुदा 👩🏻औरतें भाग चुकी हैं!!!


इसलिए बंद करों यह महिला संगीत और 💃🏻नाच - गानें!!


महिने दो महिने तक बंद कमरे में एक्शन सिखाने के बहाने कमर में हाथ डालकर नचाते हैं आपकी बहू - बेटीयों के साथ ... आखिर क्या हांसिल होता हैं... शादी ब्याह में स्टेज पर कुछ ठुमके लगाने से... क्या वे नृत्य की राष्ट्रीय ऊचाइयों के आसपास भी होती हैं... फिर क्यों परिवार के लोग नृत्य के नाम पर कोरियोग्राफर की मदद लेकर अपने घर की इज्ज़त दांव पर लगाने में फक्र अनुभव कर रहें हैं... वैसे शालीनता पूर्ण पारंपरिक नृत्य भी परफोर्मिंग होता तो भी सुन्दर होता हैं... ये अपना नाम बदल कर आने वाले कोरियोग्राफर , और उसके दोस्त???


क्या उचित हैं ये नाच - गाने और कोरियोग्राफर रखना , क्या पैसा इसीलिए कमाया था.. कौन और कितने समय याद रखता हैं कोई इन.. लटके झटकों को.. ?


सेक्स (Sex) और रिलेशनशिप (Relationship) के विषय में आज की पीढ़ी से संवाद करना समुद्र मंथन करने जैसा है।

पिछले कुछ सालों से देश में भारतीय संस्कृति से होने वाले विवाह (marriage) समारोह में एक नया प्रचलन सामने आया है, “प्री वेडिंग फोटोशूट” (Pre-wedding Photoshoot) का, जोकि आज से लगभग सात-आठ साल पहले शुरू हुआ था।

धारणा यह थी कि होने वाले दूल्हा-दुल्हन (groom and bride) सगाई के बाद और शादी से पहले अपने परिवारजनों की सहमति से किसी सुनसान लोकेशन पर फ़ोटोग्राफर के एक समूह के साथ देश के अलग-अलग सैर सपाटों की जगह, बड़े होटलों, हेरिटेज बिल्डिंगों, समुन्द्री बीच व अन्य ऐसी जगहों पर जाते हैं जहाँ सामान्यतः पति-पत्नी शादी के बाद हनीमून (honeymoon) मनाने जाते हैं।

और वहाँ जाकर वर-वधु अलग-अलग और कम से कम परिधानों में एक दूसरे की बाहों में समाते हुए वीडियो शूट करवाते हैं।
उनके साथ कैमरामैन होते हैं जो उस लोकेशन पर विभिन्न मुद्राओं में उनकी तस्वीरें खींचते हैं और वीडियो शूट कर के उनके बीच फूट रहे प्रेम को प्रदर्शित करते हैं।

यह ट्रेंड यानी रिवाज़ तब तक सबको बहुत सुहा रहा था जब तक फोटो या वीडियो साधारण हुआ करते थे।
साधारण यानी लड़का-लड़की हाथों में हाथ डाले नदिया किनारे टहलते दिखाई देते थे। एक दूजे की आंखों में आखें डाल कर मुस्कुराते दिखाई देते थे।

फिर इस साधारण से ट्रेंड को कुछ जोड़ों ने असाधारण बनाने की ठान ली।
प्री वेडिंग फोटोशूट में एक दूजे से लिपटना, एक दूजे को चूम लेना आदि-इत्यादि होने लगा। कुल मिला कर प्री वेडिंग फोटोशूट को “सेक्सी” बनाने का होड़ चलने लगा।

हालांकि एक दूजे को गले लगाना या चूमने से किसी को क्या आपत्ति हो सकती है?

लेकिन आपत्ति तब होती है जब एक दूजे पर प्रेम-वर्षा कर रहे जोड़ों का यह वीडियो शादी के समय मेहमानों के आगे बड़ी स्क्रीन पर चलाया जाता है।

जहाँ पर लड़की और लड़के के परिवार से जुड़े तमाम रिश्तेदार मौजूद होते हैं और उन सभी की उपस्थिति में सार्वजनिक रूप से उस जोड़े को वो सब करते हुए दिखाया जाता है और यह वीडियो उन जोड़ों का है जिनकी अभी शादी होनी बाकि है।

जिनको जीवन साथी बनने के साक्षी बनाने और उन्हें आशीर्वाद देने के लिये ही सगे संबंधियों और सामाजिक लोगों को वहाँ बुलाया जाता है।

लेकिन यह क्या गेट के अंदर घुसते ही जो देखने को मिलता है वह शर्मसार करने वाला होता है। जिस भावी जोडे को हम वहाँ आशीर्वाद देने पहुँचते हैं, वो वहाँ पहले से ही एक दूसरे की बाहों में झूल रहे होते हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि यह सब दोनों परिवारों की सहमति से होता है।

लड़का-लड़की कई दिन तक बाहर रह कर साथ में कई रातें बिता चुके होते हैं। यह सब देख कर एक विचार मन में आता है कि जब सब कुछ हो चुका है तो आखिर हमें यहाँ क्यों बुलाया गया है? यह शुरुआत अभी उन घरानों से हो रही है, जो समाज के नेतृत्वकर्ता हैं।

जो समाज-सुधार की दिशा में कार्यक्रम करते रहते हैं। और प्रायः मंच से लोगों को बड़ी-बड़ी बातें एवं सिखाते हैं। ऐसे बड़े परिवार ऐसी शादियों को पैसों के बल पर इस प्रकार की गलत प्रवृत्तियों को बढ़ावा देकर समाज के छोटे तबके के परिवारों को संकट में डाल रहे हैं। जो कि भारतीय संस्कृति और संस्कार से उचित नहीं है।

और अगर ऐसे लोगो को कुछ करना ही है तो वह एक सामाजिक दायरे में होना चाहिए ताकि अपने परिवार के साथ किसी मांगलिक कार्यक्रम में गया व्यक्ति किसी प्रकार से शर्मिंदगी न महसूस करे।

आगे मैं आपको एक कहानी सुनाता हूँ जोकि प्री-वेडिंग फोटोशूट (Pre-wedding Photoshoot) से ही जुड़ा हुआ है। तो आईये आगे बढ़ते हैं –

गत वर्ष हमारे एक युवा मित्र की सगाई हुई थी। तो इस वर्ष शादी से पहले कन्या (उनकी होने वाली पत्नी) ने आधी रात बंधु को फोन कर के कहा कि उन्होंने “प्री वेडिंग फोटोशूट” की लोकेशन और शूट करने वाले कैमरामैन की टीम फाइनल कर ली है।
और शूटिंग राजस्थान के एक किले में की जायेगी। यह सुन के बंधु बिगड़ गया।

उसने कहा मैडम मुझसे ये प्री वेडिंग शूट वाला चोंचला ना हो पायेगा। बंधु के मना करने पर दोनों में आधी रात लट्ठ बज गया। मने भयंकर लट्ठ बज गया।

भाई, क्या है ना कि पति-पत्नी को लड़ने के लिये सारी उम्र मिलती है। परंतु सगाई और शादी के बीच के समय लट्ठ बज जाना ये तो अच्छी बात नहीं है।

खैर, मैं अगले दिन बंधु से मिला। इस विषय पर थोड़ी बहुत बात हुई।

मैंने भी उससे कहा कि भाई होने वाली लुगाई है, जिद ना कर और एक-आध दिन घूम फिर आ। फोटो खिंचवा ले, वीडियो बनवा ले। कन्या भी खुश, तू भी खुश, सब खुश। इसमें दिक्कत क्या है?

लडके ने जो जवाब दिया, कसम से मेरी बोलती बंद हो गई।

उसने बोला- भाईसाहब ओ और मैं एक दूसरे को हग करते हैं या किस करते हैं या फिर एक दूसरे के साथ किसी लोकेशन पर कुछ टाईम बिताते हैं, ये तो ठीक है। इसमें कोई दिक्कत भी ना है।

लेकिन हम दोनों के बीच जो हो रहा है, वह पर्सनल है। मेरे और मेरी होने वाली पत्नी के बीच जो हो रहा है, वह पर्सनल है।
जो पर्सनल है उसे कैमरामैन शूट करेगा और शादी के दिन सारी दुनिया देखेगी।

भाई, लडके का जवाब और तमतमाया हुआ चेहरा देख अपनी तो बोलती बंद हो गई।

बंधु ने कहा- “मैं उसको बाहों में लेता हूं और उसे बाहों में लेते हुऐ मुझे कैमरा मैन देख रहा है? यही सब करना है तो सीधा बेडरूम में सीसीटीवी कैमरा लगवा दो ना?”

मैं तो उसी दिन समझ गया था कि लड़के की अपनी प्राथमिकता है और वह यो ना झुकेगा।

कन्या (जो अब हमारी परम आदरणीय भाभी जी हैं) ने पूरा जोर लगा लिया।

बातचीत बंद हो गई। तलवारें खींच गई। मान-मनौव्वल हेतु वर और वधू पक्ष को मध्यस्थता करनी पड़ी।

लेकिन भाई ना माना। सांड के माफिक बीच सड़क खड़ा हो गया। बोला नहीं होगा तो, नहीं होगा।

खैर, ब्याह हुआ और पूरे धूमधाम से हुआ। ब्याह में खूब फोटो खींची गई।

लेकिन प्री वेडिंग शूट के नाम पर चल रहे ट्रेंड को भाई ने अपने ब्याह से ऐसे फेंक दिया जैसे कोई दूध में से मक्खी निकाल कर फेंक देता है।

कुल मिला कर बंधु की बात काबिले गौर थी। कुछ बातें, कुछ लम्हें, कुछ तस्वीरें पर्सनल होती हैं। व्यक्तिगत जीवन का एक अटूट हिस्सा होती हैं।

इस दौर में सबकी अपनी पसंद नापसंद है। सार्वजनिक कार्यक्रम में व्यक्तिगत तस्वीरों और वीडियो का प्रदर्शन कहाँ तक सही है इस विषय पर मेरे ख्याल से विचार जरूर होना चाहिये।

मेरा आपसे यही अनुरोध है कि एक जिम्मेदार और सामाजिक व्यक्ति होने के नाते इस पर जरूर सोचे एवं विचार करें कि आखिर हम समाज, परिवार और अपनी भारतीय संस्कृति को कहाँ ले जा रहे हैं और आने वाली पीढ़ियों के सामने क्या उदाहरण प्रस्तुत करना चाहते हैं।

और अंत में आपसे आग्रह है कि कमेंट के माध्यम से आप अपने विचार भी रखें और कोई त्रुटि हुयी हो तो उसे क्षमा करने की कृपा करें।

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Peace if possible, truth at all costs.

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