#‎Chetan_Bhagat‬ और “हिंदुस्तान और India” के बाजार

0


सब से पहले इस बात को समझना पड़ेगा के वो अपने पेट के लिए लिखता है । आप पर कोई संस्कार करने के लिए नहीं ।
इस के साथ साथ ये भी समझना पड़ेगा कि आप अगर हिन्दी में पढ़ते हैं तो वो आप के लिए नहीं लिख रहा है । आप उसके ग्राहक न थे, न हैं और शायद न ही होंगे । लेकिन आप को यूंही अपमानित करने से उसका फायदा हो सकता है । उसके इस लेख पर आप कितना भी क्रोधप्रदर्शन करें, उसे पूरा भरोसा है कि उसका बाल भी बांका नहीं हो सकता । और भी एक commercial सत्य को देखते हैं जिसे हम अनदेखा कर रहे हैं । क्या है ये सत्य ?
सत्य यह है कि भारत में अगर सफल लेखक होना है या लेखक के हैसियत से कुछ अच्छे पैसे कमाने हैं तो वामियों से दोस्ती जरूरी है । वे आप का वर्तमान और भविष्य बनाने या बिगाड़ने की शक्ति रखते हैं अगर आप लेखन से चरितार्थ चलाने की मंशा रखे हैं । अच्छे reviews जरूरी हैं, और कम से बुरे reviews तो न होने चाहिए, चेतन भगत जैसे लेखकों को, जिसका साहित्यिक स्तर अनुसंधान के योग्य है । और 2014 में उसने एक बड़ा जुआ खेला जिसमें उसे कोई सफलता नहीं मिली । उसने मोदीजी का समर्थन किया । उस से उसको कोई लाभ नहीं हुआ लेकिन खेमा बदलने का खामियाजा शायद समझ आ रहा है । उसके यह हिन्दू विरोधी विषवमन को एक सार्वजनिक वाम आरती, तुष्टीकरण का प्रयास समझा जाये । ये भी समझ लीजिये कि जो भी हो, वो एक लेबल है और जिस पेपर में उसका यह गरल छपा है वो भी एक मेगाब्रांड है । कुल मिला कर भारत की छबि बिगाड़ने की दोनों की हैसियत तो है सुविद्य समाज में तथा अन्य देशों में । यही लक्ष्य है उसके लेख का यह समझना जरूरी है ।
और तो यह कहूँगा कि वो हिन्दी में लिखें तो कब तक टिक पाएगा? अभिजात्य वर्ग तो उसे पढ़ने से रहा, और बाकी वो जो लिखता है उसे साहित्य कहना धृष्टता की परिसीमा होगी । मनोहर कहानियाँ, या मीरत से प्रसिद्ध होते पॉकेट बुक्स लेखन के दर्जे में तुल्यबल और ग्राहक के लिए अधिक किफ़ायती साबित होंगे । ये टिकेगा नहीं इस मार्केट में । वो भी यह समझता है इसलिए इस बाग के अंगूर खट्टे हैं उसके लिए ।
वैसे अपनी बात वो कुछ इस तरह से रख रहा है कि उसके पाठकों में से बहुत सारे उसके इन वाक्यों से सहमत होंगे । नोट किया जाये, मैंने “उसके पाठकों में से” पर विशेष ज़ोर दिया है । उसके उस लेख का यह उद्धरण देखिये "There is an over-riding sense of shame about being Hindu, Hindi speaking and/ or Indian. Deep down they know that Hindi-speaking Hindus are among India’s poorest. They also know that India is a third world country with third rate infrastructure and few achievements on the world stage in science, sports, defence or creativity."
जैसे मैंने इस पोस्ट के शीर्षक में लिखा है, बात भारत और India की है और चेतन भगत India के लिए लिख रहा है । अगर ये फर्क समझ आता है तो आप समझ गए होंगे कि वो किस वर्ग से बात कर रहा है और ये भी समझ गए होंगे कि वो वर्ग उस से सहमत ही होगा । वैसे उसका यह वाक्य There is an over-riding sense of shame about being Hindu, Hindi speaking and/ or Indian मुझे गलत नहीं लगता। क्या यह हीनता की भावना नहीं कि कई लोग बातचीत में अकारण इंग्लिश शब्दों का प्रयोग कर लेते हैं ? “हम ____ से belong करते हैं”, “कहाँ pay करना है”, “हम ____ से purchase / buy कर लाये” क्या इन वाक्यों में इंग्लिश शब्दों का प्रयोग आवश्यक है? ये और ऐसे कई वाक्य मैंने खुद सुनें हैं, आप ने भी सुने ही होंगे । और एक वाकया बताऊँ । एक दुकान में सेल्समन ने ग्राहक को भारतीय और आयातीत के बीच के दर्जे और दर के फर्क सिर्फ दो शब्दों के उच्चारण में उतार चढ़ाव से समझा दिया । “ये लोक्कल है, ये इंपोर्टेड है” । दर्जे के बीच वाकई कितना फर्क था मैं नहीं जानता। दर के बीच फर्क काफी था । ग्राहक भी मान गया । बात दोनों की है, सेल्समन और ग्राहक की भी ।
यह भावना जो भी English Speaking Indian मैं है, वे चेतन भगत के ग्राहक हैं । वो उनके लिए लिख कर उन्हें आश्वस्त कर रहा है कि आप भारतीय हिंदुओं से श्रेष्ठ हो क्योंकि आप Cool Dude Indian हो । मुझे पढ़ते रहिए, मित्रों के बीच मेरे किताब को डिस्कस करना अपनी अलग और श्रेष्ठ होने की पहचान होगी ।
मित्रों, मेरा व्यवसाय एडवर्टाइजिंग और मार्केटिंग सलाहकार का है, और ये विश्लेषण संपूर्णत: व्यावसायिक नजरिए से किया है ।
वैसे एक ‪#‎मासूम_सवाल‬ । चेतन भगत ने हिन्दू का खुल कर नाम तो लिया है, क्या वो ऐसा ही कुछ मुस्लिमों के बारे में भी लिखने की हिम्मत करता? मने कि वे भी तो उसके ग्राहक नहीं हैं, और न ही बननेवाले हैं ।
असहमति जताने के लिए आप स्वतंत्र है, सहमति जताने के लिए भी । और हाँ, शेयर करने के लिए भी कोई अनुमति मांगना अनावश्यक है ।
खुलकर शेयर करें ।

Post a Comment

0Comments

Peace if possible, truth at all costs.

Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !