संसद में अगर लोकसभा चुनाव द्वारा आए हुए जनप्रतिनिधि अपनी मनमानी करने लगे तो क्या होगा।
देश का भविष्य कौन संवारेगा, ऐसे प्रश्न बार-बार इन दिनों देश के लोगों को परेशान करती है।
लेकिन इसका समाधान भी भारतीय संविधान के अंदर ही दिया गया है।
अगर कोई देश का राष्ट्रपति चाहे तो वह प्रधानमंत्री की सारी शक्तियों को इकट्ठा कर अपने हाथों में ले सकता है, और देश को बर्बादी से बचा सकता है।
भारतीय संविधान के अनु. 53 (1) राष्ट्रपति में संघ की सारी कार्यपालिका शक्ति निहित करके उसे भारतीय गणराज्य का प्रमुख बना देता है। अनु. 53(2) उसे भारतीय सेना का सर्वोच्च सेनापति बनाता है।
सेना के सर्वोच्च कमान की उसकी यह शक्ति कानून द्वारा विनियमित होने की बाध्यता है।
किन्तु आगे अनु. 123 उसे अध्यादेश जारी करने की विधायिनी शक्ति भी प्रदान करता है, जिस शक्ति के प्रयोग में वह कानून बना कर अपनी इस शक्ति को स्वयं अपनी इच्छानुसार किसी भी प्रकार से विनियमित करके सेना को अपने नियंत्रण में रख सकता है और सैनिक-शक्ति के बल पर देश में अपनी इच्छानुसार बदलाव ला सकता है।
उधर, अनु. 53(1), यद्यपि राष्ट्रपति में संघ की सारी कार्यपालिका शक्ति निहित करता है, किन्तु यह भी उपबंधित करता है कि वह अपनी शक्ति का प्रयोग संविधान के अनुसार करेगा।
संविधान के अनुसार इस पदावली के संदर्भ में राष्ट्रपति की यह शक्ति संविधान के उपबंधों से सीमित हो जाती है और उसका मनमाना प्रयोग नहीं कर सकता है।
यदि वह संविधान का उल्लंघन करता है, तो इस आरोप के आधार पर उस पर अनु. 61 के अंतर्गत संसद में महाभियोग चलाया जा सकता है और उसे उसके पद से हटाया जा सकता है।
फिर भी संविधान के ही अनुसार आगे उसे कुछ ऐसी भी शक्तियां प्रदान की गई हैं जो उसे देश का मालिक बना सकती हैं।
उदाहरण के लिए अनु. 85 के अंतर्गत वह संसद के किसी भी सदन का सत्रावसान कर सकता है और लोकसभा को भंग कर सकता है, और अनु. 352 के अंतर्गत आपात की उद्घोषणा करके संसद को भंग कर सकता है।
अनु. 359 के अंतर्गत मूल अधिकारों को और न्यायालय द्वारा उनके प्रवर्तन के अधिकार को भी निलंबित कर सकता है।
इस प्रकार, संविधान का उल्लंघन किये बगैर, संविधान द्वारा पदत्त शक्तियों के द्वारा ही एक देशभक्त राष्ट्रपति भारत को अपनी सपनों का भारत बना सकता है।
देश का भविष्य कौन संवारेगा, ऐसे प्रश्न बार-बार इन दिनों देश के लोगों को परेशान करती है।
लेकिन इसका समाधान भी भारतीय संविधान के अंदर ही दिया गया है।
अगर कोई देश का राष्ट्रपति चाहे तो वह प्रधानमंत्री की सारी शक्तियों को इकट्ठा कर अपने हाथों में ले सकता है, और देश को बर्बादी से बचा सकता है।
भारतीय संविधान के अनु. 53 (1) राष्ट्रपति में संघ की सारी कार्यपालिका शक्ति निहित करके उसे भारतीय गणराज्य का प्रमुख बना देता है। अनु. 53(2) उसे भारतीय सेना का सर्वोच्च सेनापति बनाता है।
सेना के सर्वोच्च कमान की उसकी यह शक्ति कानून द्वारा विनियमित होने की बाध्यता है।
किन्तु आगे अनु. 123 उसे अध्यादेश जारी करने की विधायिनी शक्ति भी प्रदान करता है, जिस शक्ति के प्रयोग में वह कानून बना कर अपनी इस शक्ति को स्वयं अपनी इच्छानुसार किसी भी प्रकार से विनियमित करके सेना को अपने नियंत्रण में रख सकता है और सैनिक-शक्ति के बल पर देश में अपनी इच्छानुसार बदलाव ला सकता है।
उधर, अनु. 53(1), यद्यपि राष्ट्रपति में संघ की सारी कार्यपालिका शक्ति निहित करता है, किन्तु यह भी उपबंधित करता है कि वह अपनी शक्ति का प्रयोग संविधान के अनुसार करेगा।
संविधान के अनुसार इस पदावली के संदर्भ में राष्ट्रपति की यह शक्ति संविधान के उपबंधों से सीमित हो जाती है और उसका मनमाना प्रयोग नहीं कर सकता है।
यदि वह संविधान का उल्लंघन करता है, तो इस आरोप के आधार पर उस पर अनु. 61 के अंतर्गत संसद में महाभियोग चलाया जा सकता है और उसे उसके पद से हटाया जा सकता है।
फिर भी संविधान के ही अनुसार आगे उसे कुछ ऐसी भी शक्तियां प्रदान की गई हैं जो उसे देश का मालिक बना सकती हैं।
उदाहरण के लिए अनु. 85 के अंतर्गत वह संसद के किसी भी सदन का सत्रावसान कर सकता है और लोकसभा को भंग कर सकता है, और अनु. 352 के अंतर्गत आपात की उद्घोषणा करके संसद को भंग कर सकता है।
अनु. 359 के अंतर्गत मूल अधिकारों को और न्यायालय द्वारा उनके प्रवर्तन के अधिकार को भी निलंबित कर सकता है।
इस प्रकार, संविधान का उल्लंघन किये बगैर, संविधान द्वारा पदत्त शक्तियों के द्वारा ही एक देशभक्त राष्ट्रपति भारत को अपनी सपनों का भारत बना सकता है।
Peace if possible, truth at all costs.