फिल्मे समाज का आईना होती है।" ऐसा हम बचपन से ही सुनते आ रहे है। मतलब फिल्मो मे वही दिखाया जाता है जो समाज मे चल रहा होता है। पर सच्चाई ये है की बॉलीवुड मे ऐसा नही होता। ये लोग भाषा तक वो नही रखते जहां का ये चरित्र निभाते है
मैने एक विडीयो देखा था जिसमे जावेद अख्तर साब कह रहे थे की मै फिल्मो मे भारी-भरकम भाषा का विरोधी हु और आसान भाषा का हिमायती।
आसान भाषा से उनका मतलब था, आसान ऊर्दु। क्युकी शुद्ध हिंदी तो भारी होती है। ये उनका विचार था। राजकुमार हिरानी ने भी "लगे रहो मुन्ना भाई" मे यह दिखाया की "आत्मसंबोधन" और "आत्मसंतुलन" जैसा शब्द बहुत भारी होता है। पर इन शब्दो का आसान वाला रिप्लेसमेंट नही बताया। अर्थात, आपको ये शब्द प्रयोग करने ही पडेंगे क्युकी ऊर्दु मे इनके लिये कोई शब्द ही नही है।
मै बचपन से बॉलीवुड फिल्मे देख रहा हुं पर फिल्मो मे बहुत अधिक प्रयोग किये जाने वाले कुछ शब्दो के अर्थ आजतक नही समझ पाया। उदाहरणार्थ- सहर, कशिश, तिजारत, जुस्तजु, सद़ा, शब, शिद्दत, मुद्दत, मुरव्वत, सैय्यारा, महबूब, अश्क, बहार, हमनवा इत्यादि।
ऐसे शब्द हमारी बोलचाल मे भी प्रयोग नही होते। पर फिल्मो के डायलोग्स मे होते है। फिल्म की कहानी अगर मुस्लिम समुदाय की है तो भी समझ मे आता है की ऊर्दु शब्दो के प्रयोग से ऑथेटिक दिखता है। पर विशुद्ध ब्राह्मण चरित्रो को भी ऊर्दु डायलोग्स बोलते दिखाना कहा तक उचित है?
मैने आजतक युपी-बिहार मे किसी को "शुक्रिया" शब्द का प्रयोग करते नही देखा। "धन्यवाद" और "थैंक्यु" बोला जाता है। पर युपी/बिहार के चरित्र फिल्मो मे "शुक्रिया" ही नही, भगवान को "रब" भी बोलते है।😂
जावेद अख्तर जैसो का एक तर्क ये है की शुद्ध हिंदी डायलोग्स होंगे तो वो जनता को समझ नही आयेंगे। तो भाई साहब मुगल-ए-आजम मे मैने अकबर को सामान्य हिंदी बोलते नही सुना। ना ही जोधा-अकबर मे भी अकबर बोलचाल और समझने वाली हिंदी बोल रहा था। वो तो विशुद्ध ऊर्दु बोल रहा था।
जबकी संजय लीला भंसाली जैसे परफेक्शनिस्ट और सिरियस निर्देशक ने तेरहवी सदी के चरित्र रावल रतन सिंह से भी कई ऊर्दु शब्द बोलवा दिये थे। उस समय तो ऊर्दु पैदा भी नही हुई थी। उसी फिल्म मे खिलजी का कैरेक्टर एक भी शुद्ध हिंदी के शब्द नही बोलता है।
कुछ ऐसा ही तर्क दिया था चाणक्य सिरियल बनाने वाले चंद्रप्रकाश द्विवेदी जी ने जब उन्होने "सम्राट पृथ्वीराज" बनाई थी। बारहवी सदी का राजा विशुद्ध ऊर्दु ही नही, एकदम टपोरी वाली भाषा बोल रहा है। राजकुमारी संयोगिता सम्राट पृथ्वीराज से कह रही है की "पहली फुरसत मे मुझसे मिलने आईये।"🤣
पहली फुरसत?
पहली फुरसत??🤣🤣
भाई ये शब्द हमने हिंदुस्तानी भाऊ के मुह से पहली बार सुने थे।😂
द्विवेद्धी जी का कहना था की हमने भाषा ऐसी इसलिये रखी है ताकी जनता को समझ आये। तो भैया फिर मोहम्मद गोरी के डायलोग्स शुद्ध ऊर्दु मे क्यु रख दिये?
एक फिल्म आयी थी "जबरिया जोडी"। कहानी बिहार की थी पर उसमे गाने पंजाबी थे। मतलब चरित्र और भाषा का कोई ताल-मेल ही नही है। आपने दृश्यम फिल्म देखी होगी। पर पुरी फिल्म मे "दृश्यम" शब्द का कही प्रयोग नही है। "विजुअल्स" बोलकर निकल गये। क्या हिंदी भाषीयो को "दृश्य" शब्द नही समझ आता? वैसे हिंदी फिल्मो मे तो "दृश्य" शब्द का ही प्रयोग नही होता। "नजारा" शब्द का प्रयोग होता है। इतना मुर्ख समझते है ये हिंदी भाषियो को।
कन्नड, मलयालम और तेलुगु भाषा मे संस्कृत के बहुत से शब्दो का प्रयोग होता है। इसलिये उन फिल्मो की हिंदी डबिंग मे आपको बॉलीवुड की फिल्मो से अधिक शुद्ध हिंदी सुनने को मिल जाती है। यही कारण है की बाहुबली सिरीज या फिर RRR जैसी फिल्मो के डायलोग्स विशुद्ध हिंदी वाले होते है।
हालांकी हालिया रिलीज तमिल फिल्म पोन्नियिन सेल्वन के डायलोग्स ऊर्दु मे थे। क्युकी निर्माताओ ने हिंदी डबिंग पर विशेष ध्यान नही दिया था इसलिये दसवी सदी का चरित्र भी "औरत" और "मर्द" जैसे ऊर्दु शब्द बोलता था।
कुछ शुद्ध हिंदी के शब्द जिनका प्रयोग हमलोग दैनिक बोलचाल मे करते है, वो तो बॉलीवुड से जैसे गायब ही हो गये है। जैसे- प्रेम, सत्य, विवाह, पीड़ा, स्नेह, वर, वधु, वचन, विद्या, गगन, पृथ्वी, शक्ति, तिथि, हृदय, कृपा, क्षमा, प्रभु, स्वामी इत्यादि।
ऐसे शब्द आपने अंतिम बार किस फिल्म मे सुना था कमेंट करियेगा। अगर लेखक ने स्क्रिप्ट मे ऐसे शब्द लिख भी दिये तो डाईरेक्टर उनको निकाल देता है। क्यु निकालता है ये तो वे ही जाने। पर युपी, बिहार, राजस्थान, और एमपी मे इन शब्दो का बहुत प्रयोग होता है।
ये सब बाते हम हिंदीभाषी लोग
पहले तो नही समझ पाते थे पर बाद मे पता चला की पंजाबी और ऊर्दु, इन दो भाषाओ मे ही बॉलीवुड मे फिल्मे बनती है। ये लोग अंग्रेजी मे बात करते है। स्क्रिप्ट भी अंग्रेजी मे होती है। डायलोग्स भी रोमण फॉन्ट मे होता है। और फिल्मे ऊर्दु और पंजाबी मे बनती है। और रिलीज हिंदी बोलकर की जाती है।
Peace if possible, truth at all costs.