श्रद्धा हत्याकांड नें पूरे देश को झकझोर दिया है। और जैसे-जैसे केस सुलझ रहा है सन्न कर देनें वाले राज़ का खुलासा हो रहा है। आरोपी आफताब के और भी कई सारी हिंदू लड़कियों के साथ संबंध थे, ऐसे में एक बार फिर से यह यक्ष प्रश्न खड़ा होता है कि आखिर कैसे मुसलमान लड़के इतनी अधिक संख्या में लव जिहाद करनें में सफल हो जा रहें हैं। इसके पीछे के कुछ कारण हैं जिसे हिंदू समाज को जानना होगा और अब आत्ममंथन करना होगा अन्यथा देर हो जाएगी।
मुसलमान पुरुषों और हिन्दू पुरूषों के मनोवृत्ति का विश्लेषण — आखिर क्यों मुसलमान पुरुष हिन्दू महिलाओं को रिझाने में सफल हो जा रहे हैं ?
1. घर का माहौल – एक साधारण हिन्दू परिवार में हिन्दू माता-पिता अपने बच्चों को पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान देने, लड़ाई-झगड़े से दूर रहने तथा लड़कियों के मामलों से दूर रहने की सख्त हिदायत देते हैं। वहीं इसके ठीक विपरीत एक मुस्लिम परिवार में मुसलमान माँ-बाप, उनके मौलवी उनके मोहल्ले वाले सभी अपने लड़कों को हिन्दू स्त्रियों को फंसाने के लिए और प्रोत्साहित करते हैं।
2. इधर झिझक, उधर ट्रेनिंग – इस तरह के माहौल में पलने-बढ़ने के कारण हिन्दू लड़कों में बचपन से ही लड़कियों को लेकर एक झिझक सी आ जाती है, उन्हें पता ही नहीं होता कि एक लड़की से संवाद कैसे करना है, उससे अपने मन की बात कैसे कहनी है, कैसे अप्रोच करना है। वहीं मुसलमान लड़के शुरू से ही इन कामों में लग जाते हैं और इसलिए समय के साथ इसमें निपुण होते चले जाते हैं। उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि हो सकता है यह सब छेड़छाड़ कि गिनती में भी आ सकता है क्योंकि इनका समाज इनके साथ खड़ा रहता है। वहीं हिन्दू लड़कों में इस बात का भी डर रहता है कि कहीं लड़की नाराज होकर शिकायत न कर दे जिससे उनकी छवि न खराब हो जाए, वगैरह-वगैरह।
3. विचारधारा में अंतर – एक प्रमुख कारण यह भी है कि यदि कोई हिन्दू लड़का रोमांटिक प्रवृत्ति का है भी तो उसमें वो हिन्दुत्व वाली विचारधारा नहीं रहती, उसे अपने धर्म-समाज की बातों से कोई मतलब नहीं रहता वह सिर्फ अपनी ज़िंदगी में मग्न रहता है। वही जो एक राष्ट्रवादी-हिन्दुत्ववादी विचारधारा का व्यक्ति होता है वह रोमांटिक प्रवृत्ति का नहीं होता। एक हिन्दू राष्ट्रवादी खुद को लड़कियों से दूर रखकर अपने देश और अपनें धर्म की सेवा करने में अपनी महानता समझता है, वह इस चीज को अपने देश और धर्म के प्रति किए गए त्याग के रूप में देखता है। उसके आदर्श भी ऐसे लोग होते हैं जिन्होंने अपना सबकुछ त्यागकर अपना सर्वस्व देश सेवा में लगा दिया। वहीं दूसरी तरफ इस्लामिक कट्टरपंथियों का अंतिम लक्ष्य सर्वत्र अपना वर्चस्व स्थापित करना है और इस वर्चस्व में दूसरे कौम की महिलाओं पर यौन वर्चस्व स्थापित करना भी शामिल है। इनके आदर्श भी गजनवी, गौरी, ख़िलजी, बाबर, औरंगज़ेब जैसे लोग होते हैं। और जब इन्हें इनके सुनहरे इस्लामिक हुकुमत की याद दिलाई जाती है तब इन्हें यह भी बताया जाता है कि किस तरह इस्लामिक शासकों ने अपने हरम में बड़ी संख्या में हिन्दू महिलाओं को रखैल बनाकर रखा था। तो बस यहीं अंतर आ जाता है, जहाँ एक हिन्दू राष्ट्रवादी के लिए सबकुछ त्यागकर अपने देश-धर्म की सेवा करना महान कार्य है वहीं एक मुस्लिम के लिए दूसरों की स्त्रियों पर यौन वर्चस्व स्थापित करना महान कार्य है। एक हिन्दू राष्ट्रवादी के लिए हिन्दुत्व-राष्ट्रवाद और प्रेम बिल्कुल अलग-अलग विषय हैं मगर एक इस्लामिक जिहादी के लिए दूसरों की स्त्रियों पर यौन वर्चस्व स्थापित करना भी एक मज़हब के लिए सेवा करने का माध्यम है जिसके लिए वह तरह-तरह के हथकण्डे अपनाता है। अगर जिहादी बहुमत संख्या में है तब सीधा उठा ले जाएगा और अगर उस स्थिति में नहीं पहुंचा है तब खुद को रोमांटिक बनाकर दूसरों की स्त्रियों पर यौन वर्चस्व स्थापित करने का प्रयास करेगा, उसके लिए रोमांस और जिहाद में कोई अंतर नहीं रह जाता। दूसरों पर यौन वर्चस्व जमाना, अपनी यौन शक्ति का प्रदर्शन करना भी जिहादियों के लिए अपनी श्रेष्ठता स्थापित करने का एक माध्यम है।
4. हिन्दुओं में अज्ञानता व मुसलमानों में बिल्कुल स्पष्ट राय होना – हिन्दू जनमानस विशेषकर सेक्युलर युवा, लड़कियाँ और महिलाएँ इस्लामिक जिहाद को लेकर भ्रमित हैं, आज भी लव जिहाद के खतरे से अनभिज्ञ हैं। वहीं मुसलमानों के मन में किसी प्रकार का कोई संशय नहीं है, वे बिल्कुल स्पष्ट हैं अपने विजन में। रही सही कसर लेफ्ट-वामपंथी मीडिया पूरी कर देता है जिसे केवल हिन्दुओं में ही असहिष्णुता दिखाई देती है, जिसे केवल हिन्दुओं में ही “ब्राह्मणवादी” या “पितृसत्तात्मक सोच” दिखाई देती है, जिसका एकमात्र लक्ष्य हिन्दुओं में ही जमकर अपराध बोध का भाव लाना है और मुसलमानों का बचाव करना है। बाकी का काम बॉलीवुड और वेबसीरीज कर देते हैं जो हिन्दू-मुस्लिम लव स्टोरी दिखाने के लिए हमेशा लड़की हिन्दू और लड़का मुसलमान दिखाते हैं जिसमें वे हिन्दू माता-पिता या अन्य हिन्दू किरदारों द्वारा इसका विरोध करने वालों को “धार्मिक रूढ़िवादी”, मुसलमान को “बेचारा पीड़ित” और हिन्दू लड़की द्वारा मुसलमान को चुन लेने को “प्रोग्रेसिव” होना दिखाते हैं। इन सब कारणों से ही हिन्दू समाज की आज यह दुर्दशा हो गई है।🌹
Peace if possible, truth at all costs.