धर्मनिरपेक्षता की सच्चाई

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धर्मनिरपेक्षता शब्द के जनक जॉर्ज जेकब हेलीयाक(१८१७-१९०६) का जन्म ससेक्स, इंग्लैंड में हुआ था। वे मूलतः एक व्याख्याता संपादक थे। तब यूरोप का इसाई समाज रूढ़िवादी और दकियानूसी सोच से बुरी तरह ग्रस्त था।
सन १८४२ में जेकब हेलीयाक को ईशनिंदा के आरोप में ६ महीने के लिए जेल भेज दिया गया। हेलियाक वेल्स के समाजवाद के संस्थापक सदस्यों में से एक राबर्ट ओवेन (१७७१-१८५८) की विचारधारा से बहुत प्रभावित थे।
राबर्ट ओवेन के विचार से-
"सभी धर्म एक ही हास्यास्पद कल्पना पर आधारित हैं जो मनुष्य को एक कमजोर, मूर्ख पशु, उग्रता से पूर्ण धर्मांध, एक कट्टरवादी और पाखंडी बनाती है।"
लेकिन अपने इस धर्म विरोधी सिद्धांत के उलट कुछ वर्षों बाद ही ओवेन ने आश्चर्यजनक रूप से हिन्दू योग और आध्यात्म की राह पकड़ ली।
जेकब हेलीयाक ने अपने गुरू के धर्मनिरपेक्ष विचार को आगे बढ़ाने की ठानी और हवालात से बाहर आकर इसने द मूवमेंट और द रिजनर नामक पत्र निकालना शुरू किया। इन पत्रों के मूल में था धर्म विरोध ।
हेलियाक ने इस पत्र के माध्यम से एक नई व्यवस्था का आह्वान किया जो धर्म को खारिज करके विज्ञान और तर्कों पर आधारित हो। इस व्यवस्था का नामकरण उसने सेकुलरिज्म किया। जिसे हम भारतीय "धर्मनिरपेक्षता" कहते हैं। इसकी कुछ परिभाषाएं हैं-
१. वो जीवन पद्धति जिनका आधार आध्यात्मिक अथवा धार्मिक न हो।
२. धार्मिक व्यवस्था से पूर्णतया मुक्त जीवन शैली।
३. वो राजनैतिक व्यवस्था जिसमें सभी धर्मो के लोग सामान अधिकार के पात्र हो एवं प्रशासन एवं न्याय व्यवस्था निर्माण में धार्मिक रीती रिवाजों का हस्तक्षेप न
हो।
४. ऐसी व्यवस्था जो किसी धर्म विशेष पर आधारित न हो और प्रशासनिक नीतियों का नियमन किसी धर्म विशेष
को ध्यान में रख कर न किया जाए।
इस शब्द के इतिहास और परिभाषा से यह बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है की इस शब्द का जन्म ही धर्मविरोध के लिए हुआ था।

अब हम आते हैं अपने भारतीय परिवेश में-
इस शब्द की उत्पत्ति ईसाई धर्म के दकियानूसी परम्पराओं के विरोध मे हुई थी। ये मेरी समझ के बाहर है की विश्व कल्याण, सर्वधर्मसमभाव प्रत्येक मनुष्य को समानता का अधिकार और पेड़-पौधों तथा कीड़े-मकोड़ों से भी प्रेम की शिक्षा देने वाले हिन्दू धर्म के देश भारत में ये कैसे और क्यों लागू किया गया..!!!
इस परिकल्पना को मूर्त रूप देते समय क्या हमारे संविधान निर्माताओं ने ये नहीं सोचा की, भारत ऐसा देश है जहाँ हर १० किलोमीटर पर पानी का स्वाद और ५० किलोमीटर में पूजा पद्धति बदल जाती है। जिन्होंने सदियों से समान मानव पर आधारित समाज और कानून का पालन किया है वो अचानक सेकुलर कैसे हो जाएँगे.!!
सेकुलरिज्म का मतलब है एक ऐसी व्यवस्था जो किसी धर्म विशेष पर आधारित न हो और प्रशासनिक नीतियों का नियमन किसी धर्म विशेष को ध्यान में रख कर न किया जाए।
हमारा संविधान एक तरफ भारत को सेकुलर कहता है और दूसरी ओर हिन्दुओं और मुस्लिमों के लिए अलग विवाह अधिनियम लागू करता है। एक तरफ सेकुलर कानून है जिसमें मुस्लिमों को चार विवाह करने की इजाजत देता है वहीं हिन्दुओं को ऐसा करने पर कानूनी रूप से दंड देता है। देश के असली अल्पसंख्यक धर्मों जैसे सिख, जैन, बौद्ध (१०%) आदि को दरकिनार करके २३% की बड़ी आबादी वाले मुसलमानों को अल्पसंख्यक का दर्जा दे देता है।
जिस सेकुलरिज्म के मूल में धर्म विरोध था, वह अब धार्मिक पक्षपात कर क्या साबित करना चाहता है ?
सच तो ये है कि सेकुलर जैसी कोई विचारधारा हमारे समाज में अवस्थित ही नहीं हो सकती हाँ घटिया राजनीति करने वाले लोगों की सेकुलर खेती में खाद
पानी का काम जरूर करती है।
हमें आखिर क्या जरूरत है इस विदेशी सेकुलरिज्म की जबकि हम सदियों से सहिष्णुता एवं सर्वधर्म समभाव को मानवता की सीढ़ी मानकर अपने जीवन मूल्यों में समाहित करते रहे हैं। समानता की भावना तो सदियों से हमारे रक्त में है इसे सेकुलरिज्म का तड़का लगाकर स्वयं को आधुनिक दिखाने का तर्क क्या है?
हिन्दुओं में 'धर्म' अपने मानवीय कर्तव्यों को कहा जाता है किसी समुदाय या जाति विशेष को नहीं। फिर इस शब्द की तो उत्पत्ति ही समुदाय विरोध के धरातल पर हुई थी। क्या हमारी सदियों पुरानी हिंदुत्व की अवधारणा इस विदेशी विचारधारा के सामने नहीं ठहरती?
हिंदुत्व ने हजारों साल तक सभी धर्मों को स्वीकार किया,स्थान दिया और सम्मान दिया।
इस सेकुलरिज्म नामक विदेशी बालक ने अभी जन्म लिया किलकारियां भरने की उम्र गयी नहीं की गुलाम
मानसिकता और सत्ता और कानून के ठेकेदारों ने
इसका राज्याभिषेक कर इसे युगों युगों पुरानी संस्कृति और विचारधारा के सामने खड़ा करके अपनी रोटियाँ सेकने का प्रबंध कर लिया है।
वस्तुतः अभी सेकुलरिज्म की परिभाषा ही विवादित है। विशेषकर भारत के संदर्भ में बेशर्मी की पराकाष्ठा ये है की सेकुलर होने के लिए आप को धर्म विरोधी नहीं होना है अगर आप हिन्दू विरोधी हैं तो आप सेकुलर हैं अगर आप मुस्लिम धर्म के समर्थक हैं तो आप सेकुलर हैं। राजनैतिक विचारधाराओं की बात करे तो एक धड़ा है जो हिन्दू समर्थन के नाम का झंडा लिया है और वो साम्प्रदायिक है..चलिए मान लिया की वो धड़ा साम्प्रदायिक है..तो वो लोग जो मुस्लिम धर्म का समर्थन कर रहें है वो कैसे साम्प्रदायिक नहीं हैं...!!!
क्या आरक्षण या हज में सब्सिडी देना साम्प्रदायिकता के दायरे में आता है?? अब ये तो सेकुलरिज्म के मूल सिद्धांत का उल्लंघन हुआ जो कहता है की "प्रसाशन एवं न्याय व्यवस्था निर्माण में धार्मिक रीती रिवाजों का हस्तक्षेप न हो।"
लेकिन छुद्र राजनैतिक स्वार्थ के वशीभूत हो कर हमारी व्यवस्था चलाने वाले इसे सेकुलरिज्म कहते हैं। इन सेकुलर कुत्तों को हिन्दू समारोहों में शिरकत करना भी साम्प्रदायिकता लगती है।
सेकुलर कुत्ता शब्द मेरे मन में एक प्राणी को देख कर आया जिसका मुख एकलव्य ने अपने वाणों से इस प्रकार बंद कर दिया था कि वो अपनी प्राकृतिक आवाज निकालने में असमर्थ हो गया था। अब एकलव्य तो आज के युग में पैदा नहीं होते पर इन कुत्तों का मुख हर समय तुष्टिकरण और हिंदुविरोध की भो भो निकालता रहता है। वो भी केवल सत्ता,पैसे और प्रचार की हड्डियों के लिए।
सेकुलर कुत्ते सबसे ज्यादा हिन्दू धर्म में पैदा हो गए हैं। इसका कारण हमारी गुलाम मानसिकता और अपने आप को हीन समझने की भावना को जगाये रखने वाली मैकाले की शिक्षा प्रणाली है। जिसमें पढ़े लोग सेकुलर बनने में खोये रहते हैं और अपनी गुलाम मानसिकता का भौंडा प्रदर्शन अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर बड़ी बेशर्मी से करते हैं।
एक उदहारण अमेरिका का देना चाहूँगा। अमेरिका के डालर पर आपको एक शब्द "in the god we trust " लिखा हुआ मिलेगा। जिस देश की जी हुजूरी हमारी व्यवस्था के महानुभाव भी करते हैं उस अमेरिका के सिक्के और डालर पर लिखा ये शब्द उनके धार्मिक ग्रन्थ बाइबिल से लिया गया है। इस शब्द का विरोध भी हुआ मगर वहां के सरकार ने इन लोगों के सामने न झुकते हुए अपनी संस्कृति से समझौता नहीं किया ।
क्या ये संभव है की भारत के सिक्के या नोट पर अनिवार्य रूप से जय श्री राम लिखा जा सके??? यहाँ तो दूरदर्शन के चिन्ह सत्यम शिवम् सुन्दरम में शिव का नाम आने के कारण तुष्टीकरण करते हुए बदल दिया गया था ।ऐसे कई उदाहारण मिल जाएँगे। यहाँ वही गुलाम मानसिकता इस्तेमाल हुई जो मैकाले ने दी थी कि अपने संस्कार और धर्म को छोटा समझो और विरोध करो।
भारतीय परिवेश में सेकुलरिज्म के इस सिद्धांत का इस्तेमाल हर तीसरा ब्यक्ति अपनी उल जलूल मानसिकता हो सही ठहराने के लिए करता है। सेकुलरिज्म उस तर्क को आधार मानता है जो बार बार
अपनी ही परिकल्पना को संशोधित करता रहता है और फिर कुछ दिनों बाद उसे उन्नयन के नाम पर पलट
देता है जिसे हमारे नेता और नीच किस्म के लोग सेकुलरिज्म का नाम दे कर अपनी स्वार्थी विचारधारा को सही ठहराने की सीढ़ी बना साम्प्रदायिकता और सांप्रदायिक समाज की परिकल्पना करते हैं।
मेरे समझ से सेकुलरों को हिंदुत्व और गीता का अध्ययन करना चाहिए जो उन्हें एक सही,प्रमाणिक, सांस्कृतिक समाज एवं जीवन व्यवस्था देने में समर्थ है।
आइये गर्व से कहें की हम हिन्दुस्तान में रहतें है और इसलिए हम हिन्दू हैं सेकुलर नहीं। हमने विश्व को समाजशास्त्र से लेकर आध्यात्म की शिक्षा दी है। हम सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से सदियों से आत्मनिर्भर हैं और हमें नहीं जरुरत है ऐसी आयातित अंग्रेजी विचारधारा की जिसमें हमारे मूल आदर्शों की तिलांजलि देने रणनीति है।
जय श्री राम, जय हिन्दुस्तान ।

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1Comments

Peace if possible, truth at all costs.

  1. Hame aapki post bilkul bhi acchi nahi lagi, Bharat kisi ek jati dharm ke liye nahi bana ha, Lagta ha aap ek kattarpanthi vichardhara ka samarthan karte hain, Lekin aapko bata du ki Bharat desh me sabhi dharmo me is desh ko aage badhane me apna yogdan diya ha. Hamara bharat desh isiliye to aage nahi badh raha ki yahan Vikas ko nahi balki Jati. Dhrarm, Majhab ko bada mana jata ha, Europian Country me aisa nahi ha waha Dhrarm ko nahi apitu Vikas ko jyada badhava dete hain, tabhi to wo desh aage ha. Bhai jati dhrm se bahar nikal or desh ko kaise aage badhana ha is baat par dhyan de. Hum Hindu nahi Balki Sanatan Bharteeya ha, Hame Bhartiyata parf garv ha.
    jai Bharat Jai Bharat Jai Bharat

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