दोस्तों,
हो सकता है की "Live in Relationship" के बारे में आप लोगों के विचार अलग-अलग हो किन्तु मेरी मने तो ये "रखैल व्यवस्था" का ही आधुनिक रूप है
नारी सशक्तीकरण व स्त्री स्वतंत्रता की ओट में 'रखैल व्यवस्था' का पुनर्जीवन ही लिव इन रिलेशनशिप है.
रखैल व्यवस्था का आधुनिकीकरण
आज कल के युवा पीढ़ी इस गैर सामाजिक संबंधों के प्रति अत्याधिक आकर्षित दिखाई दे रही है. उनका तर्क होता है कि विवाह के बंधन में बंधने से पहले एक-दूसरे को अच्छी तरह से समझ लिया जाए तो वैवाहिक जीवन में सामंजस्य बैठा पाना आसान हो जाता है. समाज द्वारा महिला और पुरुष को विवाह से पहले साथ रहने की इजाजत न होने के बावजूद युवा लिव इन में जाने से बिलकुल नहीं हिचकिचाते.कुछ लोग मानना है कि यह प्रथा भारतीय समाज में प्राचीन समय से "रखैल" के स्वरूप में व्याप्त है किन्तु वो यह भूल जाते हैं, कि दोनों मे कितना अन्तर है। साधारण भाषा में रखैल को रक्खा जाता था जिसमे पुरुष की इच्छा सर्वोपरि होती थी स्त्री मजबूरी बस या जर्बजस्ती मे रहती थी । उसे पत्नी की हैंसियत भी नही मिलती थी। स्त्री स्वेच्छा से किसी की रखैल बनना स्वीकार नही करती थी। दूसरे तरफ "लिव इन" मे स्त्री स्वेच्छा से रहना स्वीकार करती है और उसे वो विचारों की आधुनिकता और स्वतन्त्रता कहती है। युवा पीढी भट्क गयी है, या नही ये तो हम नही कह सकते परन्तु जो भी इन सम्बन्धों को सहमति देता है, उसकी सोच अवश्य भारतीय संस्कृत के विपरीत है।
आप " लिव इन रिलेशनशिप " की वकालत करने वालों से यह प्रश्न पुछ सकतें है की:
क्या "लिव इन रिलेशनशिप " विवाह की गारंटी लेता है?
आज कल लिव इन के टूटने और प्रेमी के धोखा देने के बाद सुसाइड जैसी घटनाये दिन प्रतिदिन बढती जा रही है, लिव इन के टूटने के बाद दुनियां के तानों से बचने के लिए स्त्री के पास "आत्महत्या" के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचता.
भारतीय संस्कृति की गरिमा दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है, जिस भारत में लोग रिश्ते निभाने एवंम मूल्यों को मानने में अपने स्वार्थ की बलि दे देते हैं। जहां नदियों को माँ माना जाता हो, जहां पति को परमेश्वर का दर्जा दिया जाता हो,उसी भारत मे आज विवाह जैसी संस्था को हमारी युवा पीढी अस्वीकार करने लगी है, और लिव इन जैसी रिश्ते को स्वीकार करने लगी है ।उसके पीछे तर्क ये है, कि इसमे कोई बन्धन नही है । जब तक मन मिले तब तक रहो वरना अपना-अपना रास्ता नापो।आज हम अधिकार तो चाहते हैं। लेकिन कर्त्तव्य नही निभाना चाहते हैं। रिश्ते तो चाहते हैं।
परतुं जिम्मेदारियाँ नहीं चाहते इसलिए हम पश्चिमीसभ्यता के अधांनुकरण के फलस्वरूप लिव इन जैसे रिश्ते को स्वीकारने लगे हैं।"लिव इन रिलेशनशिप" की आड़ में वासनात्रप्ती की खुले आम स्वीकारोक्ती है। पति-पत्नी के रिश्ते से विभिन्न रिश्तों का स्रृजन होता है, वहीं लिव इन रिश्ते अपना ही स्थायित्व नही जानते।
यह कहना कदापि गलत नहीं होगा कि महिलाओं के शोषण का नया दौर शुरू चुका है और अपनी आंखों पर आधुनिकता की पट्टी बांधे युवक/युवतियां इस बात को सोचना तो दूर, सुनना भी पसंद नहीं करते, और इस प्रकार के अमर्यादित रिश्तों को बेहिच अपना रहे है।
यही हमारे समाज की कड़वी सच्चाई है. यहां महिलाओं के अस्तित्व और उनके सम्मान को स्वीकार करना अभी तक एक चुनौती ही बना हुआ है. पुरुष जैसे चाहे, जब चाहे महिलाओं को नीचा दिखा सकते हैं. लेकिन हम नारी-सशक्तिकरण के विषय में सुनकर ही संतुष्ट हो जाते हैं. जबकि जमीनी सच्चाई आज भी पहले जैसी ही है, जिसके स्वरूप में भले ही थोड़ा-बहुत बदलाव आया है, लेकिन महिलाओं की शोचनीय दशा जस की तस बनी हुई है. तथाकथित उदारवादी और खुद को आधुनिक कहने वाले लोग भले ही लिव इन रिलेशनशिप को महिलाओं की स्वच्छंदता के लिए बेहद जरूरी मानते हों, लेकिन सच यह है कि “लिव इन रिलेशनशिप सदियों से चली आ रही रखैल व्यवस्था का आधुनिक स्वरूप है, जिसे बड़े ही आकर्षक ढंग से हमारे युवाओं के सामने प्रस्तुत किया जा रहा है.” ऐसी व्यवस्था में पुरुष द्वारा महिलाओं का भरपूर शारीरिक शोषण किया जाता है, लेकिन उन्हें किसी भी प्रकार का पारिवारिक दर्जा या सामाजिक दर्जा देने का कोई रिवाज नहीं है.
हम हमेशा भारतीय संस्कृति और परंपराओं की दुहाई देकर लिव इन रिलेशनशिप को गैर परंपरावादी मानकर गलत कहते हैं, जबकि हमारा इतिहास इस बात का गवाह है कि महिलाओं को अपने अधीन रखना, उनका शोषण करना भारतीय पुरुषों का बहुत पुराना शौक है, जिसे परंपरा स्वरूप बेरोकटोक आज भी अपनाया जा रहा है.
वहीं महिलाओं को भी अब दासता की आदत पड़ चुकी है, इसीलिए वह लिव इन को भी अपनी आजादी के रूप में बड़े शौक से स्वीकार कर लेती हैं. जबकि यह सीधे-सीधे पुरुषों को उनका दमन करने का एक अन्य मौका दे देता है.
यह कहना कदापि गलत नहीं होगा कि महिलाओं का शोषण करने का ट्रेंड नए स्वरूप में एक बार फिर अपनी जड़ें जमा चुका है और अपनी आंखों पर आधुनिकता की पट्टी बांधे हमारे मॉडर्न युवा इस बात को सोचना तो दूर, सुनना भी पसंद नहीं करते
रखैल व्यवस्था का बाजारीकरण
स्त्री-पुरुष का साथ यूं तो प्राकृतिक स्थिति है किंतु जब इसे ग्लैमराइज किया जाता है तो वाकई बात चिंताजनक हो जाती है. कुछ यही बात आजकल के सर्वाधिक विवादास्पद और चर्चित शब्द “लिव इन रिलेशनशिप” में है.
प्राचीन काल में पूरे विश्व सहित भारत में रखैल व्यवस्था समाज के काफी बड़े वर्ग में छुपे तौर पर मान्य थी. हालांकि इस व्यवस्था को सबसे अधिक प्रश्रय सामंतवाद के दौरान मिला जहॉ पर रखैलें रखना सम्मान का प्रतीक समझा जाता था. शोषण और दासता की दास्तां कहती इन रखैलों को कभी-कभी अप्रत्यक्ष रूप से काफी बड़े अधिकार भी हासिल हो जाते थे.
इस दौरान जो सबसे बड़ी बात नजर आती थी वह थी इस व्यवस्था के प्रति आमलोगों की घृणा. यानी जनसामान्य इसे अच्छा नहीं समझता था और जहॉ तक हो सके इससे दूर रहने की कोशिश करता था. और जहॉ यह व्यवस्था अपनायी गयी थी वहॉ भी इसे छुपे तौर पर ही रखा गया था.
लिव इन रिलेशनशिप बनाम रखैल व्यवस्था
क्या आपको नहीं लगता कि आज जिस एक व्यवस्था लिव इन रिलेशनशिप को सामाजिक स्वीकृति दिलाने की कवायद मीडिया और अन्य कई महानुभावों द्वारा की जा रही है वह उसी रखैल व्यवस्था को नई पैकेजिंग में और नए नाम से पेश करने की ही कवायद है. मार्केट का विकास और उसकी बढ़ोत्तरी स्त्री को भोग्या बना कर रखने में है. बाजार नए-नए ब्राण्ड का सृजन करता है और इसी तरह उसने रखैल सिस्टम को भी प्रतिस्थापित कर लिव इन रिलेशनशिप को स्थापित किया. उस पर तुर्रा ये कि ये सब स्त्रियों को आजादी दिलाने के नाम पर हुआ. कितनी आसानी से लोग फंस गए इस दुष्चक्र में और लगे अलापने राग आजादी की……………
कैसी आजादी…किससे आजादी और कितनी आजादी………
नारी को मूर्ख समझने वाला बाजार उसे अंतिम रूप से केवल एक उपभोग की वस्तु में तब्दील कर देना चाहता है और भोगी पुरुषों की इसमें पूरी स्वीकृति भी शामिल है. यह बार-बार आजादी की बात करते हैं ध्यान रहे बातें और केवल बातें और हकीकत में उन्हें पूर्णरुपेण गुलाम बनाने की साजिश हो रही है.
चूंकि इस वर्ग को पता है कि आज की स्त्री को पहले की तरह सीधे-सीधे बेवकूफ बना कर शोषण नहीं किया जा सकता इसलिए उन्होंने इसे नए नामों से पेश करना शुरू कर दिया. यह नाम आकर्षक है, सुन्दर है और नशे की तरह है.
अच्छा लगता है, बहुत अच्छा लगता है ये कहना कि हम उदारवादी हो चले हैं. हम एक नए युग में जी रहे हैं जहॉ नारी स्वतंत्र है, अपने डिसिजंस खुद ले सकती है……..खुद अपने कॅरियर, विवाह और बच्चे के जन्म का भी निर्णय उसके ही हाथों में है.
मुलम्मा चढ़ा है आजादी का और गुलामी की जंजीर उसके गले में डाल दी गयी है, उसका पूरा शरीर बेडियों से जकड़ दिया गया है………. सांस भी ले पाना मुश्किल हो रहा है………….
यही है बाजार की हकीकत
और ये सब कर रहा है बाजार जहॉ बिक रही है नारी की अस्मिता, उसका अस्तित्व, उसे भोग्या और पूरी तरह से सिर्फ भोग्या बना दिया बाजार ने…………..मुक्ति नहीं अब क्योंकि जब तक बाजार है बिकता रहेगा सबकुछ.
इस हकीकत को समझना जरूरी है कि लिव इन रिलेशनशिप के लिए जितने आन्दोलन भारत में नारीमुक्ति और उदार वातावरण तथा उदार समाज बनाने के नाम पर हो रहे है उनमें से ज्यादातर लोग इस सच्चाई से नावाकिफ हैं, किंतु उन्हीं परिवर्तनवादियों में ऐसे वास्तविक लोग भी मौजूद हैं जो सब कुछ जानते हैं कि ऐसा क्यूं होना चाहिए, और वे उसी सोची-समझी नीति के तहत बड़े संगठन बना कर शोषण का माहौल कायम कर देना चाहते हैं.
Peace if possible, truth at all costs.