कभी सोचा आपने कि आधुनिक विज्ञान ने कैंसर का इलाज क्यों नहीं ढूँढा ....??

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आप हैरान होंगे कि आधुनिक विज्ञान ड्रग माफिया के दुष्चक्र में फंस कर इसके सहज सरल भारतीय इलाज को सामने ही नहीं आने देना चाहता।


ऋषि कपूर की मृत्यु हो गई और  इरफ़ान ख़ान की भी।

दोनों में एक बात कॉमन थी, दोनों को कैन्सर था। दोनो विदेश गए। ऋषि कपूर अमेरिका गए। इरफ़ान लंदन गए। फिर भी बच नहीं पाए। मनोहर पर्रिकर जी,सुषमा जी की भी ये ही कहानी थी। 


बड़ी गंदी बीमारी है ये। डबल्यूएचओ कहता है कि विश्व में 9.6 मिल्यन लोग मरते हैं एक साल में इस बीमारी से, 96 लाख लोग। 8 लाख लोग हर महीने मारे जाते हैं। 27 हज़ार रोज़ ये दुनिया छोड़ देते हैं।


भारत में 14-15 लाख लोग इसके शिकार होते हैं इस बीमारी से हर साल। 1.16 लाख हर महीने। 3 हज़ार 900 हर रोज।


कुल मिला के भारत का इस कर्क रोग से मृत्यु में योगदान 8-9 प्रतिशत का है। 


बहुत बड़ी मार्केट है। वैसे अब लोग ठीक भी होने लगे हैं पर पैसा बहुत लग जाता है।


जापान के “योशिनोरी ओसुमी” को मेडिसिन के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार दिया गया था। उनकी थेरेपी ऑटोफैगी (autophagy) के लिए, जो कैन्सर के लिए बहुत उपयोगी है। वैसे तो ऑटोफैगी बहुत पुरानी थेरेपी है। मगर इन्होंने सिद्ध किया होगा तो नोबेल इन को मिल गया।


ऑटोफैगी का मतलब होता है :- ऑटो मतलब ख़ुद को, फ़ैगी मतलब खाना। ख़ुद को खाना या ख़ुद को खा जाना।


इस ऑटोफैगी में ज़्यादा कुछ नहीं करना केवल उपवास रखना है। योशिनोरी ओसुमी ने 72 घंटे का उपवास बताया था। मतलब 3 दिन। केवल पानी पीना है खाना कुछ नहीं। 


तो योशिनोरी ओसुमी की ऑटोफैगी थेरेपी बहुत सी बीमारी के आने से पहले का इलाज है। मगर दवाई मार्केट भी बहुत बड़ा है इसलिए इसके बारे में कम ही बात होती है। फिर विवाद जोड़ा गया कि ये तो भारत में हज़ारों साल से होता आया है। एकादशी,तीज,जिउतिया,छठ इत्यादि का व्रत ये ही तो है।


कैन्सर के सेल सब के शरीर में होते हैं। फिर जब ये किसी कारण वश बिगड़ जाते हैं तो बीमारी का रूप ले लेते हैं। 

ऑटोफैगी के उपवास से हमारी स्वस्थ कोशिका इन बीमार कोशिका को खा जाती है जिस से इस के फैलने की संभावना कम हो जाती हैं। बस इतना सा है ऑटोफैगी, इतनी सी बात के लिए नोबेल मिल गया।


पहले भारत में रविवार की छुट्टी जैसा कुछ नहीं था। यहाँ के स्त्री पुरुष स्वस्थ रहते थे हफ़्ते के सातों दिन काम करते थे। मगर महीने की छः छुट्टियाँ मिलती थी। 


3 पूर्णमासी को, तीन अमावस्या को। पूर्णमासी से एक दिन पहले एक पूर्णमासी को एक उस से अगले दिन। ऐसे ही अमावस्या को भी। 


ये तीन दिन छुट्टी मिलती थी जिस में आप उपवास करो। शरीर का विषहरण (detoxification) करो और स्वस्थ रहो। पृथ्वी में ज्वार भाँटा भी इन ही दिनो में आता है। कहा गया है “यत् ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे” अर्थात जो ब्रह्माण्ड में है वो ही शरीर में है। अब पृथ्वी के जल में ज्वार भाँटा आता है तो शरीर के जल में भी आता है। इसलिए इन तीन दिन उपवास करने की बात कही गयी है। तीन दिन मतलब 72 घंटे, ऑटोफैगी।


चलिए छोड़िए। आप भी 24, 36 और 72 घंटे का उपवास करे साल में एक दो बार फिर अमेरिका लंदन क्या पड़ोस के डॉक्टर के पास जाने की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी। ध्यान रहे अगर 72 घंटे का नहीं कर सकते तो 15 घंटे से शुरुआत करे केवल पानी लें अन्न नहीं।


इस भूलोक में हम केवल यात्री हैं थोड़ी देर विश्राम करने के लिए रुके हैं यात्रा बहुत लम्बी है ये भूलोक केवल एक धर्मशाला है मंज़िल नहीं।


हरी ॐ ❤️

साभार अग्रेषित।


कम से कम पांच ग्रुप मैं जरूर भेजे

कुछ लोग नही भेजेंगे

लेकिन मुझे यकीन है आप जरूर भेजेंगे



🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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