कल ही एक रात की शादी मे मंडप मे जाना हुआ । जहां बड़े ताम झाम के साथ बड़ा खर्च किया गया था । कब बरात आई और कब चली गई पता नही चला !
बरात का भी तभी पती चलता है जब दो चार नशें मे झुमते हुएं लोग झगड़ा कर रहे होते है तभी लगता है कि अब बरात आ चुकी है ।
हम चालीस प्लस वाले आखिरी पढ़ी होगे जिन्होंने बुग्गी भैंसा, ट्रेक्टर ट्राली मे बरात का सफर किया है । जिन्होंने मामा, बुआ, के यहां शादी मे महीनों पहले पहुँचकर शादी के उत्सव का लुफ्त उठाया है । जिन्होंने बरात के नाश्ते मे थैलियों मे दो लड्डू दो पकौडे मिले है और एक मिट्टी के कसोरा मे चाय पी है । जिन्होंने बरात मतलब दो दिन और एक रात का उत्सव ! जिसमे दो नाश्ते दो खाने और रात को पूरी बरात जहां रूकती थी वहां हंसी ठहाकों का माहौल ! हम आखिरी पीढ़ी होगे जिन्होंने सामूहिक रूप से नींचे बैठकर पत्तलो पंक्तियो मे बैठकर अनुशासन से खाना खाया होगा ।
हम आखिरी पीढ़ी होगे जिन्होंने लड़की की बरात के लिए पूरे गांव मे घर घर जाकर खाट और बिस्तर मांगकर इक्कठ्ठा की होगी । हम आखिरी पीढ़ी होगे जिन्होंने पूरी रात जागकर बरातियों की आवाभगत की होगी । हम आखिरी पीढ़ी होगे जिन्होंने खाना परोसने से लेकर सफाई करने तक वह सारे काम किये होगे जिस आज शादियों मे वेटर कर रहे है ।
तब कोई भी समाजिक उत्सव व्यक्तिगत नही था बल्कि सामूहिक था और हर कोई अपना अपना सहयोग उसमे देता था और शादी को कम खर्चीला बना दिया जाता था ।
वरना आज शादियां खर्चिली तो बहुत हो रही है मगर भाई भाई की ही शादी ब्याह मे नही जाता है ।
जब हम #अनपढ़
जब हम #अनपढ़ और #असभ्य थे तब हम इतने सामाजिक थे की शौच के लिये भी सामूहिक जाते थे ! अगर घर मे सब्जी नही है तो पड़ोस मे जाकर मांग लेते थे ! शर्ट पेंट ,जूते आदि मांग कर एक दूसरे के पहन कर ब्याह बारत कर आते थे ! यहां ना तो मांगने वाले के अन्दर कोई हीन भावना होती थी और ना देने वाले के अन्दर कोई अहंकार की भावना होती थी !
हमे देश दुनिया की कोई खबर ना थी ! हमे राजनीति की कोई खबर ना थी ! कौन नेता क्या कर रहा है ? सरकार कौनसी नीति पर काम कर रही है ? देश की राजधानी कहां है ? संसद भवन कहां है ? चुनावी प्रक्रिया क्या होती है ? हमे कोई राजनैतिक ज्ञान ना था ! ना ही कोई किताबी ज्ञान था !
मगर हमे यह ज्ञान था की गांव बस्ती मे किसको बुखार है ? किसको खांसी है ? किसको जूकाम है ? किसका लड़का कहां ब्याहा है ? किसकी लड़की कहां ब्याही है ?
यहां तक की किसके घर क्या पका है यह भी हमे ज्ञान था !
लेकिन जैसे ही हमने सभ्य और पढ़े लिखे होने का दम भरना शुरू किया हमारी सामूहिकता और समाजिक जीवन एंकाकी हो गया ! हमे देश दुनिया के सारे इल्म तो मिल गये मगर काम और कैरियर की चिंता ने हमे इतना मतलबी बना दिया की मां और बाप भी इसके सामने एक बोझ लगने लगे !
जो अनपढ़ और असभ्य समाजिक जीवन था उसमे सामूहिकता तो कूट कूट कर भरी थी ! बस अशिक्षा और देश दुनिया का ज्ञान नही था ! दुनिया मे सबसे मजबूत कौंम वह होती है जिसके पास सामूहिक ,समाजिक जीवन और शिक्षित समाज हो !
मगर यहां शिक्षा आई तो सामूहिक समाजिक जीवन ख़त्म काम और कैरियर के खौफ ने खत्म कर दिया ! एक ऐसे सभ्य समाज का जन्म हुआ जो सिर्फ अपने से मतलब रखता है ,पड़ोस मे कोई मर रहा है उसे इसकी परवाह बिल्कुल भी नही है !
और ऐसा एकांकी समाज हर विचारधारा की पहली पसंद है क्योकी सामूहिक समाजिक जीवन उनके खिलाफ होता है !
Peace if possible, truth at all costs.